Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 161
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free उसने इतना ही कहा कि मुझे प्रमाणपत्र दे दो। मन में उसके यह चल रहा है कि हद हो गई। हद हो गई, ऐसा कभी इतिहास में भी नहीं सुना था। सिंह ने उसे लिख कर एक प्रमाणपत्र दिया। वह लेकर वापस लौटी। गिलहरी अपनी जगह बैठी थी। उसने प्रमाणपत्र पढ़ कर सुनाया, जहां सिंह ने चर्चा की थी कि यह लोमड़ी है और बहुत खतरनाक जानवर है, और गिलहरी को इससे सावधान होना चाहिए, और इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए। उसने यह प्रिफेस, यह भूमिका सुन कर ही गिलहरी तो नदारद हो गई। उसने सोचा कि है तो पक्का। वह तो भाग गई। लेकिन लोमड़ी पढ़ने में इतनी तल्लीन हो गई थी और खुद की प्रशंसा पढ़ने में इतने धीरे-धीरे पढ़ रही थी कि उसने जब पूरा पढ़ पाई प्रमाणपत्र, तब देखा कि गिलहरी जा चुकी है। वह वापस लौटी। जब वह पहुंची सिंह के पास, तो देख कर हैरान हुई कि एक हिरण वहां खड़ा हुआ था और वह सिंह से कह रहा था, कोई लिखित प्रमाणपत्र है आपके पास? हम कैसे मान लें कि आप सिंह हो? लोमड़ी ने कहा, हद हो गई! अब यह सिंह बेचारा क्या करेगा? हम तो खैर प्रमाणपत्र ले गए। सिंह ने उस हिरण से कहा कि देख, अगर मुझे भूख लगी हो, तो तुझे प्रमाणपत्र लेने की फुर्सत भी नहीं मिलेगी। सिद्ध हो जाएगा। और अगर मुझे भूख न लगी हो, तो आई डोंट केयर। इससे कोई मतलब ही नहीं है कि तू मानता है मुझे सिंह कि नहीं मानता। अगर मुझे भूख नहीं लगी, तो मैं तेरी चिंता नहीं करता कि तू क्या मानता है। और अगर मुझे भूख लगी है, तो तुझे फुर्सत भी न मिलेगी इस बात की फिकर करने की कि मैं कौन हूं। लोमड़ी ने कहा कि महाराज, यह मुझसे क्यों न कहा? मुझे क्यों सर्टिफिकेट दे दिया? एक साधारण सी गिलहरी, मैं भी उसको ठीक कर देती। सिंह ने कहा, लेकिन तूने मुझे बताया ही नहीं था कि गिलहरी ने सर्टिफिकेट मांगा है। मैं तो समझा कि सम स्टुपिड ह्यूमन बीइंग, कोई मूढ़ आदमी ने मांगा होगा। इधर कुछ देर से ये जंगली जानवर भी आदमी की बेवकूफी में पड़ने लगे हैं, सर्टिफिकेट मांगते आदमी की बुनियादी नासमझियों में से नेमिंग, लेबलिंग, नामकरण बुनियादी नासमझियों में से है। नाम देकर बड़ी सुविधा हो जाती है। आदमी कहता है, मैं परमात्मा से अपने को भर रहा हूं। तब वह भूल जाता है कि यह द्वैत है। यह भी द्वैत है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किससे तुम भर रहे हो। एक बात तय है कि तुम घड़े हो और किसी से भरे जा रहे हो। वह संसार है, कि परमात्मा है, कि प्रेम है, कि प्रार्थना है, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। तुम नहीं हो। तुम तो भरने वाले हो, या जिसमें भरा जा रहा है, वह हो। फिर जो भी भरा जा रहा है, उसका कोई भी नाम हो-उसको संसार न कह कर मोक्ष कहने लगेंगे, तो फर्क नहीं पड़ने वाला है-द्वैत जारी रहेगा। असल में, दूसरे से ही हम भरे जा सकते हैं। अगर अपना ही होना, शुद्ध अपने ही होने में थिर होना है, तो सिवाय शून्य होने के और कोई उपाय नहीं है। इसलिए लाओत्से कहता है, “ताओ है रिक्त घड़े जैसा। इसके उपयोग में सभी प्रकार की पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है।' इसके उपयोग में, अगर धर्म का उपयोग करना है, तो पूर्णता के उपद्रव से, समस्त पूर्णताओं से सावधान रहना अपेक्षित है। यह भी थोड़ा सोचने जैसा है। उपयोग शब्द के भीतर थोड़ा उतरें तो खयाल में आएगा। धर्म अगर कुछ है तो जीवन का परम उपयोग है, वह जीवन की आत्यंतिक अर्थवत्ता है। अगर ताओ का या धर्म का उपयोग करना है, तो एक ही सूचन देता है लाओत्से कि समस्त तरह की पूर्णताओं से, पूर्णता की आकांक्षा से सावधान रहना। और धर्म का उपयोग शुरू हो जाएगा। क्योंकि जैसे ही कोई व्यक्ति शून्य होता है, वैसे ही धर्म सक्रिय हो जाता है, डायनैमिक हो जाता है। और जैसे ही कोई व्यक्ति भर जाता है किन्हीं चीजों से, धर्म अक्रिय हो जाता है, बोझ से भर जाता है, दब जाता है। नष्ट तो होता नहीं धर्म। इस कमरे में खाली जगह है, एम्पटी स्पेस है। इस कमरे में लाकर हम सामान भर दें, इतना सामान भर दें कि कमरे में इंच भर जगह न रह जाए। इसका क्या अर्थ हुआ? क्या इसका यह अर्थ हुआ कि पहले जो खाली जगह थी, वह नष्ट हो गई? क्या हम उसे नष्ट करने में सफल हो गए? या इसका यह मतलब है कि पहले जो खाली जगह थी, वह छोड़ कर इस कमरे के बाहर हट गई और कमरा भर गया? इस कमरे के बाहर खाली जगह जा नहीं सकती। क्योंकि खाली जगह कोई चीज नहीं है कि चली जाए। और जाएगी कहां? बाहर खाली जगह पहले से ही काफी मौजूद है। इस कमरे की खाली जगह को सम्हालने के लिए कहीं भी तो कोई जगह नहीं है इस अंतरिक्ष में, जहां यह इस कमरे की इतनी खाली जगह अगर बाहर निकल जाए, तो यह कहां रुकेगी? खाली जगह को आप नष्ट कैसे करेंगे? फिर दूसरा उपाय यह है कि नष्ट हो गई होगी; हमने सामान भर दिया, खाली जगह नष्ट हो गई। लेकिन नष्ट कोई चीज हो सकती है, खालीपन नष्ट नहीं हो सकता। वस्तु नष्ट हो सकती है, शून्य नष्ट नहीं हो सकता। शून्य का मतलब ही यह है कि जो नहीं है। उसको नष्ट कैसे करिएगा? नष्ट करने के लिए किसी चीज का होना जरूरी है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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