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तत्वानुगारान इनके साथ और भी जोठे जा सकते हैं जैसे उदासीनता, वीतरागता, राग-प-विहीनता, लालमा-विमुक्ति, मनासक्ति बादि । श्रीपयनन्दिाचार्याने एकत्वसप्नति' में 'साम्य' के साथ स्वास्थ्य, समाधि, योग, नित्तनिरोध और शुद्धोपयोगको भी एकार्यक बतलाया है।
परमेष्ठिगी गाए जाने पर सब कुछ ज्यात संक्षेपेण यदन्त्रोक्त विस्तरात्परमागमे । तत्सर्व ध्यातमेव स्याद् ध्यातेपु परमेष्ठिसु ॥१४०॥ 'यहां इस माम्मे-जो कुछ संमेपरपसे कहा गया है उसे परमागममे विस्तारस्पसे बतलाया है। पचपरमेष्ठियोंके ध्याये जाने पर वह सब हो ध्यातर पमे परिणत हो जाता है उसके पृयफरूपसे ध्यानको जग्रत नहीं रहती मरवा पंचपरमेष्ठियोंका ध्यान कर लिए जानेपर सभी श्रेष्ठ व्यक्तियो एव वस्तुओंका ध्यान उसमें समाविष्ट हो जाता है।'
व्याख्या-स पद्य मे यह सूचना की गई है कि व्यवहारनयकी दृष्टिसे त्येयके विषय में जो कुछ कयन सक्षेपस्ससे ऊपर कहा गया है उसका विस्तारसे कयन परमागममे है, विस्तारसे जाननेको इच्छा रखनेवालोको उसके लिये आगमगन्योको देखना चाहिये । साथ ही यह भी सूचित किया है कि अर्हन्तादि पचपरमेष्ठियोके ध्यानमे इस प्रकारके ध्यानका सब कुछ विषय आजाता है और यह सब ठीक हो है, क्योकि पांचो परमेष्ठियोके' वास्तविक ध्यानके बाद ऐसा कोई विपय ध्यानके लिए अवशिष्ट नही रहता, जो आत्म-विकासमे विशेष सहायक हो।
१. साम्य स्वास्थ्य समाधिश्च योगश्चेतोनिरोधनम् ।
शुद्धोपयोग इत्येते भवन्त्येकार्यवाचकाः ।।६४॥ २. मु मे ध्यानमेव ।