Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 271
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free वह बॉब थोड़ा हैरान हुआ कि मैकार्थर को मेरे साथ के चित्र का क्या प्रयोजन होगा! लेकिन उसने कापी भेज दी। और बाद में उसने पत्र लिखा मैकार्थर को कि मैं जानना चाहता हूं कि मुझ गरीब अभिनेता के साथ उतरवाए चित्र का आपके लिए क्या मूल्य होगा! मैकार्थर ने कहा कि जब मेरे बेटे ने तुम्हारे साथ चित्र देखा, तो उसने कहा, पिताजी, पहली दफे आप किसी शानदार और जानदार और प्रसिद्ध आदमी के साथ खड़े हुए हैं। उसके बेटे ने कहा। क्योंकि बेटे को मैकार्थर का क्या मूल्य! बेटे को बाप का कोई मूल्य नहीं होता। लेकिन बॉब, फिल्म अभिनेता, उसके साथ मैकार्थर खड़ा है, तो बेटे ने कहा कि यह चित्र शानदार है आपका। मैंने बहुत चित्र देखे, न मालूम किस-किस के साथ आप खड़े रहते हैं। यह आदमी है, सेलिब्रिटी! यह है एक। आपने कभी सोचा कि अगर आपको चित्र उतरवाने का मौका मिले, तो कभी मन में आंख बंद करके थोड़ा कंटेम्प्लेट करना कि किसके साथ उतरवाना चाहेंगे? सौ में निन्यानबे मौके तो ये हैं कि वह कोई अभिनेत्री या अभिनेता होगा। सौ में दस मौके ये हैं कि वह कोई राजनैतिक नेता होगा। क्या कोई एकाध मौका भी ऐसा है कि कोई पुण्यात्मा होगा? संदेह है। भला ऊपर से आप कह दें कि नहीं-नहीं, मैं नहीं ऐसा करूंगा। लेकिन भीतर! एक यूनिवर्सिटी में एक धर्मगुरु ने आकर विद्यार्थियों को कुछ पर्चे बांटे। एक क्वेश्चनेयर था। और उसमें पूछा कि तुम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक कौन सी समझते हो? तो किसी ने लिखा शेक्सपियर की किताब, किसी ने लिखा बाइबिल, किसी ने लिखा कुरान, किसी ने लिखा झेंदावेस्ता, किसी ने लिखा गीता। जिसको जो पसंद थी। सारे इकट्ठे करके उसने उन विद्यार्थियों से पूछा कि तुमने जो-जो किताबें लिखीं, इनको तुमने पढ़ा? उन्होंने कहा, पढ़ा हमने नहीं है। ये श्रेष्ठ किताबें हैं, इन्हें पढ़ता कोई भी नहीं। जो किताबें हम पढ़ते हैं, वे दूसरी हैं। पर उनके बाबत आपने जानकारी नहीं चाही थी। आपने पूछा था, दुनिया की श्रेष्ठ किताबें। असल में, श्रेष्ठ किताब की परिभाषा यही है कि जब उस किताब का नाम सब को पता हो जाए और कोई उसे न पढ़ता हो, तो समझना कि वह श्रेष्ठ किताब है। जब तक उसे कोई पढ़ता हो, तब तक वह श्रेष्ठ नहीं है, पक्का समझना। कुछ न कुछ गड़बड़ होगी। पुण्यात्मा के संसर्ग में, लाओत्से कहता है, संसर्ग की श्रेष्ठता है। और इस जगत में बड़ी से बड़ी श्रेष्ठता संसर्ग की श्रेष्ठता है। किसी पुण्यात्मा के साथ होने का क्षण इस जगत में स्वर्ण-क्षण है। लेकिन पुण्यात्मा के साथ होने का क्षण शारीरिक क्षण नहीं है। हो सकता है, आप बुद्ध के पास खड़े कर दिए जाएं और फिर भी पुण्यात्मा से संसर्ग न हो। क्योंकि पुण्यात्मा से संसर्ग होने के लिए आपकी तैयारी चाहिए। तैयारी कैसी? वही पानी के जैसी, नीचे बहने वाली तैयारी चाहिए! तो ही पुण्यात्मा का संसर्ग हो सकता है। अगर आप ऊपर चढ़ने के आदी हैं, तो पुण्यात्मा का संसर्ग नहीं हो सकेगा। इसलिए सत्संग का नियम था पुराना कि जब कोई किसी गुरु के पास जाए, तो उसके चरणों में सिर रख दे। वह खबर दे कि मैं पानी की तरह होने को तैयार हूं। वह सत्संग का अनिवार्य हिस्सा हो गया था-चरणों में सिर रख देना। सभी चीजें धीरे-धीरे औपचारिक, फॉर्मल हो जाती हैं। लेकिन इससे उनका मूल्य समाप्त नहीं होता। लेकिन जिस आदमी ने आकर चरणों में सिर रख दिया है, वह इस बात की खबर देता है, वह अपने बॉडी-गेस्चर से, अपने शरीर की भाषा से कहता है कि मैं चरणों में सिर रखने को तैयार हूं, अगर मुझे कुछ प्रसाद मिल जाए। मैं सब छोड़ने को, अपने अहंकार को गिराने को लिटाने को तैयार हूं, अगर मुझे कुछ प्रसाद मिल जाए। संसर्ग पुण्यात्मा से अभूतपूर्व क्षण है। बुद्ध का जन्म हुआ, तो हिमालय से एक महा तपस्वी उतर कर बुद्ध के घर आया। बुद्ध के पिता उसे स्वागत से भीतर ले गए। उन्होंने लाकर एक छोटे से बच्चे को, नवजात बच्चे को उसके चरणों में रखा। वह महा तपस्वी कोई सौ वर्ष का बूढ़ा था। उसकी आंख से झर-झर आंसू गिरने लगे। बुद्ध के पिता बहुत घबड़ा गए। उन्होंने कहा, आप हैं महा तपस्वी, आप रोते हैं मेरे बेटे को देख कर। कोई अपशकुन! यह आप क्या कर रहे हैं? यह खुशी का क्षण है, आप आनंदित हों और आशीर्वाद दें। आपको कुछ दुर्घटना दिखाई पड़ती है? उस बूढ़े तपस्वी ने कहा, नहीं, इस बच्चे के लिए नहीं; दुर्घटना मेरे लिए है। क्योंकि यह बच्चा बुद्ध होने को पैदा हुआ है। लेकिन मैं तब इसके संसर्ग को मौजूद न रहूंगा। यह मैं रो रहा हूं अपने लिए कि यह बच्चा बुद्ध होने को पैदा हुआ है और इसके चरणों में एक क्षण बैठ कर भी मैं वह पा लेता, जो मैंने अनंत जन्मों में चल कर नहीं पाया। लेकिन वह क्षण मुझे नहीं मिलेगा। मेरे मरने की घड़ी तो करीब आ गई। और इसके बुद्धत्व के फूल खिलने में अभी तो वक्त लग जाएगा, कोई चालीस साल लग जाएंगे। जब इसका फूल खिलेगा, तब मैं मौजूद नहीं रहूंगा। इसलिए मैं रो रहा हूं। लेकिन यह एक आदमी है, जो बुद्ध को देख कर रोता है कि चालीस साल बाद मौजूद नहीं रहेगा। ऐसे लोग थे कि बुद्ध उस गांव में जाएं, तो वे गांव छोड़ कर भाग जाएं। गांव छोड़ कर भाग जाएं! गौतमी नाम की एक महिला की कथा है कि वह बुद्ध जिस गांव में जाएं, वहां से भाग जाती थी। क्योंकि वह कहती थी, इस आदमी के संसर्ग में न मालूम कितने लोग बिगड़ गए। जो भी इसकी बातों में पड़ता है, झंझट में आ जाता है। न मालूम कितने लोग संन्यासी हो गए, न मालूम कितने लोग भिक्षु हो गए, न मालूम कितने लोग आंख बंद करके ध्यान में डूब गए। धन की फिक्र छोड़ दी, पद की फिक्र छोड़ दी। लोग न मालूम पागल हो जाते हैं! यह आदमी हिप्नोटिक है, यह आदमी सम्मोहक है। इससे बचना चाहिए। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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