Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 260
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free उसकी प्रेयसी ने कहा, क्षमा करो, यू बोथ मेक मी सिक! और कोई बात नहीं है। तुम दोनों ही को देख कर मुझे मितली आती है, और कुछ नहीं होता। यही समानता है। किसी से भी कुछ कह दो, वह मानने को राजी है। कैसी-कैसी बातों पर लोग राजी हो गए हैं। स्त्रियां राजी हैं कि उनकी आंखें मछलियों की तरह हैं! किसी की आंखें नहीं हैं मछली की तरह। उनके ओंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह हैं! किसी के ओंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नहीं हैं। उनके शरीर से इत्रों की सुगंध आती है! किसी के शरीर से कभी नहीं आती। मगर सब राजी हैं! कवि राजी हैं कहने को, सुनने वाले राजी हैं, स्वीकार करने वाले राजी हैं। कहानियां पुरानी, पिटी हुई, कविताएं पुरानी, मरी हुई रोज कही जाती हैं और चलती चली जाती हैं। क्यों? वह इनर जो शैडो है, वह जो भीतर की अहंकार की छाया है, वह एकदम तृप्त होती है। कांटे से भी कहो कि तुम फूल हो, वह राजी हो जाता है। वह राजी हो जाता है। सजग होना पड़े! इस अंतर छाया के प्रति जागरूक होना पड़े। तो लाओत्से कहता है कि इस अंतर छाया के प्रति जो जागरूक हो जाए, सातत्य जिस सत्य का है, उससे उसके संबंध हो जाते हैं। जो इस अंतर छाया से बंधा रह जाए, उसके संबंध, जो क्षणभंगुर है, उससे ही होते हैं। इस सूत्र को दूसरे सूत्र में लाओत्से ने फैलाया है। “इसलिए तत्वविद अपने व्यक्तित्व को पीछे रखते हैं।' दोज हू नो, जो जानते हैं, वे अपने व्यक्तित्व को पीछे रखते हैं। जीसस ने कहा है, धन्य हैं वे, जो अंतिम खड़े होने में समर्थ हैं! क्यों जीसस का यह वक्तव्यः क्योंकि धन्य हैं वे, जो अंतिम खड़े होने में समर्थ हैं? क्योंकि जीसस कहते हैं, तुम्हें पता हो या न पता हो, जो अपने को अंतिम खड़ा कर लेता है, वह प्रथम खड़ा हो गया। क्योंकि इससे बड़ी और कोई गरिमा नहीं है। और इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं है। जिसने अपनी अंतर छाया के अहंकार को खो दिया, उसको अब द्वितीय करने का कोई भी उपाय नहीं है। वह प्रथम हो गया। बिना हुए प्रथम हो गया। अब उसे प्रथम खड़े होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर महावीर और बुद्ध ने सम्राट होने का पद छोड़ा, तो इसलिए नहीं कि सम्राट का पद छोड़ने से कोई अहंकार छूट जाएगा; बल्कि इसलिए कि जिनका अहंकार छूट गया, उन्हें अब सम्राट होने की कोई भी जरूरत नहीं है। अब वे सम्राट हैं। अब वे किस दशा में हैं। और कहां हैं, इससे कोई भी भेद नहीं पड़ता । इररेलेवेंट! अब बुद्ध जो हैं, भिक्षा का पात्र लेकर भीख मांग सकते हैं; लेकिन बुद्ध की आंखों में भिखारी खोजे से भी नहीं मिलेगा। कम से कम भिखारी अगर कोई आदमी इस जमीन पर हुआ है, तो वह बुद्ध है। और सबसे ज्यादा भीख उसने मांगी है। हाथ में भिक्षा का पात्र है। असल में, अब वह इतना निश्चिंत है अपने सम्राट होने के प्रति कि भिखारी का पात्र कोई फर्क नहीं लाता है। खयाल रखना, इतना निश्चिंत है! अपने सम्राट होने की बात इतनी पक्की हो गई है अब कि अब भीख मांगने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। हम अगर डरते हैं भीख मांगने में, तो उसका कारण यह नहीं है कि हम भीख मांगने में डरते हैं। उसका कारण यह है कि हम भीख मांगें, तो हम भिखारी ही हो जाएंगे। भीतर के सम्राट का तो हमें कोई भी पता नहीं है। भीख मांगी कि भिखारी हो गए। जो हम करते हैं, वही हम हो जाते हैं। महावीर और बुद्ध भीख मांग सके शान से सम्राट की। उसका कारण था। इतने आश्वस्त हो गए; जिस दिन अंतिम अपने को खड़ा किया, उसी दिन प्रथम होना स्वभाव हो गया। लाओत्से कहता है, “इसलिए तत्वविद अपने व्यक्तित्व को पीछे रखते हैं, फिर भी वे सब से आगे पाए जाते हैं। ' पोंछ डालते हैं अपने को, सब तरफ से हटा लेते हैं अपने को; फिर भी अचानक इतिहास पाता है कि वे सबसे आगे खड़े हो गए। आपको पता है? बुद्ध के समय में जो सम्राट थे बिहार में, उनमें से एकाध का नाम भी आपको पता है? खो गए। राजनीतिज्ञ थे, उनका नाम पता है? किसी को कोई पता नहीं है। और एक भिखारी सामने आकर खड़ा हो गया। बुद्ध के पिता ने बुद्ध को कहा था, तू पागल है। लोग जन्म भर मेहनत करते हैं, जीवन भर, तब भी ऐसे महल उपलब्ध नहीं होते। और यह साम्राज्य इतना बड़ा हमारी पीढ़ियों ने निर्मित किया है! और तू पागल की तरह इसे छोड़ कर जा रहा है। लेकिन बुद्ध के पिता का नाम अगर किसी को याद है, तो सिर्फ इसलिए कि बुद्ध, उनका लड़का, घर छोड़ कर गया था। अन्यथा बुद्ध के पिता का नाम इतिहास में कभी भी स्मरण नहीं हो सकता था। कोई कारण नहीं था। कोई जानता भी नहीं। क्योंकि बुद्ध के पिता जैसे सैकड़ों लोग सिंहासनों पर बैठ चुके और खाली कर चुके हैं। अगर आज बुद्ध के पिता का नाम मालूम है, तो सिर्फ एक वजह से कि एक लड़का भीख मांगने चला गया था। बुद्ध अपने राज्य को छोड़ कर चले गए; क्योंकि उस राज्य में रोज-रोज लोग आकर हाथ-पैर जोड़ते और कहते कि वापस लौट चलो। पड़ोसी के राज्य में चले गए। सोचा, वहां कोई नहीं सताएगा। लेकिन पड़ोसी सम्राट को पता चला, वह भागा हुआ आया। उसने कहा कि तू नासमझ है। अगर पिता से नाराज है, तो कोई फिक्र नहीं। तू मेरे घर चल। मैं तुझे अपनी लड़की से विवाह कर देता हूं। राज्य तेरा ही होगा; क्योंकि मेरी लड़की ही है सिर्फ । तू फिक्र मत कर। अगर पिता से नाराज है, मेरे घर चल । बुद्ध ने कहा, मैं नाराज किसी से नहीं हूं। मैं केवल बचता फिर रहा हूं। उधर पिता से बच रहा था, इधर आप पिता की तरह मिल गए। मुझ पर कृपा करो। मुझे अकेला छोड़ दो। क्योंकि तुम जो देना चाहते हो, उसका मेरे लिए अब कोई भी मूल्य नहीं है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज

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