Book Title: Tao Upnishad Part 01 Author(s): Osho Rajnish Publisher: Rebel Publishing House PunaPage 93
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free बुद्ध सारे गुरुओं के पास भटक लिए, सारे शास्त्रियों के पास भटक लिए, नहीं मिला। फिर वे अकेली अपनी यात्रा पर चले गए। लेकिन अपनी अकेली यात्रा पर जाने के पहले उन्होंने सब द्वार-दरवाजे खटखटा लिए। ध्यान रहे, अकेले की यात्रा भी वही कर सकता है, जिसने बहुतों के साथ चल कर देख लिया हो। अकेले की यात्रा पर भी वही जा सकता है, जो बहुत सी यात्राओं पर बहुतों के साथ जा चुका हो। हमारे चारों तरफ न मालूम कितना-कितना जानने वाले लोग हैं। जितना वे जानते हैं, उतने दूर तक तो उनके साथ चल लेना उचित है। उसके पहले अकेले होने की जिद्द भी खतरनाक है और नुकसानदायक है। यह अनुभव भी आवश्यक है-अकेले हो जाने के लिए। तो बुद्ध ने एक-एक को खोजा। जो जहां तक ले जा सकता था, वहां तक ले गया। उसको धन्यवाद दिया कि उसने इतनी कृपा की, और विदा हुए। जब उन्हें परम सत्य का अनुभव हुआ, तब उन्होंने कहा कि मैं सोचता था कि शायद जिनके पास मैं गया हूं, वे मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहे हैं। लेकिन अब मैं कह सकता हूं, उन्होंने कुछ भी न छिपाया था। असल में, परम सत्य बात ऐसी थी कि उसे कोई दूसरा नहीं दे सकता था। उसे कोई दूसरा नहीं दे सकता था। और मैं दूसरे से ले भी नहीं सकता था, क्योंकि मेरे मौन की भी वैसी क्षमता न थी। मैं शब्द से ही पूछता था, शब्द से ही वे बताते थे। जब कोई परम मौन में उतरने लगे, तभी तो परम मौन में उसे कहा भी जा सकता है। लाओत्से कहता है, ज्ञानी न तो कर्म करते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वे व्यवस्था नहीं करते। इस भूल में न पड़ जाना। अकर्म का अर्थ निष्क्रिय नहीं है। अकर्म का अर्थ अकर्मण्यता नहीं है। इसका यह मतलब नहीं है कि ज्ञानी पड़े रहते हैं और कुछ नहीं करते। इसका मतलब बहुत और है। इसका मतलब यह है कि ज्ञानी न करने से कर्म की व्यवस्था करते हैं। एक पिता है। अगर पिता सच में आदृत है, और आदृत है तो ही पिता है, अन्यथा पिता होने में क्या है! कोई मेकेनिकल, कोई यांत्रिक अर्थ में तो कोई पिता का कोई अर्थ नहीं होता। अगर सच में पिता है, तो उसके कमरे के भीतर आते ही बेटा व्यवस्थित होकर बैठ जाता है। नहीं, उसे आते ही से डंडा नहीं बजाना पड़ता कि सब ठीक-ठाक बैठ जाओ, मैं पिता भीतर आ गया हूं। उसे व्यवस्था नहीं करनी पड़ती। वह आया और व्यवस्था हो जाती है। उसकी मौजूदगी। उसे पता भी नहीं चलता कि उसके आने से व्यवस्था हो गई है। उसका आना और व्यवस्था हो जाना, एक साथ घटित होता है। अगर पिता थोड़ा कमजोर है, तो उसे आंख से थोड़ा इशारा करना पड़ता है। लेकिन वह भी बड़ा शक्तिशाली पिता है जो आंख के इशारे से व्यवस्था करवा लेता है। उतने शक्तिशाली पिता भी खोजने आज मुश्किल हैं। हालांकि कमजोर है, क्योंकि मौजूदगी काम नहीं करती, उसको आंख से कुछ कर्म करना पड़ता है। उसे कुछ दबाव, कुछ इशारा, उसे कुछ करना पड़ता है। उसे सक्रिय होना पड़ता है। उससे भी कमजोर पिता है जो शब्द बोल कर कहता है, शांत हो जाओ, व्यवस्था से बैठो। हालांकि वह भी काफी शक्तिशाली पिता है। उतना शक्तिशाली पिता भी आज नहीं पाया जाता कि वह कहे और कोई मान ले! संभावना तो यह है कि वह कहे तो और न कोई माने! नसरुद्दीन से कोई उसका मित्र पूछ रहा है कि तुम्हारे सात बेटे हैं, परेशान कर डालते होंगे? नसरुद्दीन ने कहा, कभी नहीं, मुझे मेरे बेटों ने कभी कोई तकलीफ न दी। हां, एक दफे भर मुझे घुसा तानना पड़ा था इन सेल्फ डिफेंस, अपनी आत्मरक्षा के लिए। बस, बाकी और कभी नहीं। बाकी तो मैं ऐसी चाल ही नहीं चलता जिसमें कि झंझट आए। बाप कह रहा है! कि मैं ऐसी चाल ही नहीं चलता जिसमें झंझट आए। जहां बेटे होते हैं, वहां से बच कर निकल जाता है। सिर्फ एक बार आत्मरक्षा के निमित्त मुझे घुसा बांधना पड़ा था। बस और कभी मुझे उन्होंने कोई तकलीफ नहीं दी। और भी कमजोर बाप है, तो एक ही बात को पचास दफे कहेगा। कोई परिणाम न पाएगा तो भी इक्यावनवीं दफे कहने तो तैयार है। ठीक वैसी ही स्थिति ज्ञानी की है। ज्ञानी अकर्म से व्यवस्था करता है। उसकी मौजूदगी व्यवस्था देती है। कर्म से व्यवस्था नहीं करता। कर्म सब्स्टीटयूट है। ज्ञान न हो, तो फिर कर्म से व्यवस्था करनी पड़ती है। इसलिए आपको एक और राज खयाल में आ जाए। आप जितने अतीत में उतरेंगे, ज्ञानी को आप उतना ही अकर्मी पाएंगे। वह अपनी कुटी में बैठा है, या अपने जंगल में बैठा है। यद्यपि उसकी मौजूदगी व्यवस्था देती थी। और वह जंगल की कुटी में बैठा रहता और सम्राट को कुछ पूछना होता तो जंगल भागा हुआ आता। उसके चरणों में आकर बैठता। ज्ञानी राज्य में रहे, इसके लिए सम्राट कोशिश करते। वह राज्य में बना रहे, बस! वह मौजूद रहे! फिर जैसे-जैसे इतिहास में हम आगे हटें, वैसे हमें पता चलेगा कि ज्ञानी कर्म में उतर रहा है। बुद्ध और महावीर भी हमें बहुत कर्मठ नहीं मालूम पड़ते। लेकिन अगर आज बुद्ध और महावीर हों, तो हम उनसे कहेंगे, कुछ समाज-सेवा करिए, कुछ अस्पताल चलाइए, कोई स्कूल खोलिए, कोई ग्रामदान करवाइए। कुछ तो करिए! गरीबी हटाओ आंदोलन चलाइए, कुछ करिए। बैठे-ठाले आपका क्या फायदा है? अगर आज बुद्ध को पैदा होना पड़े, और लाओत्से को तो भूल कर पैदा नहीं होना चाहिए। अगर लाओत्से आज पैदा हो, तो हम उसको पता नहीं, पता नहीं हम उसको किस काम के लिए कहें कि तू यह काम कर! इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेजPage Navigation
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