Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 13
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 20188888888888888 दोहा-मंगलदर्व तहां लसै, कहे एकसो आठ। पुन्यप्रकृतिके उदयतै बने सु अद्भुत ठाठ॥२१॥ पद्धडी छन्द दश चार सुदेवन कृत अनूप, अतिशयभाषी जिनदेव भूप। अब प्रातिहार्यवसु सुनो वीर,तिनको सुन भवभ्रम मिटैं पीर॥ सुन्दरी छन्द द्रुम अशोक महाछवि देत है, शोक सब जीवन हरलेत हैं। सुर सुफूलनकी वर्षा करें, परमसुन्दरता छबिको धेरै॥ खिरत बानी सुन्दर सोहनी, भव्य जीवनके मन मोहनी। दुरत चौसठ चँवर सुहावने, भक्ति नृत्य करत मन भावने। अति उतंग सुसिंहासन बनों, जडितरतन समूहन सो घनो। मनौं मेर सुदर्शनको हंसे, सरस शोभाकर सुन्दर लसै॥ अडिल्ल छन्द भामण्डलकी क्रांति प्रभूतनतै बनी, ससि सूरज छवि क्षीण होत द्युति है बनी। जीवनके तहां सात भवांतर देखिये, ___वह अतिशय भामण्डल मांही पेखिये॥२६॥ बाजे दुर्दुभि बाजे अधिक सुहावने, सुनै भव्य दे कान सरस मन भावने। . तीन लोकके ईश्वर याते जानिये, तीन छत्र सिर धारै परम प्रमानिये // 27 //

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