Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 243
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free अभी पश्चिम को प्रयोगशालाओं में सिद्ध हुआ कि सर्पगंधा से बेहतर नींद लाने के लिए कोई ट्रॅक्वेलाइजर नहीं हो सकता है। अब जो पश्चिम में सर्पेन्टिना नाम से चीज उपलब्ध है, वह सर्पगंधा का ही अर्क है। लेकिन अब तो हमारे पास बहुत सूक्ष्म साधन हैं, जिनसे हम जान सकें। लेकिन जिस दिन सर्पगंधा खोजी गई थी, इतने सूक्ष्म साधन नहीं मालूम पड़ते हैं कि थे। उसकी खोज का रास्ता कुछ और रहा होगा। वह खोज का रास्ता स्त्रैण चित्त का ढंग था। और अब जो हम प्रयोगशाला में खोज कर रहे हैं, वह पुरुष चित्त का ढंग है। लाओत्से ने कहा है कि स्त्रैण-चित्त का अलग विज्ञान होता है और पुरुष चित्त का अलग विज्ञान होता है। हमारा जो विज्ञान है, आज पश्चिम में जो विज्ञान हमने विकसित किया है, वह पुरुष चित्त की खोज है। तर्क, काटना-पीटना, डिसेक्शन, तोड़ना- फोड़ना, विश्लेषण, उसकी विधि है। तोड़ो चीजों को, काटो चीजों को तर्क करो, विचार करो, गणित से हिसाब लगाओ और निष्कर्ष लो! लेकिन वे निष्कर्ष रोज बदलने पड़ते हैं। विज्ञान का कोई भी निष्कर्ष छह महीने भी टिक जाए तो सौभाग्य की बात है। क्योंकि छह महीने में काटने-पीटने के साधन और बढ़ गए होते हैं। तर्क की नई व्यवस्थाएं आ गई होती हैं। गणित में और सूक्ष्म उतरने के उपाय मिल गए होते हैं। पुराना हिसाब गलत हो जाता है । आज पश्चिम में वैज्ञानिक कहते हैं कि कोई बड़ी किताब लिखनी कठिन हो गई है। क्योंकि बड़ी किताब जब तक लिखो, तब तक जो तुम उसमें लिख रहे हो, वह गलत हो चुका होता है। तो विज्ञान पर छोटी-छोटी किताबें लिखी जाती हैं! किताब ही बंद हुई जा रही हैं, विज्ञान पर पीरियाडिकल्स होते हैं, मैगजीन्स होती हैं। उनमें अपना वक्तव्य दे दो; तुम्हारा वक्तव्य छप जाए, इसके पहले कि गलत हो जाए! क्योंकि छह महीने प्रतीक्षा, साल भर प्रतीक्षा संभव नहीं है। लेकिन इंटयूशन से, अंतर - अनुभूति से जो निष्कर्ष पाए गए हैं, उन्हें हजारों साल में भी बदलने की कोई जरूरत नहीं पड़ी। उपनिषद के सत्य आज भी वैसे ही सत्य हैं और ऐसी कोई संभावना नहीं दिखाई पड़ती कि कभी भी भविष्य में ऐसा कोई समय होगा, जिस दिन उपनिषद के सत्यों को बदलने की जरूरत पड़ेगी। क्या बात है आखिर? उपनिषद के सत्य में ऐसी क्या बात है कि उसको बदलने की कोई जरूरत नहीं है? लाओत्से जो कह रहा है, यह कितने ही दूरी पर कल्पना की जाए, तो भी सही रहेगा। इसमें भेद पड़ने वाला नहीं है। तो लाओत्से के पाने की पद्धति जरूर कुछ और रही होगी। क्योंकि हम तो जो भी पाते हैं, वह दूसरे दिन गलत हो जाता है। पुरुष के द्वारा जो भी खोज की जाती है, वह चूंकि तर्क- निर्भर है; वह साक्षात प्रतीति नहीं है, केवल मन का अनुमान है; इसलिए अनुमान तो कल बदलने पड़ेंगे, क्योंकि अनुमान सत्य नहीं होते। इसलिए विज्ञान कहता है कि हम जो भी कहते हैं, वह एप्रॉक्सीमेटली टू, सत्य के करीब-करीब है; सत्य बिलकुल नहीं है। अगर आप उपनिषद पढ़ें, तो बहुत और तरह की दुनिया है वहां। लाओत्से को पढ़ें, लाओत्से कोई तर्क नहीं देता। वह कहता है, दि वैली स्पिरिट डाइज नॉट, एवर दि सेम दिस इज ए मियर स्टेटमेंट, विदाउट एनी रीजनिंग। वह यह नहीं कह रहा है कि क्यों घाटी की आत्मा नहीं मरती है! वह कहता है, घाटी की आत्मा नहीं मरती है, वह हमेशा वैसी ही रहती है। यह तो सीधा वक्तव्य है। इसमें कोई तर्क नहीं है। उसको बताना चाहिए, क्यों नहीं मरती? क्या कारण है? पक्ष में दलीलें दो, गवाह उपस्थित करो। लेकिन लाओत्से कहता है, गवाह केवल वे ही उपस्थित करते हैं, जिन्हें अनुभूति नहीं होती । गवाह की जरूरत नहीं है । कहते हैं, मुल्ला नसरुद्दीन पर एक मुकदमा चला है। और अदालत में नसरुद्दीन ने कहा कि मेरी पत्नी ने कैंची उठा कर मेरे चेहरे पर हमला कर दिया और मेरे चेहरे को ऐसा काट डाला, जैसे कोई कपड़े के टुकड़े-टुकड़े कर दे। मजिस्ट्रेट बहुत हैरान हुआ; क्योंकि चेहरे पर कोई निशान ही नहीं मालूम पड़ते ! मजिस्ट्रेट ने पूछा, यह कब की बात है ? नसरुद्दीन ने कहा, यह कल ही रात की बात है। मजिस्ट्रेट और अचंभे में पड़ा। उसने कहा, नसरुद्दीन, कुछ सोच कर कहो। तुम्हारे चेहरे पर जरा सा भी निशान नहीं है चोट का और तुम कहते हो, कैंची से इसने टुकड़े-टुकड़े कर दिए तुम्हारे चेहरे की चमड़ी के ! नसरुद्दीन ने कहा कि चेहरे पर निशान की कोई जरूरत नहीं है। मैं बीस गवाह मौजूद किए हुआ हूं। चेहरे पर निशान की कोई जरूरत ही नहीं है। आई हैव गॉट दि विटनेसेस, ये बीस आदमी खड़े हैं। ये कहते हैं कि जो मैं कहता हूं, ऐसा हुआ है। असल में, विटनेस को हम खोजने तभी जाते हैं, जब स्वयं पर भरोसा नहीं होता। जब स्वयं पर भरोसा होता है, तो तर्क को भी विटनेस की तरह खड़े करने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। उपनिषद के ऋषि कहते हैं, ब्रह्म है। वे यह नहीं कहते, क्यों है। वे यह नहीं कहते कि जो कहते हैं नहीं है, वे गलत कहते हैं। उसके लिए भी कोई दलील नहीं देते। सीधे वक्तव्य हैं कि ब्रह्म है। अगर उपनिषद के ऋषि से आप पूछें कि दलील क्या है? तो वे कहते हैं, कोई दलील नहीं है, हम जानते हैं! और अगर तुम जानना चाहो, तो हम रास्ता बता सकते हैं; दलील हम नहीं बताते। लाओत्से कहता है कि हम रास्ता बता सकते हैं कि वह घाटी की आत्मा अमर है, इसका क्या अर्थ है ! वह स्त्रैण रहस्य क्या है, हम तुम्हें उसमें उतार सकते हैं। लेकिन हम कोई दलील नहीं देते; हम कोई तर्क नहीं देते। क्योंकि हम जानते ही हैं। जिन लोगों ने भी तर्क दिए हैं कि ईश्वर है, उन लोगों को ईश्वर के होने का कोई पता नहीं है। इसलिए जिन लोगों ने ईश्वर के होने के तर्क दिए हैं, उन्होंने केवल नास्तिकों के हाथ मजबूत किए हैं। क्योंकि तर्कों का खंडन किया जा सकता है। ऐसा कोई भी तर्क नहीं है, जिसका खंडन न किया जा सके। सभी तर्कों का खंडन किया जा सकता है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज

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