Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 229
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free सच तो यह है, फादर ही नई बात है, मदर पुरानी बात है। पिता को जन्मे हुए पांच-छह हजार वर्ष से ज्यादा नहीं हुआ। पिता से पुराना तो काका या चाचा या अंकल है। शब्द भी अंकल पुराना है फादर से, पिता से। पशुओं में, पक्षियों में पिता का तो कोई पता नहीं चलता, लेकिन मां सुनिश्चित है। इसलिए पिता की जो संस्था है, वह मनुष्य की ईजाद है। बहुत पुरानी भी नहीं है। पांच हजार साल से ज्यादा पुरानी नहीं है। लेकिन जब हमने मनुष्य में पिता को बना लिया, तो हमने बहुत शीघ्र परमात्मा के सिंहासन से भी स्त्री को हटा कर पुरुष को बिठाने की जल्दी की। और तब जिन धर्मों ने परमात्मा की जगह पिता को रखा, उनके हाथ से फेमिनिन मिस्ट्री के सूत्र खो गए; वह जो स्त्रैण रहस्य है, उसका सारा राज खो गया। और लाओत्से उस समय की बात कर रहा है, जब कि गॉड दि फादर का कोई खयाल ही नहीं था दुनिया में। और यह बहुत अर्थों में सोच लेने जैसी बात है। इसे कई तरफ से देखना पड़ेगा, तभी आपके खयाल में आ सके। एक बच्चे का जन्म होता है। पिता बच्चे के जन्म में बहुत एक्सीडेंटल है, उसका कोई बहुत गहरा भाग नहीं है। और अब वैज्ञानिक कहते हैं कि पिता के बिना भी चल जाएगा, बहुत ज्यादा दिन जरूरत नहीं रहेगी। पिता का हिस्सा बहुत ही न के बराबर है। जन्म तो मां से ही मिलता है। तो जीवन को पैदा करने की जो कुंजी है और रहस्य है, वह तो मां के शरीर में छिपा है। पिता के शरीर में वह कुंजी और रहस्य नहीं छिपा हुआ है। इसलिए पिता को कभी भी गैर-जरूरी सिद्ध किया जा सकता है। उसका काम एक इंजेक्शन भी कर देगा। और अगर मैं आज से दस हजार साल बाद किसी बच्चे का पिता बनना चाहूं, तो बन सकता हूं। लेकिन कोई मां अगर आज तय करे, तो दस हजार साल बाद मां नहीं बन सकती है। क्योंकि मां की मौजूदगी अभी जरूरी होगी, मेरी मौजूदगी जरूरी नहीं है। मेरे वीर्य-कण को संरक्षित रखा जा सकता है, डीप फ्रीज किया जा सकता है। दस हजार साल बाद इंजेक्शन से किसी भी स्त्री में वह जन्म का सूत्र बन सकता है। मेरा होना आवश्यक नहीं है। इसलिए बहुत जल्दी पोस्थुमस चाइल्ड पैदा होंगे। पिता मरे दस हजार साल हो गए, उसका बच्चा कभी भी पैदा हो सकता है। क्योंकि पिता का काम प्रकृति बहुत गहरा नहीं ले रही थी। गहरा काम तो मां का था। सृजनात्मक काम तो मां का ही था। मनोवैज्ञानिक कहते हैं, इसीलिए स्त्रियां दुनिया में कोई क्रिएटिव काम नहीं कर पाती हैं। क्योंकि वे इतना बड़ा क्रिएटिव काम कर लेती हैं कि और कोई सब्स्टीटयूट खोजने की जरूरत नहीं रह जाती है-एक जीवित बच्चे को जन्म देना! लेकिन पुरुष ने दुनिया में बहुत सी चीजें पैदा की हैं, स्त्री ने नहीं पैदा की हैं। पुरुष चित्र बनाता है, मूर्तियां बनाता है, विज्ञान की खोज करता है, गीत लिखता है, संगीत बनाता है। यह जान कर आप हैरान होंगे कि स्त्रियां सारी दुनिया में खाना बनाती हैं, लेकिन अच्छे खाने की खोज सदा ही पुरुष करता है। नए खाने की खोज पुरुष करता है। और दुनिया का कोई भी बड़ा होटल या कोई बड़ा सम्राट स्त्री-रसोइए को रखने को राजी नहीं है, पुरुष-रसोइए को रखना पड़ता है। चाहे चित्र बनता हो दुनिया में, चाहे कविता पैदा होती हो, चाहे एक उपन्यास लिखा जाता हो, चाहे एक नई मूर्ति गढ़ी जाती हो, वह सब काम पुरुष करता है। बात क्या है? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पुरुषर् ईष्या अनुभव करता है; स्त्री के समक्ष हीनता भी अनुभव करता है। वह भी कुछ पैदा करके दिखाना चाहता है, जो स्त्री के समक्ष सामने खड़ा हो जाए और कहा जा सके, हमने भी कुछ बनाया है, हमने भी कुछ पैदा किया है। और स्त्री कुछ पैदा नहीं करती, क्योंकि वह इतनी बड़ी चीज पैदा करती है कि उसके मन में फिर और पैदा करने की कोई कामना नहीं रह जाती। और एक स्त्री अगर मां बन गई है, तो कितना ही अच्छा चित्र बनाए, वह उसके बेटे या उसकी बेटी के सामने सदा फीका और निर्जीव होगा। इसलिए बांझ स्त्रियां जरूर कुछ-कुछ कोशिश करती हैं पुरुषों जैसी। वे जरूर पुरुष के साथ कुछ निर्माण करने की प्रतियोगिता में उतरती हैं। लेकिन एक स्त्री अगर सच में मां बन जाए, तो उसका जीवन बहुत आंतरिक गहराइयों तक तृप्त हो जाता है। स्त्री को प्रकृति ने सृजन का स्रोत चुना है। निश्चित ही, स्त्री के शरीर में, वह जिसे लाओत्से कह रहा है स्त्रैण रहस्य, उसे हमें समझना पड़ेगा, तो ही हम अस्तित्व में स्त्रैण रहस्य को समझ पाएंगे। और हमारी कठिनाई ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि सारी कोशिश जीवन को समझने की पुरुष ने की है। और सारी फिलासफीज, सारे दर्शन पुरुष ने निर्मित किए हैं। अब तक एक भी धर्म किसी स्त्री पैगंबर, स्त्री तीर्थंकर के आस-पास निर्मित नहीं हुआ है। सब शास्त्र पुरुषों के हैं। इसलिए लाओत्से को साथी खोजना मुश्किल हो गया, क्योंकि उसने स्त्रैण रहस्य की तारीफ की। पुरुष जो भी सोचेगा और जो भी करेगा, उसमें पुरुष जहां खड़ा है, वहीं से सोचता है। और पुरुष को स्त्री कभी समझ में नहीं आ पाती है। इसलिए पुरुष निरंतर अनुभव करता है कि स्त्री बेबूझ है, समथिंग मिस्टीरियस। कुछ है जो छूट जाता है। वह क्या है जो छूट जाता है? निश्चित ही, पुरुष और स्त्री साथ-साथ जीते हैं। पुरुष स्त्री से पैदा होता है, स्त्री के साथ जीता है, प्रेम करता है, जन्म, पूरा जीवन बिताता है। फिर भी क्या है जो स्त्री के भीतर पुरुष के लिए अनजान और अपरिचित रह जाता है? वही अनजान और अपरिचित तत्व का नाम लाओत्से कह रहा है, फेमिनिन मिस्ट्री। घाटी का रहस्य, अंधकार का रहस्य, निषेध की खूबी। क्या है स्त्री के भीतर? अगर एक स्त्री आपके प्रेम में पड़ जाए, तो भी आक्रमण नहीं करती है। प्रेम में भी आक्रमण नहीं करती है। प्रेम में भी प्रतीक्षा करती है। आक्रमण का मौका आपको ही देती है। आप कभी किसी स्त्री से ऐसा न कह सकेंगे कि तूने मुझे प्रेम में उलझा दिया, कि तूने मुझे विवाह में डाल दिया। स्त्रियां ही डालती हैं। लेकिन कभी आप किसी स्त्री से ऐसा न कह सकेंगे कि तूने मुझे प्रेम में उलझा इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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