________________
ध्यान-शास्त्र
'वज्रसंहननके धारक, पूर्वनामक श्रुतज्ञानसे संयुक्त और दोनो उपशम तथा क्षपक-श्रेणियोंके प्रारोहणमें समर्थ, ऐसे अतोत-महापुरुषोने इस भूमंडल पर शुक्लध्यानको ध्याया है।'
व्याख्या-भूतकालमे जिस योग्यतावाले महापुरुषोने शुक्लध्यानको धारण किया उसका उल्लेख करते हुए यहाँ प्रकारान्तरसे उस ध्यान-सामग्रीको सूचना की गई है, जिसके बल पर शुक्लध्यान लगाया जा सकता है और वह है वजूसहननको प्राप्ति, पूर्वागमवर्णित श्रुतज्ञानकी उपलब्धि और उपशम तथा क्षपक-श्रेणियोमे चढनेकी क्षमता।
धर्म्यध्यानके कथनकी सहेतुक प्रतिज्ञा ताहासामग्र्यभावे तु ध्यातुशुक्लमिहाक्षामान्' ।
ऐदयुगीनानुद्दिश्य धर्म्यध्यान प्रचक्ष्महे ॥३६॥ 'इस क्षेत्रमे उस प्रकारको वज्रसंहननादि-सामग्रीका अभाव होनेके कारण जो शुक्लध्यानको ध्यानेमे असमर्थ हैं उन इस युगके साधुकोको लक्ष्यमे लेकर मै धर्म्यध्यानका कथन करूंगा।' ___व्याख्या-यहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि शुक्लध्यानके लिये वजसहननादिरूप जिस सामग्नीकी आवश्यकता पिछले पद्यमे व्यक्त की गई है उसका आजकल इस क्षेत्रमे अभाव है, जिसके कारण शुक्लध्यान यहाँ नहीं बन सकता। इसीसे वर्तमान युगके ध्यानयोगियोको लक्ष्य करके यहाँ धर्म्यध्यानके कथनकी प्रतिज्ञा की गई है।
अष्टागयोग और उसका सक्षिप्त-रूप ध्याता ध्यान फल ध्येयं यस्य यत्र यदा यथा। . इत्येतदत्र बोद्धव्यं ध्यातुकामेन योगिना ॥३७॥
१.पा क्षमात् ।