Book Title: Tattvanushasan Namak Dhyanshastra
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 343
________________ ६२ १०६ २०६ भाष्यमे उद्धृत-वाक्यानुक्रमणी २३३ ॐ अर्हन्मुखकमलवासिनि १११,२१४) ओम्-प्रणवे, आरम्भे, स्वीकारे० चतुर्विशतिपदान्यालिख्य १०७ ॐ ह्न पूर्वक्रमाचार्य चत्वार प्रत्ययास्ते ननु चरियावरिया वदसमिदि- ८१ कषायमल-विश्लेषात् १८७ चलणरहिओ मणुस्सो २१३ काय-वाक्य-मनसा प्रवृत्तयो ७ चारित्त खलु धम्मो ५५ काय-वाड-मन कर्म योग ६, २० | चिन्ता अन्त करणवृत्ति कालो वि सोच्चिय जहिं ९० चु-पू वैश्यान्वयौ पीता किंचिदूना निविडरूपतया १९५ चेतना ज्ञानरूपेय १६७ किंचिन्न्यूनान्त्यदेहानु- १६५ ज, झ किं बहुणा सालब ६५ जच्चिय देहावत्था कुगलाऽकुशल कर्म जन्म-जरामय-मरण कु भकेन तदम्भोज- १६७ जह चिर सचियमिधण २१२ केनचित्पर्यायेगेष्टत्वात् ज किंचिवि चिंततो क्षणिककान्तपक्षेपि २१० ज थिरमज्झवसाण क्षपयजितान्मलान् ज परमम्पय तच्च जीव-कर्म-प्रदेशाना गइपरिणयाण धम्मो जीवशब्द स बाह्यार्थ १३५ गणहरवलयेण पुणो जीवाऽजीवा भावा गदिमधिगदस्स देही जीवाऽजीवास्रवबन्ध गहिय त सुअणाणा गुणपर्ययवद्रव्यम् जीवादी सद्दहण (प्रवचनसार) ३८ गुप्तित्रय भवति तस्य जीवादी सद्दहण (दसणपाहुड) ३८ गुल्फोत्तानकरागुष्ठ जेण सरूविं झाइयड घनविवरतया किंचिदूनाकृति १६५ जो खलु ससारत्यो २६ घनविविरतया धना निविडा १६५ | जो जाणदि अरहत ७८ घातिकर्मक्षयादाविर्भूता ४ ज्ञानदर्शनचारित्र १३४ ६० ५८ ११५ १७१

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