Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 147
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free बहुत दुखद है वहां खड़ा होना, जहां आप हैं; इसे वह भी जानता है। बहुत अरुचिकर है यह बात जाननी कि मुझे कुछ भी पता नहीं है; यह वह भी जानता है। लेकिन वह यह भी जानता है कि इसे जाने बिना जानने के जगत में कोई यात्रा नहीं हो सकती। इसलिए लाओत्से ठीक कहता है। लाओत्से की यह किताब बहुत प्रचलित नहीं हो पाई; लाओत्से के ये वचन बहुत व्यापक नहीं हो पाए। क्योंकि कौन अज्ञानी बनने को राजी है? ज्ञानी बनने को हम सब राजी हैं। हमारे विश्वविद्यालय, हमारे स्कूल, हमारे कालेज, हमारे पंडित-पुरोहित, हमारे महात्मा-साधु, सब ज्ञान बांट रहे हैं। और मजा यह है कि इतना ज्ञान बंटता है, और इतना ही अज्ञान बढ़ता चला जाता है। जरूर इस ज्ञान के पीछे कहीं कोई भूल हो रही है। यह ज्ञान अज्ञान को तोड़ने वाला नहीं, बढ़ाने वाला सिद्ध हो रहा है। तो लाओत्से की बात तो कठिन मालूम पड़ेगी। साथ ही, वह कहता है, “वे उन्हें कोरे ज्ञान और इच्छादि से मुक्त रखने का प्रयास करते हैं।' इच्छाओं से मुक्त करने की बात तो हम सुनते हैं। साधारण साधु-संत भी इच्छाओं से मुक्त होने की बात करते हैं। इसलिए लगेगा कि लाओत्से की इस बात में तो कोई नई बात नहीं, ठीक है। नहीं, लाओत्से की इस बात में भी कुछ नई बात है। क्योंकि लाओत्से मानता है कि इच्छाएं सिर्फ संसार की नहीं होती, मोक्ष की इच्छाएं भी इच्छाएं हैं। इसलिए ज्ञानी लोगों को इच्छाओं से मुक्त रखने की कोशिश करता है। अगर हमारा साधारण साधु कह रहा होता, तो वह कहता, सांसारिक इच्छाओं से मुक्त रखने की कोशिश करता है। यह सांसारिक विशेषण जरूर ही जुड़ा होता है। इसका मतलब है कि असांसारिक इच्छाएं भी हो सकती हैं। जब मंदिरों में बैठ कर साध लोगों को समझाते रहते हैं कि सांसारिक इच्छाएं छोड़ो, तब उनका मतलब साफ है कि असांसारिक इच्छाएं भी हो सकती हैं। निश्चित ही, मोक्ष पाना है, परमात्मा के दर्शन करने हैं, जन्म-मरण से छुटकारा पाना है, ये तो असांसारिक इच्छाएं हैं। लेकिन लाओत्से को अगर समझना है, तो आपको समझना पड़ेगा, लाओत्से कहता है, इच्छा संसार है। सांसारिक इच्छाएं नहीं होती, इच्छा में होना ही संसार में होना है। ऐसा नहीं है कि कुछ इच्छाएं ऐसी भी हैं कि उनके द्वारा कोई आदमी मुक्त हो जाए। क्योंकि लाओत्से कहता है, इच्छा ही बंधन है। वह कोई भी इच्छा हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इच्छा की क्वालिटी में, गुण में कोई भेद नहीं होता। मैं धन चाहता है, तो क्या होता क्या है मेरे मन के भीतर? इस मैकेनिज्म को थोड़ा समझ लें। मैं धन चाहता हूं, तो मेरे भीतर क्या होता है? चाह होती है अभी, धन तो अभी नहीं होता। धन होगा भविष्य में-कल, परसों, कभी। अभी तो नहीं, कभी। मैं हूं अभी, धन होगा कभी। और मेरा जो अभी होना है, वह कभी जो हो सकता है धन, उसको चाहने की वजह से खिंचेगा और तनाव से भरेगा। जितने दूर होगा वह, उतना ही तनाव होगा। वर्ष भर बाद मिलेगा, तो वर्ष भर का तनाव होगा। मेरे मन को आज से वर्ष भर तक फैल जाना पड़ेगा; और वर्ष भर बाद जो धन है, उसको सपने में छूना और पकड़ना पड़ेगा। इच्छा का मतलब यह है। मोक्ष और भी दूर है। परमात्मा और भी दूर मालूम पड़ता है। अगर मुझे परमात्मा को पाना है, तो एक जन्म काफी नहीं मालूम होगा; अनंत जन्म लेने पड़ेंगे, तब मिलेगा। तो अनंत जन्मों तक मेरी इच्छा की बांह को मुझे फैलाना पड़ेगा-परमात्मा को पकड़ने के लिए। खिंच गया मैं, तन गया। इच्छा का अर्थ है, तनाव की प्रक्रिया। लाओत्से कहता है, ज्ञानी लोगों को इच्छादि से मुक्त करते हैं। उसका अर्थ है कि वे उनको तनाव से मुक्त करते हैं। ज्ञानी कहते हैं, अभी रहो-अभी, यहीं। कल को भूल जाओ। कल के धन को भी, कल के धर्म को भी, कल के यश को भी, कल के प्रभु को भी। क्योंकि अगर कल कुछ भी तुम्हारा है, तो इच्छा रहेगी, और तुम तने रहोगे। और तुम तने रहोगे और इच्छा बनी रहेगी, तो तुम बंधे रहोगेअशांत, पीड़ित, परेशान। लाओत्से कहता है, इच्छादि से। इच्छाओं में कोई विश्लेषण नहीं करता कि कौन सी इच्छाओं से। अगर आप साधारण धर्मग्रंथ पढ़ने जाएंगे, तो तत्काल फासला किया जाता है कि किन इच्छाओं से मुक्त हो जाओ-बुरी इच्छाओं से! अच्छी इच्छाओं से भर जाओ। सांसारिक इच्छाएं छोड़ दो; पारलौकिक इच्छाओं को निमंत्रण करो। इस जगत में पाने का इरादा छोड़ दो; यहां कुछ न मिलेगा। अगर पाना है, तो परलोक में! बल्कि ये सारे के सारे लोग जो इस तरह की बातें समझाते हुए रहते हैं, ये बड़े मजे की दलीलें देते हैं। वे कहते हैं कि यहां तुम जो भी पा रहे हो, यह क्षणिक है। और हम तुम्हें जो बता रहे हैं, वह शाश्वत है। बड़ा मजे का प्रलोभन है। यह लोभ को उकसाना है। वे यह कह रहे हैं कि तुम नासमझ हो, धन के पीछे दौड़ रहे हो। हम समझदार हैं, हम धर्म के पीछे दौड़ रहे हैं। और देखना कि तुम धन पा भी लोगे, तो तुमसे छूट जाएगा। और हम जब धर्म को पा लेंगे, तो हमसे कोई छुड़ा न पाएगा। तो इन दोनों आदमियों में जो फर्क है, वह होशियारी और चालाकी का है या इच्छा का है? यह जो दूसरा आदमी है, जो पारलौकिक इच्छा की बात कर रहा है, मोर कनिंग, ज्यादा चालाक मालूम होता है; मोर कैलकुलेटिंग, ज्यादा होशियार और गणित लगाने वाला मालूम होता है। वह कहता है कि इस जगत की स्त्रियों को पाकर क्या करोगे? इनका सौंदर्य अभी है और अभी नहीं हो जाएगा। स्वर्ग इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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