Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 279
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लेकिन जिसने खबर दी है, गलत खबर नहीं दी। चलने से आनंद मिल सकता है; लेकिन उसको ही, जिसे आनंद की फिक्र ही न हो। चलने का ही जिसे ध्यान हो, आनंद की फिक्र ही न हो। आनंद बाइ-प्रॉडक्ट है। जब कोई चलने में इतना तल्लीन हो जाता है कि चलने वाला मिट जाता है और चलने की क्रिया ही रह जाती है, तब आनंद का फूल खिलता है। जीवन घुमावदार है। अगर आप सोचते हैं कि किसी को प्रेम करने से आनंद मिलेगा, तो आपको कभी न मिल सकेगा। यद्यपि प्रेम करने से आनंद मिलता है। लेकिन वह उसे ही मिलता है जो प्रेम में डूब जाता है और आनंद की जिसे चिंता ही नहीं है। जिसे आनंद की चिंता है, वह प्रेम तो करता है, लेकिन ध्यान आनंद पर रखता है। पाता है कि प्रेयसी का हाथ भी हाथ में ले लिया, अब तक आनंद मिला नहीं। वह कहीं नहीं मिलने वाला है। फिर भी जो कहते हैं कि प्रेम से आनंद मिलता है, वे ठीक ही कहते हैं। असल में, प्रेम और आनंद में संबंध ऐसा नहीं है, जैसे हम पानी को गर्म करते हैं और वह भाप हो जाता है। कॉजल लिंक नहीं है। पानी को गर्म करिएगा, तो पानी भाप बनेगा ही। जीवन में जितने गहरे उतरिएगा, उतनी ही कॉजेलिटी, कार्य-कारण कम हो जाते हैं और उतने ही ज्यादा सहज परिणाम सघन हो जाते हैं। जीवन की जितनी गहरी बातें हैं, वे सब सहज परिणाम हैं। आप कहीं संगीत सुनने गए हैं। अब आप बैठे हैं बिलकुल रीढ़ को उठा कर, आसन साधे हुए कि आनंद मिलना चाहिए। आप सिर्फ थक जाएंगे, कोई आनंद नहीं मिलेगा। विश्राम को उपलब्ध हो जाइए, आंख बंद कर लीजिए, आनंद की बात ही छोड़ दीजिए, संगीत में डूबिए। अगर आप संगीत में इतने डूब गए कि आपको आनंद का भी खयाल न रहा, आप आनंद से भरे हुए घर लौट जाएंगे। यह आनंद का जो फूल है, आपके तनाव में नहीं खिलता, आपके विश्राम में खिलता है। और जो लोग भी साध्य के प्रति बहुत उत्सुक होते हैं, वे कभी विश्राम को उपलब्ध नहीं होते। इसलिए लाओत्से कहता है, ऊपर की तुम फिक्र छोड़ो, तुम पानी की तरह हो जाओ। तुम नीचे बह जाओ, तुम गड्ढों में भर जाओ। शिखर तो उपलब्ध हो ही जाते हैं। वह उनकी बात ही नहीं करता। वे हो ही जाते हैं, उनकी चर्चा की भी जरूरत नहीं है। लेकिन हम उलटे लोग हैं। अगर हम लाओत्से की बात भी सुनेंगे, तो भी हम इसीलिए सुनेंगे कि लाओत्से कहता है कि पहुंच जाओगे ऊपर, अगर नीचे गए। तो हम भरोसा कर लेना चाहते हैं कि पक्का है यह गणित कि हम नीचे चले जाएं और ऊपर न पहुंचें! तो उलटे और नीचे चले गए और ऊपर पहुंचने से वंचित हुए। पक्का है कि नीचे जाएंगे, तो ऊपर पहुंचेंगे! हम बिलकुल पक्का करके जाते हम नीचे तो पहुंच जाएंगे, ऊपर हम नहीं पहुंचेंगे। क्योंकि वह ऊपर पहुंचना जो था, वह पक्का करके जाने वालों के हाथ की बात नहीं है। उसके लिए कोई गारंटी नहीं है। और जहां गारंटी है, वहां वह नहीं होगा। वह घटना ही नहीं घटेगी। इस जीवन के विपरीत तर्क को समझ लेने की जरूरत है। मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, शांति चाहिए। मैं उनसे कहता हूं, शांति को भूल जाओ, तुम सिर्फ ध्यान करो। वे कहते हैं कि ध्यान करेंगे, तो शांति मिल जाएगी? मैं उनसे कह रहा हूं, शांति को तुम भूल जाओ, तुम सिर्फ ध्यान करो। वे कहते हैं कि अगर ध्यान करेंगे, तो शांति मिल जाएगी? मैं उनसे कहता हूं, तुम शांति को छोड़ो। क्योंकि तुम इतने दिन से शांति पाने की कोशिश कर रहे हो, नहीं मिली। अब तुम इसको छोड़ दो, अब तुम ध्यान करो। वे कहते हैं, क्या शांति का खयाल छोड़ देने से शांति मिल जाएगी? वह बात वहीं अटकी रहती है। सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन जब सौ वर्ष का हुआ, तो अचानक गांव के लोगों ने देखा कि वह इतना संतुष्ट, इतना आनंदित, इतना कंटेंटेड हो गया है कि लोग चकित हुए। क्योंकि उससे ज्यादा डिसकंटेंटेड आदमी खोजना मुश्किल था। बहुत असंतुष्ट आदमी था। हर चीज से परेशान आदमी था। हर चीज की शिकायत थी। एकदम आनंदित हो गया है। तो गांव के लोग इकट्ठे हो गए। और सारे गांव के लोगों ने कहा कि नसरुद्दीन, चमत्कार है! तुम और शांत हो गए! हम कभी सोच ही नहीं सकते थे। यह चमत्कार हो गया। इसका राज क्या है? नसरुद्दीन ने कहा कि मैंने निन्यानबे साल गंवाए शांत होने की कोशिश में। आज मैंने तय किया कि अब अशांति के साथ ही जी लेंगे। इतना ही राज है। आज मैंने तय कर लिया कि अब शांति नहीं चाहिए, अब अशांति के साथ ही जी लेंगे। हो गया बहुत। निन्यानबे साल कोशिश कर ली। शांति नहीं मिली। अब हम छोड़ते हैं। और सच, मैं एकदम शांत हो गया है। क्योंकि जो अशांति के साथ जीने को राजी है, उसकी शांति में क्या कमी रह जाएगी? जो दुख के साथ जीने को राजी है, उसके सुख को कौन छीन सकता है? और जो नीचे उतर कर आखिरी गड्ढे में पड़े रहने को तैयार है, उसके शिखर के छीनने का किसी के हाथ में कोई शक्ति नहीं है। जो ना-कुछ होने को तैयार है, वह सब कुछ हो जाएगा। और जो मिटने को राजी है, परमात्मा की संपदा, सारी संपदा उसकी है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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