Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

Previous | Next

Page 272
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लेकिन एक दिन बड़ी भूल हो गई। बुद्ध अचानक एक गांव में पहुंच गए। और कृशा गौतमी रास्ते से गुजर रही थी। उसे कुछ पता न था। बुद्ध का मिलना हो गया। भागती थी वर्षों से। बुद्ध के ही उम्र की थी और बुद्ध के ही गांव की थी। भागती थी वर्षों से; जहां बुद्ध जाएं, वहां छाया से बचती थी। लेकिन इतना जो भागता है, उसका रस तो है ही। इतना जो बचता है, उसका भय तो है ही। और बुद्ध की प्रतिभा का खयाल भी तो है ही। वह अचानक रास्ते पर बुद्ध का आगमन हो गया। वह निकलती थी, उसने खड़े होकर देखा। एक क्षण रुकी और उसने कहा, क्या तुम कोई दूसरे बुद्ध आ गए? क्योंकि तुम मुझे खींचे लिए ले रहे हो! बुद्ध ने कहा, मैं वही हूं, जिससे तू भागती फिरती है। आज अचानक मिलना हो गया। वह उसी क्षण चरणों में गिर पड़ी, उसी क्षण उसने दीक्षा ली। बुद्ध ने कहा, लेकिन तू इतने दिन से भागती थी! उसने कहा, भाग-भाग कर भी मन में एक खयाल तो बना ही था कि एक बार इस आदमी को देख लूं। शायद इसीलिए भागती थी कि डरती थी कि देखा कि मैं गई। और आज आकस्मिक हो गया है। बदध को भी भागने वाले लोग हैं। महावीर को सुनते कान में आवाज न पड़ जाए, तो कान में अंगलियां डाल कर गुजरने वाले लोग हैं। जीसस को मार डालो, ताकि जीसस की बात लोगों तक न पहंचे, ऐसे लोग हैं। और लाओत्से कहता है, संसर्ग की श्रेष्ठता पुण्यात्माओं के साथ रहने में है। और पुण्यात्मा कौन है? किसे कहें पुण्यात्मा? कौन है पुण्यात्मा? क्या हमारे पास कोई कसौटी है कि हम नाप सकें कि कौन पुण्यात्मा है और कौन पापी है? नहीं, बस एक ही कसौटी है: जिसके पास, जिसके संसर्ग में आप अपने को खुला छोड़ कर बैठ पाएं और जिसके पास आनंद और जिसके पास शांति और जिसके पास प्रकाश की प्रतीति होती हो, वही पुण्यात्मा है! आप इसकी फिक्र मत करना कि वह क्या खाता है और क्या पीता है। आप इसकी फिक्र मत करना कि वह क्या पहनता है और क्या नहीं पहनता। आप इसकी फिक्र मत करना कि वह क्या बोलता है और क्या नहीं बोलता। आप इसकी भी फिक्र मत करना कि लोग उसके बाबत क्या कहते हैं और क्या नहीं कहते। आप खुद ही प्रयोग कर लेना। लेकिन प्रयोग करने के लिए आपको पहले अपने पर प्रयोग करना पड़े। वह पानी की तरह होना पड़े। पानी की तरह जो हो जाए, उसे पुण्यात्मा का तत्काल पता चल जाता है, संसर्ग का क्षण उपलब्ध हो जाता है। फिर सारा जगत कुछ भी कहे, फिर कोई भेद नहीं पड़ता है। लेकिन संसर्ग की श्रेष्ठता पुण्यात्माओं के साथ रहने में है, शासन की श्रेष्ठता सुव्यवस्था में है। और यह सुव्यवस्था लाओत्से की बड़ी अदभुत है। लाओत्से कहता है, सुव्यवस्था मैं उसे कहता हूं, जहां व्यवस्था की कोई जरूरत न हो। लाओत्से बहुत अजीब आदमी है! आई काल इट आर्डर, व्हेन नो आर्डर इज़ नीडेड। अगर सम्राट यहां प्रवेश करे और लोगों को चिल्ला-चिल्ला कर कहना पड़े कि सम्राट आ रहा है, शांत हो जाइए, तो लाओत्से कहता है, यह अव्यवस्था है। सम्राट यहां प्रवेश करे, लोग चुप होने लगें; लोगों को चुप जान कर लोग कहें कि मालूम होता है, सम्राट प्रवेश कर गया, क्योंकि लोग चुप हुए जा रहे हैं, यह व्यवस्था है। लाओत्से कहता है, जहां व्यवस्था जरूरी नहीं है। अगर गुरु को कहना पड़े कि मुझे आदर दो और तब कोई आदर दे, तो यह अनादर के ही बराबर है। यह कोई व्यवस्था नहीं है। लाओत्से कहता है, गुरु वह है, जिसे तुम्हें आदर देना ही पड़ता है। अचानक, तुम्हें भी पता नहीं चलता, कब तुमने आदर दे दिया। जब तुम सिर उठा रहे होते हो चरणों से, तब पता चलता है कि अरे, यह सिर झुका! तो लाओत्से कहता है आदर है। लाओत्से उलटा आदमी है। यह कहता है, जहां व्यवस्था की जरूरत है, वहां कोई व्यवस्था नहीं है। जहां पुलिस की जरूरत है चोरी रोकने के लिए, वह समाज चोरों का है। और जहां कारागृहों की जरूरत है अपराध रोकने के लिए, वह अपराधियों की जमात है। लेकिन जहां कोई कारागृह की जरूरत नहीं है; और जहां कोई पुलिस वाला खड़ा नहीं करना पड़ता; और जहां साधु-संन्यासी पुलिस वाले के दूसरे हिस्से की तरह लोगों को समझाते नहीं फिरते कि चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, यह मत करो, वह मत करो, जहां इसकी चर्चा ही नहीं चलती, वहीं व्यवस्था है। लाओत्से कहता है, शासन की श्रेष्ठता है व्यवस्था में। “कार्य-पद्धति की श्रेष्ठता कर्म की कुशलता में है।' और कर्म की कुशलता से लाओत्से का वही अर्थ है, जो कृष्ण का अर्थ है। कर्म में कुशल वही है, जिसका कर्ता खो जाए, जिसका करने वाला न रहे, बस कर्म ही रह जाए। क्योंकि वह कर्ता बीच-बीच में आकर कर्म की कुशलता में बाधा डाल देता है। कभी आपने देखा है कि कार चलाते वक्त अगर आप चूक जाते हैं, एक्सीडेंट होने की हालत आ जाती है, तो वह वही क्षण होता है, जब ड्राइविंग की जगह ड्राइवर बीच में आ जाता है-तभी। अगर अकेली ड्राइविंग हो, तो एक्सीडेंट की कोई संभावना नहीं है। आपकी तरफ से तो नहीं है; दूसरे की तरफ से हो, तो वह दूसरी बात है। लेकिन जब ड्राइवर बीच में आ जाता है, तब गड़बड़ हो जाती है। ड्राइवर का मतलब है, जब आप बीच में आ जाते हैं। जब सिर्फ ड्राइविंग ही नहीं होती, आप भी बीच में आकर गड़बड़ करने लगते हैं, सोच-विचार चल पड़ता है, या अकड़ आ जाती है कि मुझसे कुशल और कोई ड्राइवर नहीं, तभी एक्सीडेंट हो सकता है। जहां कर्ता है, वहां कर्म की कुशलता खो जाती है। कार्य की पद्धति की श्रेष्ठता है कर्म की कुशलता में, कर्ताहीन कर्म में। और कर्ताहीन कर्म तभी होता है, जब फल की कोई आकांक्षा नहीं होती। जब फल की आकांक्षा होती है, तो कर्ता मौजूद होता है। जब फल की कोई आकांक्षा नहीं होती, तो कर्म ही काफी होता है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

Loading...

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285