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मूलका मगलाचरण और प्रतिज्ञा सिद्ध-स्वार्थानशेषार्थ-स्वरूपस्योपदेशकात् । पराऽपर-गुरून्नत्वा वक्ष्ये तत्त्वानुशासनम् ।।१॥ 'जिनका स्वार्थ सिद्ध होगया है-जिन्होने शुद्ध-स्वरूपस्थितिरूप अपने आत्यन्तिक (अविनाशी) स्वास्थ्यकी' साधना कर उसे प्राप्त कर लिया है तथा जो सम्पूर्ण अर्थतत्त्व-विषयक स्वरूपके उपदेशक हैं---जिन्होने केवलज्ञान-द्वारा विश्वके समस्त पदार्थोंको जानकर उनके यथार्थ रूपका प्रतिपादन किया हैउन 'पर' और 'अपर' गुरुवोको-समस्त कर्म-कलक-विमुक्त निष्कल-परमात्मा सिद्धोको और चतुर्विध घातिकर्म-मलसे रहित सकल-परमात्मा अर्हन्तोको तथा अर्हद्वचनानुसारि-तत्त्वोपदेशकारि-अन्यगणधर-श्रुतकेवली आदि गुरुवोको नमस्कार करके मै तत्त्वानुशासनको कहूँगा-तत्त्वोका अनुशासन-अनुशिक्षण जिसका अभिधेय-प्रयोजन है ऐसे 'तत्त्वानुशासन' नामक ग्रन्थकी रचना करूंगा।'
व्याख्या-यह पद्य मगलाचरणपूर्वक ग्रन्थ रचनेकी प्रतिज्ञाको लिये हुए है । मगलाचरण दो प्रकारके गुरुवोको नमस्काररूप .१ स्वास्थ्य यदात्यन्तिकमेष पुसा स्वार्थो न भोगः परिभगुरात्मा।
-स्वयम्भूस्तोत्रे, समन्तभद्र.