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तत्त्वानुगासन
'चार पत्रोवाले हृदय-कमलमे पंचपरमेष्ठियोंके वाचक अ, सि, आ, उ, सा ये पांच अक्षर ज्योतिष्मान् रूपमें (कमलपत्रादिक पर) प्रदक्षिणा करते हुए ध्यान किये जानेके योग्य हैं।'
व्याख्या-जिन पांच अक्षरो अ, सि, आ, उ, सा को यहाँ ध्येय बतलाया है वे क्रमश अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय
और साधु परमेष्ठीके वाचक, उनके आद्याक्षररूप, नाम हैं । इनका ध्यान हृदयमे चार पत्रोवाले कमलकी कल्पना करके किया जाता है। कमलकी कणिका पर 'अ' अक्षरकी, सम्मुखवाले पत्र पर 'सि' की, दक्षिणपत्र पर 'आ' की, पश्चिमपत्र पर 'उ' की और उत्तराभिमुखीपत्र पर 'सा' अक्षरकी स्थापना की जाती है। पाँचो अक्षर ज्योतिष्मान् हैं, उनसे ज्योति छिटक रही है और वे अपने स्थानो पर प्रदक्षिणा करते हए घूम रहे है, ऐसा चिन्तन किया जाना चाहिए। ध्यायेद-इ-उ-ए-ओ च तद्वन्वर्णानुचिष.' । मत्यादि-ज्ञान-नामानि मत्यादि-ज्ञानसिद्धये ॥१०३॥
'उसी प्रकार ध्याता चार पत्रोवाले हृदय-कमलमे मति आदि पांच ज्ञानके नामरूप जो अ, इ, उ, ए, ओ ये पाँच अक्षर है उन्हे मतिज्ञानादिकी सिद्धिके लिये ऊँची उठती हुई ज्योतिकिरणोके रूपमे ध्यावे-अपने ध्यानका विषय बनावे ।' __व्याख्या-जिस प्रकार पूर्व पद्यमे अ-सि-आ-उ-सा रूप पांच अक्षरोके ध्यानका विधान है, उसी प्रकार इस पद्य मे अ, इ, उ, ए, ओ नामक पांच अक्षरोके ध्यानका विधान है। ये पाँच अक्षर क्रमश मति, श्रुत, अवधि, मन पर्यय और
१. मु मे मन्त्रानुदर्चिष ।