Book Title: Tattvanushasan Namak Dhyanshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 357
________________ तत्त्वानुशासन २७ इस निबन्धावलीका प्रथम खण्ड प्रकाशित हो चुका है, जिसके साथमे डा० हीरालालजी एम० ए०, डी० लिट०, विश्वविद्यालय जवलपुरकी लिखी 'नये युगको झलक' नामकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना है । साथ ही निवन्धोंमे आए हुए नामोकी वर्णानुक्रम-सूची भी लगी हुई है। इस खण्डके अन्तर्गत कुछ निवन्धोके नाम अपने-अपने क्रमास सहित इस प्रकार हैं. १ सुधारका मूलमत्र, २ पापोंमे वचनेका गुरुमात्र ३ मिथ्या धारणा, ६ हमारी यह दुर्दशा क्या ? ८ जिन-पूजाधिकार-मीमांसा, ६ जैनियोका अत्याचार, १४ विवाहसमुद्देश्य, १४ उपामना-तत्त्व,१५ उपासनाका ढग, १७ अपमान या अत्याचार, १६ गोत्र-स्थिति और सगोत्र-विवाह, २० असवर्ण और अन्तर्जातीय विवाह २१ जाति-पचायतोका दण्डविधान, २२ हम दुखी क्यो है ? २३ जैनी नीति, २५ भक्तियोग-रहस्य, २७ सकाम-धर्मसाधन, २८ सेवा-धमं, २६ होलीका त्योहार और उसका सुधार, ३० स्व-पर-वरी कौन ? ३१ वीतरागकी पूजा क्यो ? ३२ वीतरागसे प्रार्थना क्यो ? ३३ पुण्य-पापकी व्यवस्था कसे ? ३४ परिग्रहका प्रायश्चित्त, ३७ वडा दानी कौन ? ३८ बहा दानी और छोटा दानी,३६ भारतकी स्वतत्रता, उसका झडा और कर्तव्य, ४० महावीरका सर्वोदय-तीर्थ, ४१ सर्वोदयके मूलसूत्र । प्राय ५०० पृष्ठोके इस सदा उपयोगी सुन्दर सजिल्द खण्डका मूल्य केवल पांच रुपये है । इस खण्ड पर प्राप्त विद्वानोंको बहुतसी सम्मितियों मेसे कुछ नमूने के तौर पर इस प्रकार हैं -- डा० हीरालालजी जैन एम० ए०, डी० लिट० जबलपुर "इन लेखोमे ऐतिहासिक महत्त्वके अतिरिक्त वर्तमान परिस्थितियोके सम्बन्धमे भी मार्ग-दर्शनकी प्रचुर सामग्री उपलब्ध है ।...''इस प्रकार हम प० जुगलकिशोरजी मुख्तारको जनसमाजमे नये युग-निर्माण मे एक महान् अग्रणी कह सकते हैं, जिसके प्रचुर प्रमाण उनके प्रस्तुत लेखोमें विद्यमान है । अन्धविश्वामो व अज्ञान पूर्ण मान्यतामोको कठोर आलोचनाको माथ-साथ शास्त्रीय आधार और स्थिर आदर्शोका पक्षपात तथा नवनिर्माणका सावधानी पूर्ण प्रयत्न पंडितजीकी

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