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ध्यान - शास्त्र
ध्येय के नाम - स्थापनादिरूप चार भेद
नाम च स्थापना' द्रव्यं भावश्चेति चतुर्विधम् । समस्त व्यस्तमप्येतद् ध्येयमध्यात्म - वेदिभिः ॥ ६६ ॥
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'अध्यात्म-वेत्तानो के द्वारा नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप चार प्रकारका ध्येय समस्त तथा व्यस्त दोनो रूपसे ध्यानके योग्य माना गया है ।'
व्याख्या - यहाँ ध्येय - वस्तुओको चार भेदोमे विभक्त किया गया है - १ नाम ध्येय, २ स्थापना- ध्येय, ३ द्रव्य ध्येय, ४ भावध्येय - और यह सूचना की गई है कि आत्मज्ञानी इन सभीको अथवा इनमेसे चाहे जिसको अपनी इच्छानुसार ध्येय बना सकता है । इन चारोंके लक्षण तथा स्वरूपादिका निर्देश आगे किया गया है ।
नाम - स्थापनादि ध्येयोका सक्षिप्त रूप
वाच्यस्य वाचकं नाम प्रतिमा स्थापना मता । गुण- पर्ययवद्रव्यं भावः स्याद्गुण- पर्ययो ॥१००॥
'वाच्यका जो वाचक वह 'नाम' है, प्रतिमा 'स्थापना' मानी गई है; गुण- पर्यायवान्को 'द्रव्य' कहते है और गुण तथा पर्याय दोनो 'भाव' रूप है ।'
व्याख्या -- इस पद्यमे पूर्व पद्योल्लिखित चारो ध्येयोका सक्षिप्त स्वरूप दिया है । वाच्यका वाचक शब्द होता है । अत सज्ञा शब्दको यहीं नामध्येय कहा गया है । प्रतिमाका अभिप्राय प्रतिबिम्बसे है चाहे वह कृत्रिम हो या अकृत्रिम - और इसलिये स्थापनाध्येय यहाँ तदाकार - स्थापनाके रूपमे गृहीत है - अतदाकार स्थापना के रूपमे नही । द्रव्यका जो लक्षण गुण१ मु मे स्थापन । २. त० सू० ५-३८
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