Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 270
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free आदमियों को फैशन में होना परम धर्म है। फैशन के बाहर होना मतलब आप जिंदा ही नहीं हैं। फैशन के बीच होना चाहिए। फैशन के बीच होने के लिए सब आपको बदलना पड़ता है। अब अमरीका में इस वक्त बड़े से बड़ा जो प्रश्न है, वह यह है कि पुरानी कारों के ढेर लगते जा रहे हैं, जिनके लिए जगह नहीं है। लेकिन हर छह महीने में मॉडल बदल जाना चाहिए। पहले साल में बदलता था, अब वे छह महीने में बदलने लगे हैं। और अब जो हिडेन परसुएडर्स हैं ... अब एक साल में कार का मॉडल बदलने की कोई जरूरत नहीं है, जहां तक कार का संबंध है। जहां तक अहंकार का संबंध है, हर महीने बदला जाए तो ठीक है। रोज बदला जाए तो और भी ठीक है। लेकिन हर साल कार का मॉडल बदलने से भी काम नहीं चलता। फैक्ट्रियां ज्यादा हैं। तो अब अमरीका का जो हिडेन परसुएडिंग विभाग है, वह लोगों को समझा रहा है कि एक कार तो गरीब आदमी के पास भी होती है; बड़े आदमी के पास दो कार होनी चाहिए। इसलिए अब बड़ा आदमी वह है, जिसके पास दो कार हैं। बड़ा आदमी वह है, जिसके पास दो मकान हैं। एक मकान तो गरीब आदमी के पास भी होता है। इससे कोई आपकी प्रतिष्ठा नहीं है। तो अब अमरीका में हर आदमी को दो मकान चाहिए। एक मकान जिसमें वह रहेगा और एक मकान जिसमें उसका अहंकार रहेगा। वह तो नहीं रह पाएगा दो में एक साथ एक में उसका अहंकार रहेगा कि वह बड़ा आदमी है, वह खाली रखेगा। एक बड़े आदमी के घर में मैं ठहरा था। सौ कमरे हैं। अकेले पति और पत्नी हैं। मैंने पूछा कि इन सौ कमरों का करते क्या होंगे? उन्होंने कहा, इनका कुछ नहीं करते हैं, यही इनका मूल्य है। गरीब आदमी अपने कमरे का कुछ करता है, हम इनका कुछ नहीं करते हैं। बस ये हैं। इनकी सफाई करवाते हैं, इनकी सजावट करवाते हैं। और ये हैं। इनका हम करेंगे क्या! हम दो ही हैं, पति-पत्नी । बेटा भी नहीं है। फिर इन पति-पत्नी का काम तो एक कमरे में चल जाता है। पुराने ढंग के पति-पत्नी, नहीं तो दो कमरे की जरूरत पड़ती; एक में ही चल जाता है। बाकी ये निन्यानबे कमरे का क्या हो रहा है? ये हैं। इनमें कौन रहता है? इनमें भी कोई रहता है, वह हमारा अहंकार है। आदमी एक कमरे में रह जाए, अहंकार तो निन्यानबे कमरों को भी कम पाता है। स्थान की उपयुक्तता से हमें प्रयोजन नहीं । “मन की श्रेष्ठता उसकी अतल निस्तब्धता में है। ' लाओत्से कहता है कि मन की श्रेष्ठता उसकी अतल निस्तब्धता में है। और हमारे मन की श्रेष्ठता? उसकी गहन वाचालता में है। जो आदमी अपने मन में जितने शब्दों, जितने विचारों से भरा हो, उतना हमें श्रेष्ठ मालूम पड़ता है। और लाओत्से कहता है, अतल निस्तब्धता में, जहां मन बिलकुल शून्य और चुप हो जाता है, वहीं मन की श्रेष्ठता है। क्यों? क्योंकि जहां मन शून्य होता है, वहीं सत्य से मिलन है। क्यों? क्योंकि जहां मन शून्य होता है, वहीं शांति से मिलन है। क्यों? क्योंकि जहां मन शून्य होता है, वहीं दुख का अंत है। जितना मन चलता है, उतना दुख होगा। मन की जितनी यात्रा, दुख की उतनी बड़ी मंजिल उपलब्ध होगी। लेकिन हमारी सारी कोशिश यह है कि आप कितना जानते हैं, कितना सोचते हैं, कितना विचारते हैं, कितने शब्दों के धनी हैं। जो आदमी बोल नहीं सकता, ज्यादा शब्दों का उपयोग नहीं कर सकता, ज्यादा विचारों का उपयोग नहीं कर सकता, वह ग्रामीण हो जाता है। वह ग्राम्य हो जाता है, वह गंवार हो जाता है। जरूरी नहीं है कि गंवार आप से कम बुद्धिमान हो; अक्सर तो आपसे ज्यादा बुद्धिमान होता है। लेकिन एक बात पक्की है कि वह आपसे कम बोल सकता है, कम सोच सकता है, इसीलिए गंवार है। आप शब्दों को मैनिपुलेट कर सकते हैं, आप शब्दों के साथ खेल सकते हैं। हमारी सभ्यता में जो लोग सफल हैं, वे वे ही लोग हैं, जो शब्दों के संबंध में खेल करने में कुशल हैं। तो हम तो सिखाते हैं अपने बच्चों को कि शब्द सीखे, भाषा सीखे, साहित्य सीखे। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि साहित्य न सीखे। कह यह रहा हूं कि यह मन की परम उत्कृष्टता नहीं है। अगर कुछ भी इससे मिलता होगा, तो वह बाहर की उत्कृष्टताएं मिल जाती होंगी। इससे भीतर की उत्कृष् नहीं मिलती। अब तक जगत में जिन लोगों ने भीतर के आनंद को जाना है, वे वे ही लोग हैं, जो शब्द के कचरे को बाहर छोड़ कर भीतर चले गए हैं। “संसर्ग की श्रेष्ठता पुण्यात्माओं के साथ रहने में है । ' संसर्ग की श्रेष्ठता, सत्संग की श्रेष्ठता पुण्यात्माओं के साथ रहने में है! कभी आपने सोचा कि आप संसर्ग की श्रेष्ठता कब अनुभव करते हैं? अगर किसी गवर्नर के पास खड़े होकर चित्र उतर जाए, तब लगता है, सत्संग हुआ। या किसी फिल्म अभिनेता के पास खड़े होकर अगर चित्र उतर जाए, तो समझो कि सत्संग हुआ। एक हंसोड़ अमरीका का अभिनेता दूसरे महायुद्ध में युद्ध के मैदान पर गया- सैनिकों के मनोरंजन के लिए। बॉब उसका नाम है। मैकार्थर, जनरल मैकार्थर जहां मौजूद थे, वहां भी उसने आकर सैनिकों को हंसाने का कुछ कार्यक्रम किया । और वह बड़ा आनंदित हुआ कि उसे मैकार्थर के पास फोटो उतरवाने का मौका मिला। वह बड़ा आनंदित हुआ कि उसे मैकार्थर के पास फोटो उतरवाने का मौका मिला। फोटो उतर जाने के बाद मैकार्थर ने उससे कहा, बॉब, एक कापी मुझे भी भेज देना । इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज

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