Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 159
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free अब इसमें और देखने जैसी बात है। जो हमारे पास नहीं है, उसे पाने में समय की जरूरत लगेगी। टाइम विल बी नीडेड। क्योंकि जो हमारे पास नहीं है, वह आज ही नहीं मिल जाएगा। कल मिलेगा, परसों मिलेगा, अगले जन्म में मिलेगा-कब मिलेगा-समय लगेगा। लेकिन जो मेरे पास है, वह इसी वक्त छोड़ा जा सकता है, इंसटैनटेनियसली। उसके लिए समय की कोई भी जरूरत नहीं है। कल छोडूंगा, परसों छोडूंगा, यह सब बेकार की बात है। क्योंकि जो मेरे पास है, उसे मैं अभी छोड़ सकता हूं। और अगर कल पर टालता हूं, तो मेरे सिवाय और कोई जिम्मेवार नहीं है। लेकिन जो मेरे पास नहीं है, अगर वह मुझे अभी न मिले, तो मैं ही जिम्मेवार नहीं हूं। क्योंकि मैं सारी कोशिश कर लूं, तब भी न मिले। क्योंकि हजार चीजों पर निर्भर होगा कि वह मुझे मिले कि न मिले। आप तो चाह सकते हैं कि आकाश आपके आंगन में आ जाए। आप तो चाह सकते हैं कि सूरज आपके घर में बैठे। पर आपकी चाह ही है, चाह ही सकते हैं; यह होगा कि नहीं, यह हजार बातों पर निर्भर करेगा। यह अकेले आप पर निर्भर नहीं करेगा। इसके लिए सहारे मांगने पड़ेंगे। लाओत्से ने प्रार्थना के लिए कोई जगह नहीं है। लाओत्से कहता है, कोई सवाल ही नहीं है; तुम्हारे पास जितना है, उतना छोड़ दो। एक और मजे की बात है। और यह पूरा गणित समझ लेने जैसा है। मेरे पास दस रुपए हैं। समझ लें कि लाख रुपया अगर परफेक्शन मान लिया जाए, पूर्णता मान ली जाए। मेरे पास दस रुपए हैं और लाख रुपया पूर्णता का अंक है, तो मुझे बड़ी लंबी यात्रा करनी है। और आपके पास अगर नब्बे हजार रुपए हैं, तो आपको बड़ी छोटी यात्रा करनी है। और अगर आपके पास सिर्फ पांच रुपए की कमी है लाख में, तो आपकी यात्रा तो बहुत निकट है। और मेरी यात्रा उतनी ही दूर है, मेरे पास पांच रुपए हैं या दस रुपए हैं। अगर हम पूर्णता की तरफ चलें, तो हम सब एक ही जगह नहीं हैं। देन वी आर नॉट ईक्वल। किसी के पास पांच रुपए, किसी के पास दस, किसी पर दस हजार, किसी पर पचहत्तर हजार, किसी पर नब्बे हजार, किसी पर निन्यानबे हजार, किसी पर निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे। तो बड़ा फासला है। पूर्णता का अगर हम ध्येय रखें, तो आदमी समान नहीं हैं। लेकिन आपके पास निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे रुपए हैं और मेरे पास एक रुपया है; अगर शून्यता की तरफ जाना है, हम दोनों एक ही साथ जा सकते हैं। ईक्वलिटी पूरी है। मैं एक रुपया छोड़ दूं, आप अपने रुपए छोड़ दें। मैं शून्य हो जाऊंगा, आप शून्य हो जाएंगे। सिर्फ शून्य की तरफ जो यात्रा है, वह मनुष्य को ईक्वलिटी में खड़ा कर सकती है। अन्यथा नहीं कर सकती। तो जो परफेक्शन ओरिएंटेड सोसायटीज हैं-सभी हैं-वे कभी समान नहीं हो सकती हैं। सिर्फ शुन्य की तरफ जिन समाजों की यात्रा है, वे समान हो सकती हैं। क्योंकि शून्य के समक्ष, आपके पास पंचानबे हजार हैं, इससे फर्क न पड़ेगा। और मेरे पास पांच रुपए हैं, इससे फर्क न पड़ेगा। मैं पांच रुपए छोड़ कर वहीं पहुंच जाऊंगा, जहां आप पंचानबे हजार छोड़ कर पहुंचेंगे। कुछ ऐसा न होगा कि आपको बड़ा शून्य मिल जाएगा और मुझे छोटा मिलेगा। हमारी रिक्तता बराबर होगी। जिस घड़े में पूरा पानी भरा था, वह भी उलट कर खाली हो जाएगा। मेरे घड़े में एक ही बूंद थी, वह भी उलट कर खाली हो जाएगा। मेरे घड़े के खालीपन में और आपके घड़े के खालीपन में कोई हायरेरकी नहीं होगी। बस हम खाली होंगे। लेकिन पूर्णता की अगर दृष्टि हो, तो समानता असंभव है। असंभव है। और फिर यात्रा अलग-अलग होगी। और कब पूरी होगी, नहीं कहा जा सकता। समय की जरूरत पड़ेगी। और जिस धर्म को पाने में समय की जरूरत पड़े, वह धर्म समय से कमजोर होता है, स्वभावतः। जिस धर्म को पाने के लिए शर्त हो यह कि इतना समय लगेगा, वह धर्म बेशर्त न रहा, अनकंडीशनल न रहा। उस धर्म की शर्त हो गई कि इतना समय लगेगा। अगर ठीक से समझें, तो वह धर्म टाइम-प्रॉडक्ट हो गया, समय से उत्पन्न हुआ। और जो समय से उत्पन्न होता है, वह कालातीत नहीं होता। जिस चीज को समय के द्वारा पैदा किया जाता है, वह समय में ही नष्ट हो जाती है। ध्यान रखें, जो चीज समय के भीतर जन्मती है, वह समय के भीतर ही मर जाती है। जिसका एक छोर समय में है, उसका दूसरा छोर समय के बाहर नहीं हो सकता। लेकिन शून्यता तत्क्षण हो सकती है-इसी वक्त, अभी। यह तत्क्षण कहना भी गलत है। असल में, शून्यता क्षण के बाहर घटित होती है। भराव समय के भीतर होता है; रिक्तता समय के बाहर होती है। रिक्त होते ही समय के बाहर हैं आप। और रिक्त होने के लिए समय की कोई जरूरत नहीं है। इसलिए अगर लाओत्से के पास कोई जाकर पूछे कि मैंने बहुत पाप किए हैं, बहुत बुराइयां की हैं, मैं बहुत बुरा आदमी हूं, मेरी मुक्ति में कितनी देर लगेगी? तो लाओत्से कहता है, अभी हो सकती है, यहीं हो सकती है। लाओत्से कह सकता है, अभी हो सकती है, यहीं हो सकती है। क्योंकि वह कहता है, सवाल यह नहीं है। तुम्हें कुछ होना नहीं है; तुम जो हो, उसको भी छोड़ देना है। इसलिए लाओत्से ने कोई खयाल नहीं दिया इस बात का कि कितने जन्म तुम्हें लगेंगे, कितना वक्त लगेगा। नहीं, लाओत्से कहता है, अभी और यहीं। इसलिए लाओत्से ने जिस निर्वाण की बात की है, वह सडन एनलाइटेनमेंट है। अभी हो सकता है। इसमें क्षण भी गंवाने की जरूरत नहीं है। हां, तुम्हीं न चाहते होओ, तो बात अलग है। और कोई बाधा नहीं है। लाओत्से कहता है, और कोई बाधा नहीं है। तुम्हीं न चाहो, तो बात अलग है। और कोई बाधा नहीं है। और सब बहाने हैं। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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