Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Ishvarchandra Shastri
Publisher: Ishvarchandra Shastri

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Page 31
________________ द्वितीयोऽध्यायः जीवसा पञ्चभावाः॥१॥ टीका। जीवसा ति। पूर्व ग्रन्थकृद्भि र्जीवादीनां सप्त सख्याकानां तत्वानां उल्लेखः कृतः। सम्पति अनेन जीवसा लक्षणं स्वरूपश्चोच्यते। तच्चसंक्षेपकरणे जीवाजीवौ सप्तसु द्वावेव पदाथों भवतः। तत्र जीवपदार्थसा पञ्चविधा भावा भवन्ति। ते च औपशमिकः क्षायिकः क्षायोपशमिकः औदयिक पारिणामिकश्चेति पञ्च भावा जीवसा स्वतत्त्वं भवन्ति । तथा च सभाष्य सूत्रम् “औपशमिक क्षायिको भावौ मिश्रश्च जीवसा स्वतत्त्वमौदयिक पारिणामिको च” इति। सूत्रमिदं जीवसा पञ्चभावपरिघोतकम्। तत्र पञ्चानां भावानां नाम्ना कीर्तनात्तद्वृहत्सूत्रमभूत्। अत्र संक्ष पेण सूत्रितम्। परमनयोः सूत्रयोराशय भेदोनास्ति । औपशमिकादयोभावा उत्तरोत्तर सत्रे तत्र वणिताः सन्ति ॥१॥ সব্যাখ্যানুবাদ। জীবের পাঁচ প্রকার ভাব জৈন অগমে প্রসিদ্ধ। সূত্রস্থিত পঞ্চ সংখ্যা দ্বারা শাস্ত্রে উক্ত পাঁচ ভাব এইরূপ, ঔপশমিক, গায়িক, ক্ষায়গাপশমিক, ঔদয়িক, পারিণামিক। এই পাঁচটি ভাব জীবতত্ত্বে স্বতঃই বিদ্যমান। সভায্য সূত্রের দ্বিতীয় অধ্যায়ের প্রথম সূত্রে কথিত বিষয় উক্ত জীবের পাঁচ ভাবের পরিপােষক। সেই সূত্রে পাঁচ ভাবের উল্লেখ থাকাতে তাহা বৃহৎ হইয়াছে। এই সূত্রে সংক্ষেপে বলাতে সূত্র সংক্ষিপ্ত। কিন্তু উভয় সূত্রের অভিপ্রায় একই রূপ। ভাষ্যে ও পরবর্তী সূত্রে পাঁচভাব ব্যাখ্যাত আছে ॥১৷৷ उपयोगस्तल्लक्षणम् ॥२॥ टीका। उपेति। अत्रोपयोगः लक्षणं जीवसा भवति । स च उपयोगः द्विविधः। एकः साकारः अपरोऽनाकारश्च । ज्ञानोपयोगः दर्शनोपयोगश्च । अन्यत् तत्र भाष्ये प्रपञ्चितमस्ति । श्रीमदुमास्वाति सत्रे । तत्रतु "उपयोगोलक्षणम्" इत्युक्तम् । एवं रीत्योभयोरेकार्थबोधकत्वं मन्तव्यम् ॥२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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