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तत्त्वानुशासन अल्पज्ञानसे भी सिद्धिकी प्राप्ति होती है, मोक्ष तक मिलता है, इस बातको स्वामी समन्तभद्रने 'ज्ञानस्तोकाच्च मोक्ष स्यादमोहान्मोहिनोऽन्यथा'' इस वाक्यके द्वारा स्पष्ट किया है-यह बतलाया है कि अल्पज्ञानसे भी मोक्ष होता है, यदि वह अल्पज्ञान मोहसे रहित है और यदि मोहसे युक्त है तो उस अल्पज्ञानीके मोक्ष नहीं होता।
धर्मके लक्षण-भेदसे धर्म्यध्यानका प्ररूपण सददृष्टि-ज्ञान-वृत्तानि धर्म धर्मेश्वरा विदुः । तस्माद्यदनपेतं हि धयं तद्ध्यानमभ्यधुः ॥५१॥ 'धर्मके ईश्वरों-तीर्थकरोंने सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्रको 'धर्म' कहा है, उस धर्म-चिन्तनसे युक्त जो ध्यान है वह निश्चितरूपसे धर्म्यध्यान कहा गया है।'
व्याख्या-'धर्मादनपेत धर्म्यम' इस निरुक्तिके अनुसार धर्मसे युक्त जो ध्यान है उसका नाम धर्म्यध्यान है। इस ध्यानमे धर्मका वह स्वरूप विवक्षित होता है जिसे लेकर ध्यान किया जाता है । यहाँ धर्मका वह स्वरूप दिया गया है जिसे स्वामी समन्तभद्रने अपने समीचीन-धर्मशास्त्र (रत्नकरण्ड) की तीसरी कारिकाके पूर्वार्धमे दिया है, उस कारिकाका वह पूर्घि प्रस्तुत पद्यके पूर्वाधरूपमे ज्योका त्यो उद्धृत है। यह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्ररूप रत्नत्रयधर्म है । इस धर्मके स्वरूपका जिस ध्यानमे एकाग्रचिन्तन हो उसे यहाँ धर्म्यध्यान कहा गया है। १ देवागम का०६८ २ धर्मादनपेत धयं । ( सर्वार्थ ० तथा तत्त्वा० वा० ६-२८)
तत्रानपेत यधर्मात्तद्ध्यान धर्मामिष्यते । ( आर्ष २१-१३३)