Book Title: Tattvartha Sutram
Author(s): Ishvarchandra Shastri
Publisher: Ishvarchandra Shastri

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Page 67
________________ যষ্ঠোহধ্যায়ঃ च विवादः अबणेवादो वर्णहीनोवृथा विवादो मिथ्यावाद इति शेषः। केवलिनां परमर्षीणां पञ्चमहाव्रतानाच मिथ्यावादो दर्शनमोहनस्य हेतुभेवति । इत्थश्च सभाष्यकेवल्यादि चतुर्दशसूत्र प्रोक्तम् । अत्र तु आदि शब्दोपादानात् श्रुत-सय धर्म-देवावर्णवादानां संग्रहोबोध्यः। तथाहि तत्सूत्रम् “केवलिश्रुत-सङ्घ-धर्म-देवावर्णवादोदर्शनमोहस्य” इति। अत्र केवलिनोमहर्षयः। अन्यत् सर्व भाष्य-टीकादिषु सम्यगस्ति ॥६॥ সব্যাখ্যানুবাদ। কেবলী প্রভৃতি মহর্ষিগণের বিবাদ বা মিথ্যাবাদ (অবর্ণবাদ) প্রকাশ করা দর্শন মােহের হেতু জানিবে। এই সূত্রে প্রদত্ত আদি পদ দ্বারা শ্রুত, স্য, ধর্ম, দেব প্রভৃতির বৃথা নিনাদিসংগৃহীত হইয়াছে। সভায্য-উমাস্বাতি আচার্যের চতুর্দশ সূত্রে বিস্তাররূপে এই সূত্রের বিষয় বর্ণিত আছে। কেবলী মহর্ষি সাঙ্গোপাঙ্গ আহত, বাক্যপরায়ণ শুত, চাতুর্বণযুক্ত সদ্য, মহাব্রতসাধনপরায়ণ ধর্ম, ইহাদের অপবাদ দর্শন মেহের আস্রব || ৬ | कषायजनिततीव्रपरिणामश्चारित्रमोहस्य ॥७॥ टीका। कषायेति। कषायैवि विधचित्तगतदोषैर्यो हि अति तीव्रभावेनात्मनः परिणामः स चारित्रमोहस्य हेतुरास्वव इति। “कषायस्य उदयात्तीत्रात्म-परिणामः चारित्रमोहस्यास्त्रवोभवति" इति तत्र भाष्यम् । तथा हि तत्सूत्रम् “ कषायोदयात्तीब्रात्म-परिणामश्चारित्रमोहस्य” इति। मानवानां लोभक्रोधादि दोषैविषयेषु समासक्तानां एवमेवात्म परिणामोभवति । एवमेव सांख्यशास्त्रेऽपि कामलोभादिचित्तमलानां बहुधा दोषा ज्ञानप्रवाधका उक्ता विस्तरभिया नेह ते प्रतन्यन्ते। अनेन सूत्रेण साई “कषायोदया" दित्यादि सूत्रस्य सम्यगर्थसादृश्यमस्ति ॥७॥ . . সব্যাখ্যানুবাদ। কষায়রূপ দোষ হইতে উৎপন্ন যে, অতি তীব্র আত্মপরিণাম তাহা চারিত্র মােহের (পূর্বোক্ত আস্রব) হেতু। এই পুত্রের সহিত সভাষ্য পঞ্চদশ সূত্রের অর্থগত সাদৃশ্য আছে। সভাষ্য সূত্রে কেবল ‘উদয়াৎ' এবং ‘জনিত এই দুইটি পদ সূত্রে পরিবর্তিত ভাবে দৃষ্ট হয়। কষয়াদি চিত্তগত দোষ যে, সৎজ্ঞানাদির প্রতিবন্ধক তাহা সাংখ্য ও যােগদর্শন শাস্ত্রে বিশেষভাবে উল্লিখিত আছে। সভায় সূত্রে ‘আত্মপদটী চিত্ত বা মন শব্দার্থজ্ঞাপক। যে For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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