Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 257
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लेकिन इतना समझ लेना जरूरी है कि जब भी आप ध्यान मांगते हैं, तब आप अपने अहंकार को पैडल दे रहे हैं। यह आपको स्मरण रख लेना जरूरी है, जब भी आप ध्यान मांगते हैं। आप घर के भीतर प्रवेश किए हैं और आपके बेटे ने उठ कर नमस्कार नहीं किया। आपके मन में जो पीड़ा होती है, वह पीड़ा इसलिए नहीं है कि बेटा असंस्कृत हो गया है, अशिष्ट हो गया है। यह सब रेशनलाइजेशन है। पीड़ा यह है कि बेटा भी ध्यान नहीं दे रहा है, अब कौन ध्यान देगा! सारा जगत गिरता हुआ मालूम पड़ता है; क्योंकि बेटा तक ध्यान नहीं दे रहा है! हिंदुस्तान में माता-पिता बड़े तृप्त रहे हैं सदा। क्योंकि उन्होंने बड़ा अच्छा इंतजाम कर लिया था। बेटा उठ कर सुबह से ही उनके पैर पड़ लेता था। दिन भर के लिए उनके हृदय की शांति हो जाती थी। अच्छा था। टेक्निकल था। व्यवस्था में आ जाता था, रूटीन हो जाती थी। न बेटे को उससे कोई तकलीफ होती थी, न कोई करना पड़ता था खास; लेकिन पिता दिन भर के लिए शांत हो जाता था। पश्चिम के पिता को कुछ न कुछ रास्ता खोजना पड़ेगा। क्योंकि पश्चिम में आदर प्रकट करने के लिए कोई ठीक इंतजाम नहीं किया उन्होंने। और आदर की मांग तो है ही। और आदर प्रकट करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। तो अड़चन होती है। आदर की मांग तो है ही। बाप चाहता है, जब वह घर में प्रविष्ट हो, तो बेटा उसे स्वीकार करे कि बाप घर में आ रहा है, घर का मालिक भीतर आ रहा है। मां भी यही चाहती है। बेटा भी यही चाहता है। सब यही चाहते हैं। छोटे से छोटे एक बच्चे का भी अहंकार यही चाहता है। सुना है मैंने कि नसरुद्दीन छोटा है और एक रास्ते पर बैठ कर सिगरेट पी रहा है। एक बूढ़ी औरत, भली, भद्र औरत रुकी और उसने नसरुद्दीन से कहा कि बेटे, तुम्हारी मां को पता है कि तुम सिगरेट पीते हो? नसरुद्दीन ने सिगरेट के धुएं का एक छल्ला छोड़ते हुए कहा, और तुम्हारे पति को पता है कि तुम सड़क पर रुक कर अजनबी आदमियों से बातचीत करती हो? अजनबी आदमी, स्ट्रेंज मैन! तुम्हारे पति को पता है कि एकांत में, निर्जन स्थान में, सड़क पर अजनबी आदमी से रुक कर बातचीत करती हो? छोटे से छोटे बच्चे में भी आकांक्षा है कि सब उसकी तरफ देखें। इसलिए माताएं सदा परेशान रहती हैं कि घर में मेहमान नहीं होते, तो बच्चे बड़े शांत रहते हैं; लेकिन घर में कोई मेहमान प्रवेश किया कि बच्चों ने उपद्रव शुरू किया। वह क्या वजह होगी? क्योंकि घर में मेहमान न हों तब बच्चे ऊधम करें, तो मां को भी चिंता नहीं है। लेकिन घर में कोई न हो, तो बच्चे शांत अपने काम में लगे रहते हैं। घर में कोई आए कि बच्चे गड़बड़ शुरू कर देते हैं। असल में, घर में किसी के आते ही से बच्चे भी कहते हैं, हम पर भी ध्यान दो, हम भी यहां हैं। मैं भी यहां हं, इसकी घोषणा बच्चे कैसे करें? वे चीजें पटक कर कर देते हैं। शोरगुल कर देते हैं, रोने लगते हैं, खाने की मांग करने लगते हैं। अभी घड़ी भर पहले उनकी मां कह रही थी कि कुछ खा लो; वे कहते थे, कोई जरूरत नहीं है। और अभी बस एक आदमी घर में प्रवेश किया, और उन्हें भूख लग आई। वह भूख नहीं लगी है। उनका अहंकार अभी से पैडलिंग सीख रहा है। वे कोशिश में लगे हैं कि कोई देख ले कि हम यहां हैं। मैं यहां हूं। बच्चे से लेकर बूढ़े तक यही बचपना है। इसका स्मरण रखें, तो लाओत्से का सूत्र खयाल में आ सके। दूसरे से ध्यान न मांगें। जो दूसरे से ध्यान मांगेगा, वह क्षणिक अहंकार को पैदा कर लेगा। लेकिन उसका क्षणभंगुर ही जीवन है। वह शाश्वत की निधि उसकी कभी भी अपनी न हो सकेगी। दूसरे पर ध्यान दें। जब लाओत्से कहता है कि सर्वमंगल के हेतु जीएं, लिविंग फॉर अदर्स, जब लाओत्से कहता है, तो उसका मतलब यह है कि ध्यान दूसरे पर दें। और जैसे ही आप दूसरे पर ध्यान देते हैं, आपकी जिंदगी में क्रांति शुरू हो जाती है। क्योंकि तब आप हंस सकते हैं, दूसरे की नासमझियां आपको दिखाई पड़नी शुरू हो जाती हैं। क्योंकि आपके ध्यान देते ही से आप देखते हैं, उसका अहंकार कैसा प्रज्वलित होकर जलने लगा। यही कल तक आपके साथ हो रहा था। लेकिन अब आप दया कर सकते हैं। दूसरे पर ध्यान देते ही आपको पता चलता है कि जितना ही आप गहरा ध्यान देते हैं दूसरे पर, उतने ही आप मिट गए होते हैं। और जब भीतर बिलकुल शून्य होता है-जैसे ही ध्यान दूसरे पर गया, भीतर शून्य हो जाता है-तब आपके जीवन में पहली दफा पता चलता है कि गैरत्तनाव की स्थिति क्या है। फ्रायड से किसी ने पूछा, जब वह काफी बूढ़ा हो गया, उससे किसी ने पूछा कि तुम इतने लोगों की मानसिक बीमारियों का अध्ययन करते हो, सुबह से सांझ तक इतने पागलों से तुम्हारा वास्ता पड़ता है, तुम्हारा दिमाग खराब नहीं हो गया? फ्रायड ने कहा, अपने पर ध्यान देने की सुविधा ही न मिली। अपने पर ध्यान दिए बिना पागल होना बहुत मुश्किल है। सुबह से लग जाता हूं दूसरे की चिंता में, रात दूसरे की चिंता करते सो जाता हूं। अपने पर ध्यान देने का अवसर न मिला। इसलिए बड़े वैज्ञानिक अक्सर शांत हो जाते हैं; क्योंकि सारा ध्यान देते हैं किसी और चीज पर। प्रयोगशाला में किसी परखनली पर, टेस्ट टयूब पर उनका सारा ध्यान लगा रहता है। आइंस्टीन के साथ दिक्कत थी। आइंस्टीन को अपना स्मरण नहीं रह जाता था। तो कभी-कभी वह छह-छह घंटे अपने बाथरूम में टब में बैठा रह जाता था, छह-छह घंटे! पत्नी दस-पच्चीस दफा आकर दस्तक दे जाती। लेकिन उसकी भी हिम्मत न पड़ती जोर से दस्तक देने की कि पता नहीं, वह किस खयाल में खोया हो! इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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