Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

Previous | Next

Page 214
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free इसलिए लाओत्से जैसे लोग बहुत बड़ी भीड़ को प्रभावित नहीं कर पाते। क्योंकि भीड़ तो उनसे प्रभावित होती है, जो उनके अहंकार को फुसलाने की कला जानते हों। सेल्समैनशिप, आदमी के साथ सारा काम कला का है। अमरीका में हजारों किताबें लिखी जाती हैं इधर इन बीस वर्षों में, जो लोगों को सिखाती हैं कि हाऊ टु इनफ्लुएंस पीपुल, हाऊ टु विन फ्रेंड्स! कैसे जीतें लोगों का दिल, पतियों को कैसे पकड़ें, पत्नियों को कैसे फंसाएं, ग्राहक को कैसे माल बेचें! हजार-हजार रास्ते समझाती हैं। सब रास्तों का सार एक है कि दूसरे आदमी के अहंकार को कैसे फुसलाएं। अगर एक कुरूप से कुरूप स्त्री भी आपके अहंकार को फुसलाने में समर्थ हो जाए, तो मुमताज और नूरजहां दो कौड़ी की हो जाती हैं। सौंदर्य स्त्री के शरीर में कम, उसके परसुएशन में है। इसलिए कई दफा कुरूप स्त्रियां चमत्कार पैदा कर देती हैं और सुंदर स्त्रियां पीछे क्यू में खड़ी रह जाती हैं। कई बार साधारण बुद्धि का आदमी प्रभावशाली नेता हो जाता है और असाधारण बुद्धि के आदमी को कोई पूछने वाला नहीं मिलता। राज क्या है? वह जानता है कि दूसरे के अहंकार को कैसे फुसलाएं। इस जगत में कोई चीज नहीं बिकती और न कोई चीज कब्जा की जा सकती है, जब तक आप दूसरे के अहंकार पर तरकीबें न सीख लें। और दूसरे के अहंकार को फुसलाने से आसान क्या है! बहुत आसान है। क्योंकि दूसरा फिसलने को राजी ही है। सदा तैयार है, इसी उत्सुकता में है कि आप फिसलाओ। आप एक कदम सरकाओ, वह दस कदम गिरने को तैयार है! लाओत्से जैसा आदमी प्रभावी नहीं हो सकता, क्योंकि वह कहता है, तुम्हारा अहंकार सिवाय घास निर्मित कुत्ते के और कुछ भी नहीं। कनफ्यूशियस लाओत्से को मिलने आया, तो वहां कोई बैठने की जगह न थी, कोई कुर्सी न थी, कोई ऊंचा आसन न था । कनफ्यूशियस तो बहुत नियमविद आदमी था। उसने चारों तरफ कमरे के देखा बैठने के पहले, कहां बैठे। लाओत्से ने कहा, कहीं भी बैठ जाओ, कमरे को तुम्हारी कोई भी फिक्र नहीं है। कमरा कोई चिंता न लेगा; कहीं भी बैठ जाओ। मैं यहां बहुत देर से बैठा हूं; कमरे ने मेरी तरफ देखा ही नहीं । कनफ्यूशियस बैठ तो गया। लेकिन बेचैन हो गया। कभी ऐसा जमीन पर नहीं बैठा था। लाओत्से ने कहा, शरीर तो बैठ गया है; तुम भी बैठ जाओ। वह अहंकार अभी पीछे खड़ा था। लाओत्से ने कहा, जब बैठ ही गए हो, तो अब तुम भी बैठ जाओ। शरीर तो बैठ ही गया है। बैठ तो गया, लेकिन कनफ्यूशियस सुन नहीं पाया कि लाओत्से ने क्या कहा। अगर आपसे सौ शब्द बोले जाएं, तो निन्यानबे नहीं सुने जाते हैं। नेपोलियन हिल, अमरीका के एक कुशल विचारक ने कहा है कि अगर दूसरे आदमी के भीतर प्रवेश करना हो, तो सबसे पहले उसके अहंकार को थोड़ी सी खुशामद दो । तब वह सुनने को राजी होता है। नहीं तो वह सुनता भी नहीं । सुनता भी नहीं! आप यहां आए। अगर आते ही मैं आपसे पूछता कि आपके मन में कौन सा विचार चल रहा है? तो आप सब अगर ईमानदारी से अपने विचार बताएं, तो सबके मन में कुछ न कुछ चल रहा होगा। अगर मुझे आपसे बात करनी है, तो मुझे आपके भीतर की अंतर्धारा तोड़नी पड़ेगी। तो ही मेरी बात प्रवेश करेगी; अन्यथा आपके कान मुझे सुनते रहेंगे, आंखें मुझे देखती रहेंगी, भीतर की अंतर्धारा जारी रहेगी। वह नेपोलियन हिल कहता है, अगर दूसरे की अंतर्धारा तोड़नी है, तो पहले उसके अहंकार को फुसलाओ। तब वह सुनने को एकदम राजी हो जाता है। उसने अपना एक संस्मरण लिखा है। उसका खयाल है कि आदमी चार चीजों के आस-पास, इर्द-गिर्द घूमता है: यश, धन, वासना, जीवेषणा। इनके इर्द-गिर्द घूमता रहता है। ये सब अहंकार के ही हिस्से हैं। उनको चार, आठ कितना ही कोई कहे। अगर किसी आदमी को आपको राजी करना है, तो हिल जैसे लोग कहते हैं कि इन चार में से कहीं से प्रवेश करो। वह एक बस में चढ़ा है। बस तेजी से भागी जा रही है। जोर की वर्षा है। और उसको पचपन नंबर के स्टैंड पर उतर जाना है। ड्राइवर से उसने कहा कि खयाल रखना, मुझे पचपन नंबर के स्टैंड पर याद दिला देना कि पचपन नंबर आ गया। कहीं ऐसा न हो कि मैं आगे-पीछे चला जाऊं। रात अंधेरी है और वर्षा बहुत हो रही है। ड्राइवर ने कहा, मैं किस-किस को याद दिलाऊंगा ! और वर्षा की वजह से मुझे खुद भी ठीक दिखाई नहीं पड़ रहा है कि कौन सा नंबर निकला जा रहा है। अपना खयाल रखना। और भी लोगों ने मुझसे कहा है। फिर मैं ट्रैफिक पर ध्यान रखूं कि नंबरों का खयाल रखूं? दूसरा आदमी होता, चुपचाप पीछे चला जाता । नेपोलियन हिल ने सोचा, प्रयोग करना उचित है। उसने कहा कि और इसलिए और भी कह रहा हूं कि पचपन नंबर के स्टैंड के पास जमीन में गड्ढा खुदा है, सड़क खोदी जा रही है; जरा होश से चलाना ! वह पीछे जाकर खड़ा हो गया। और सबके नंबर भूल गए ड्राइवर को पचपन नंबर नहीं भूला । पचपन नंबर पर गाड़ी धीमी करके उसने कहा, लेकिन वह गड्ढा कहां है? नेपोलियन हिल ने उससे कहा, गड्ढा वगैरह कोई भी नहीं है; लेकिन तुम्हारे भीतर जो अंतर्धारा है, उसको तोड़ कर पचपन नंबर डालना जरूरी है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285