Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Ishvarchandra Shastri
Publisher: Ishvarchandra Shastri

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Page 56
________________ তত্ত্বাৰ্থসূত্রম্ । नित्यावस्थिताः॥२॥ टीका। नित्येति । प्रागुक्त सूत्रे ये पञ्चास्तिकायाः पदार्थाः। ते नित्याः द्रव्यरूपाः स्थिताश्च । पश्चैते पदार्था सामाना रूपतया विशेषरूपत्वे नच स्वरूप नैव परिहरन्ति। अतएते नित्या भवन्ति। अस्तिकाय रूपेणच स्व स्वभाव व स्वसंख्याश्च कदापि न त्यजन्ति। पञ्चसखातोनाधिकख नवा नानलञ्च यान्ति । अतो नित्यावस्थिताश्च। अत्राथें तृतीय सभाष्यसूत्रमित्थम् “नित्यावस्थितानारूपाणि"। तत्र द्वितीयसूत्रप्रोक्तं “द्रव्याणि जीवाश्चे” त्यत्र। धोदयश्चैते चखारः प्राणिनश्च पञ्चद्रव्याणिच भवन्ति । प्रागुक्तं हि मतिश्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्व पर्यायेषु सन्चंद्रव्यपव्येषु केवलस्येति भाष्यकृतां वचोभाति। “नित्य तमाहु विद्वांसो यः स्वभावोन नश्यति.” इति सूरयः। अत्र भाष्ये च तद्भावाव्ययं नित्यमिति। येषां रूपं नास्ति तानारूपाणि। रूपश्च मूतिः । मूर्याश्रयाश्च स्पर्शादय इति ॥२॥ সব্যাখ্যানুবাদ। পূর্বে যে পঞ্চাস্তি কায়ের কথা বলা হইয়াছে। সে সমুদায় নিত্য দ্রব্য রূপ, স্থিরপদার্থ। এই পাঁচ অস্তিকায় পদার্থ সামান্যরূপে এবং বিশেষরূপে স্ব স্ব রূপ কোন অবস্থায় পরিহার করে না, সেই হেতু ইহার। নিত্য। ইহারা পাঁচ সংখ্যা হইতে অধিক নয় এবং ন্যুন নয়। শব্দার্থক ‘কৈ’ ধাতু হইতে কায় শব্দ নিষ্পন্ন হইয়াছে। পূর্বে কথিত হইয়াছে জ্ঞানাত্মক জীব পদার্থ, অজীব পদার্থ জড়বর্গ ; ইহাদের বিস্তারই পঞ্চাস্তিকায়। জীবস্তিকায় তিনরূপ, বদ্ধ, মুক্ত, নিত্যসিদ্ধ। পু স্তিকায় ছয় প্রকার। পৃথিবী প্রভৃতি চারি ভূত ( আকাশবর্জিত ), স্থাবর ও জঙ্গম ( স্থিতি, গতিশীল পদার্থ ) সভাষ্যসূত্রের দ্বিতীয় তৃতীয় সূত্রে ও ভাষ্য, টীকায় অপর বিষয়গুলি বর্ণিত আছে ॥২॥ __ रूपिणः पुद्गलाः॥३॥ टीका। रूपिण इति। ये पुद्गलास्ते रूपिणो भवन्ति । रूपमेषामस्ति एवमे पुवा रूपमस्तीत्यस्त्यर्थे प्रत्ययः। पुद्गलजीवास्तु अनेकद्रव्याणि स्युः । पञ्चास्तिकाय रूपद्रव्यपदार्थेषु मध्ये पुद्गलपदार्था रूपवन्तोभवन्ति। यतो जीव-धर्माधर्माकाशद्रव्यपदार्था रूपहीनाः स्युः। स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णरहिता अमूर्ताः सूक्ष्मरूपाः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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