Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 11
________________ दोनों चार-चार प्रकार के हैं संसार के कारण हैं, त्याज्य है, क्रमशः तिथंच गति नरक गति को ले जाने वाले हैं। ३. धर्मध्यान स्वर्ग का कारण है परम्परा से मोक्ष का. पंचम भाव में हो सकता है। ये आशा विषय, विपाक विचय, अपाय विषय, संस्थान विचय ४ प्रकार का है-१. पिण्डस्थ, २. पदस्थ, ३. रूपस्थ, ४. रूपातीत के भेद से भी चार प्रकार का है। पिण्डस्थ की पृथ्वी अग्नि जल आदि ५ धारणाओं एवं ध्यान का समस्त विषय सचित्र पेज ३१२ से आचार्य श्री ने बहुत ही अच्छा वर्णन किया है। चित्रों को देखकर अभ्यास करने से सरलता से ध्यान मार्ग में प्रवृत्त हो सकते हैं। ४. शुक्लध्यान इस पंचम काल में नहीं होता है साक्षात् मुक्ति का कारण है। सभी साधर्मी जन इस अन्य राज का स्वाध्याय कर आत्मा कल्याण करें इसी शुभ भावना के साप। २४-२-१९१२ सोमवार विनीत: फागुन वदी ७ सं० २०४८ जिन चरण सेवक श्री चन्दा प्रभु जो शानकल्याणक महावीर प्रसाद जैन सर्राफ एवं १३२५. चांदनी चौक श्री गुगानागी info amarn.

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