Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 11
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ននននននននននននននននននន दस जनमत दस ज्ञानके, सुर कृत चौदह जान। चार अनंत चतुष्टगिन, प्रातिहार्य वसु मान // 5 // धरै सुगुण छालीस जे, ते अरहन्त जिनेश। तिनके चरणन शीसनय, पूजत सकल सुरेश॥६॥ पद्धडी छन्द जै स्वेद रहित तिन तन सुजान, ___ मल रहित सु निरमल हिये आन। तन रुधिर सु उज्जल क्षीर वर्न, जग तारण प्रभु सब दुःख हर्न // 7 // समचतुर धरै संस्थान सार, तन व्रजवृषभनाराच धार / मन मोहन सूरत सरस देख, शशी सूर सु छबि धारो विशेख॥८॥ तन मैं जु सुगन्ध लसै अपार, लक्षण एकसो अरु आठ धार। बोलत प्रिय हित मित वचन जान, बल है अनन्त तनसो प्रमान // 9 // दोहा-दस जनमत पूरन भई, अब केवल दस सार। तिनको सुन समझै सुधि, परम शुद्धता धार // 10 // पद्धडि छन्द जोजन सत चार कहो प्रमान, दुर्भिक्ष पडै नहिं जिन वखान। केवल लहि गगन चलैं जिनेश, कोई जीव घात नहिं लहै लेश॥११॥

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