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तत्त्वानुशासन
पद्य उद्धृत पाये जाते हैं, जिसकी सूचना प० परमानन्दजी शास्त्रीने अनेकान्त वर्प ६ की सयुक्त किरण ४-५ मे को है। इससे अमृतचन्द्र उक्त सवत् १०.५ से पूर्वकालिक विद्वान हैं यह सुनिश्चत है । उपासकाचारके कर्ता अमितगति (स० १०५०) से भी वे पूर्व के विद्वान् हैं, जिनके उपासकाचारमे पुरुषार्थसिद्ध्युपायका कितना ही अनुसरण पाया जाता है, जिसे पं० कैलाशचन्दजी शास्त्रीने जेनसन्देशके शोधा न० ५ मे प्रकट किया है । इन अमितगति (द्वितीय) से दो पीढ़ी पूर्वके विद्वान् अमितगति प्रथमके योगसार प्राभृत पर भी अमृतचन्द्रके तत्वार्थसार तथा समयसारादिटीकाओका प्रभाव लक्षित होता है, जिनका समय अमितगति द्वितीयसे कोई ४०-५० वर्ष पूर्वका जान पडता है। ऐसी स्थितिमे अमृतचन्द्रसूरिका समय विक्रमकी १०वी शताब्दीका प्राय तृतीयचरण और तत्त्वानुशासनके कर्ता रामसेनाचार्यका समय १०वी शतीका प्राय चतुर्थचरण निश्चित होता है तथा अमितगति प्रथम विक्रम की ११ वी शताब्दीके प्राय १ प्रथमचरणके विद्वान ठहरते हैं । ये तीनो ही अध्यात्म-विषयके प्राय सम-सामयिक प्रौढ विद्वान हुए हैं और तीनोकी कथनशैली एक दूसरेसे मिलती-जुलतो है, जिनमे वृद्धताका श्रेय अमृतचन्द्राचार्यको प्राप्त जान पड़ता है ।
६. रामसेनके गुरु इस तरह अन्तरग और वहिरग दोनो परीक्षणोसे जब तत्त्वानुशामनकार रामसेनाचार्यका समय विक्रमकी १०वी शताब्दीका प्राय. २ अन्तिमचरण निर्धारित होता है तब उनके तथा उनके गुरुवोके परिचय-विषयमे विशेष कुछ खोजने-कहने आदिका अवसर प्राप्त होता है । अत. अब उसीका प्रयत्न किया जाता है -
१२. 'प्राय' शब्दका प्रयोग इसलिए किया गया कि वह समय कुछ वर्ष पूर्वका तथा कुछ वादका भी हो सकता है।