Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 216
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free वह जितनी ही चीखने लगी, उतना ही मैंने उससे कहा, यह चीख मार कर तू किसको समझाने की कोशिश कर रही है-मुझे या स्वयं को? अगर करती है प्रेम, तो खतम हो गई बात। इसमें चीख मारना और रोना और छाती पीटने की कोई भी जरूरत नहीं है। लेकिन तू इतनी चीख मारती है, छाती पीटती है, रोती है, तो मैं तुझसे कहता हूं कि तू अपने को समझाने की कोशिश कर रही है। तेरे रोने से मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन शायद तुझे स्वयं पर पड़ेगा कि मैं इतनी रोई, इतनी छाती पीटी, देखो कितना प्रेम करती हूं! प्रेम करना हो, तो छाती पीटना और रोना जरूर आना चाहिए। नहीं तो आपका पता ही नहीं चलेगा किसी को कि आप प्रेम भी करते हैं। ज्यादा जोर से छाती पीटना और रोना आता हो, तो आप प्रेम करते हैं। इसलिए स्त्रियां बहुत जल्दी सिद्ध कर देती हैं कि वे प्रेम करती हैं। पुरुष सिद्ध नहीं कर पाते कि वे प्रेम करते हैं। सिद्ध करने का उपाय ही नहीं हाथ में लाते। मैंने उसे कहा कि नहीं, इस सब से कुछ मेरे सामने नहीं होगा। तो इस बार वह अपनी लड़की को लेकर आई है, अपनी बड़ी लड़की को लेकर आई है। और उसने कहा कि अब आप देखें। और मैंने देखा। और पंद्रह दिन में, इस जमीन पर जितनी दुश्मनी हो सकती है किन्हीं दो व्यक्तियों में, उतनी उन दोनों के बीच दुश्मनी पूरी प्रकट हो गई है। मां और बेटी के बीच होती है दुश्मनी। समाज छिपाता है, परिवार छिपवाता है। लड़की जैसे-जैसे जवान होने लगती है, मां दुश्मन होने लगती है। वह बिलकुल स्वाभाविक है। वह हमारा एनीमल हेरिटेज है; वह जो जानवरों से हमें मिला है, वह है। बेटा जैसे जवान होने लगता है, बापर ईष्या से भरने लगता है। मगर ये बातें कहने की नहीं हैं। सब बाप जानते हैं, सब बेटे जानते हैं। बेटा जैसे जवान होने लगता है, बाप को हटाने और सरकाने की कोशिश करने लगता है। निश्चित ही, जगह बनानी पड़ती है। जवान लड़की को देख कर मां को याद आना शुरू हो जाता है, वह भी कभी जवान थी। और यह भी याद आना शुरू हो जाता है, इन बच्चों के कारण उसकी जवानी खो गई। किसी के कारण खोती नहीं, बिना बच्चों के भी खो जाती है। लेकिन यह खयाल आने लगता है। और अब घर में कोई भी आदमी प्रवेश करता है, तो पहले जवान लड़की पर उसका ध्यान जाता है, पीछे बूढ़ी मां पर। पीड़ा भारी हो जाती है। अगर लड़कियों को विवाह के बाद उनके पतियों के घर भेजने की योजना किसी की होगी, तो वह माताओं की है। और चूंकि माताएं सदा जीत जाती हैं, इसलिए बाप हार गया। बेटे को घर में रखने के लिए उसको राजी होना पड़ा; बेटियों को बाहर करना पड़ा। अगर बाप भी अपनी बेटी के प्रति ज्यादा उत्सुकता ले, जो कि बिलकुल स्वाभाविक है वह लेगा, तो मां को तकलीफ औरर् ईष्या हो जाती है। फिर बेटी बेटी नहीं दिखाई पड़ती, धीरे-धीरे निपट स्त्री दिखाई पड़ने लगती है। मैंने पंद्रह दिन उन दोनों की सारी बीमारियों को उभारने की पूरी कोशिश की, दोनों को उकसाया। उन दोनों की बीमारियां इतनी बढ़ गईं कि एक-दूसरे की गर्दन घोंट डालें। और जब मैंने उनको सामने बिठा कर दोनों को कहा कि अब तुम अपना दिल खोल दो, जो-जो तुम्हारे भीतर है! तो जो रोग बाहर दिखाई पड़े, वह कोई मां कल्पना नहीं करती, कोई बेटी कल्पना नहीं करती; लेकिन हर बेटी और हर मां के भीतर होते हैं। पर हम दबाए चले जाते हैं, छिपाए चले जाते हैं। उनके ऊपर और अच्छी पर्ते, मुलम्मे लगाए चले जाते हैं। फूल की कतार सजा लेते हैं और भीतर गंदगी को छिपा देते हैं। लाओत्से कहता है, तुम यही जोड़ हो-इसी सब छिपी हुई गंदगी का। इसे हम घास के कुत्ते से ज्यादा नहीं मानते। और न हम इस पर दया करते हैं, न इसकी क्षमा करते हैं, न हम इस पर कठोर हैं। हम सिर्फ इतना कहते हैं, यह बिलकुल व्यर्थ है, इररेलेवेंट है, असंगत है। इसका कोई मूल्य नहीं है। और जब तक यह गांठ न फिंक जाए, तब तक वह जो मूल्यवान है, उसका आविर्भाव नहीं होता। और जब तक यह कचरा न हट जाए, तब तक भीतर वह जो स्वर्ण छिपा है, वह कभी निखरता नहीं। यह हैरानी होगी जान कर कि पंद्रह दिन इन मां और बेटी ने एक-दूसरे के साथ इतनीर ईष्या, इतनी घृणा और इतनी गालियां दीं कि कभी-कभी तो मैं भी दिक्कत में पड़ा और मुझे लगा कि कहीं यह हल न हो पाया-क्योंकि उन्हें जल्दी वापस लौटना है-तो उपद्रव हो जाएगा। फिर मुझे सामने बिठा कर उनके घृणा के निकालने के प्रयोग करवाने पड़े। एक ही प्रयोग में, जो किसी लड़की ने अपनी मां को कभी नहीं कहा होगा, किसी मां ने अपनी कभी लड़की को नहीं कहा होगा लेकिन दोनों ने सदा-सदा सोचा है काल-काल, युग-युग में-वह उन दोनों ने कहा। कल्पना के बाहर! मां कह सकी अपनी बेटी से कि तू मेरी दुश्मन है और मेरे साथ जो भी किसी का प्रेम बनता है, तू उसे छीनने की कोशिश करती है। और लड़की कह सकी अपनी मां से कि तू सिर्फ एक वेश्या है। और जब मां ने पूछा कि तू मुझे घृणा करती है? तो उसने कहा कि हां, मैं तुझे सिर्फ घृणा करती हूं, एट लीस्ट राइट दिस मोमेंट, मैं तुझे घृणा करती हूं। मां कह सकी, तू मेरी कोई भी नहीं है; मैं तुझे देखना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। और यह सारी गाली घंटे भर जब निकल गई, और मैंने उन दोनों से कहा, अब आंख बंद करके तुम चुप हो जाओ। पांच मिनट वे चुप बैठ कर रोती रहीं; फिर एक-दूसरे के गले लग गईं। रात वे एक ही बिस्तर में सोईं। और दूसरे दिन मां ने मुझसे कहा कि हमारी हनीमून की रात थी! वर्षों के बाद मैं इस लड़की को फिर से प्रेम कर पाई। लेकिन मैंने उसे कहा कि ध्यान रखना, यह प्रेम फिर घृणा को इकट्ठा करने लगेगा।वंद्व जहां है, वहां हम विपरीत को इकट्ठा कर लेते हैं।लाओत्से कहता है, संत विपरीत के पार हैं, दोनों के बाहर हैं। वे न कठोर, न वे सदय।आज इतना ही। कल हम दूसरा सूत्र लेंगे। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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