Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Ishvarchandra Shastri
Publisher: Ishvarchandra Shastri

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Page 76
________________ তত্ত্বাৰ্থসূত্রম্ एषां मूल गुणाः श्रेष्ठा गुणा अहिंसादयः। अष्टाविंशतिसंखाका भवन्ति । ते च प्राक्तनमूलाचाराद्यागमतः प्रसिद्धाः। यथा अहिंसादिपञ्च महाब्रतम् । ईर्यादिपञ्चसमितयः। पञ्चन्द्रिय निरोधः। सामधिकादयः सडावश्यकक्रियाः। अस्नान भूशयन-केशोल्लंछन-ननख-(दिगम्वरख ). एकाहार-ऊद्ध, हार-दन्तघर्षणानिचेति । दिगम्बरीय मते एते सुप्रसिद्धा गुणाः यस्य स निःशल्यव्रती। मायानिदानमिथादर्शन शल्यस्त्रिभिहीं नो निःशल्योव्रतीति । ब्रती द्विविधः।, एकोऽगारी। अपरः अनगारश्च। तयोरेकः श्रावकोऽणुव्रतधरः अगारी ब्रती स्यात्। तद्भिन्नोऽपरः। सभाव्यसूत्रे एषां गुणाना मुल्लेखोनास्ति । अत्र सप्तमाध्याये त्रयोदशसूत्रतोविंशतिसूत्रं यावदे तस्य रहस्यं बहुधा बर्णितमस्ति। बौद्धनये तु. श्रमणाः त्रिरत्नसप्तशील-दशशीलादिपरायणाः सन्ति ॥५॥ | সব্যাখ্যানুবাদ। শ্ৰমণ ব্রতীগণের আটাইশ (২৮) প্রকার মূল গুণের উল্লেখ মূলচারাদি প্রাচীন আগমে আছে। এই সূত্রের অনুরূপসূত্র ভাষ্য সূত্র গ্রন্থে দেখিতে পাওয়া যায় না। দিগম্বরীয়মতে, অহিংসা প্রভৃতি পাঁচ মহাব্রত। ঈর্যাদিপঞ্চসমিতি। পঞ্চবিধ ইন্দ্রিয় নিরােধ। সাময়িকা ( সামায়িকা) দি ষট অবশ্যক ক্রিয়া। অম্লান, ভূমিশয়ন, কেশোল্লন (মস্তকাদিস্থিত কেশের মূলােচ্ছেদ করা ), নগ্নতা (দিগম্বরতা), এক ভােজন, উৰ্দ্ধভোজন ( দণ্ডায়মান হইয়া আহার করা), অদন্ত ঘর্ষণ, এই আটাইশগুণ শ্রমণব্ৰতীতে সমাবিষ্ট থাকে। সুভাষ্য সূত্রের (२५-२० ) जशान रख ररेट विडि रख की उ बरु ७ बीज निशान निरता पाय ॥ ४ ॥ श्रावकानामष्टौ ॥६॥ टीका। श्रावकाणामिति। श्रावकाणां श्रमणानां ब्रतीनां पुनर्मतान्तरे 'जैनाचाय्यशासनभेद' सन्दर्भानुसारेण । अष्टौ मूलगुणा भवन्ति । नात्र पूर्वसूत्रे अस्य सूत्राथसा गतार्थख आचार्याणां मतभेदात्। अष्टसु गुणेषु मध्ये श्रीमत् स्वामि-समन्तभद्राचार्योक्ताः पञ्च गुणव्रतानि । एवं मधु मद्य-मांस-द्रव्याणां त्रयाणा परित्यागरूपाणि त्रीणि। मिलिखा तु अष्टौ भवन्ति। एतदनुरूपं किमपि सूत्र सभाष्यसूत्र न दृश्यते ॥६॥ সব্যাখ্যানুবাদ। শ্রাবকগণের (ব্রতধারী সাধুর) মুল গুণ আটটী। এই সূত্রটী পূর্বসূত্র দ্বারা চরিতার্থ (গতার্থ) হয় নাই, যেহেতু এই বিষয়ে আচার্যগণের মতভেৰ আছে। সভায় Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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