Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 221
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free धर्म निरंतर यह कहता रहा है कि अगर विराट को पाना है, तो सूक्ष्म को पाना पड़ेगा। धर्म सदा उलटी बात बोलता रहा है। अब विज्ञान ने भी थोड़ी समझ शुरू की है। धर्म कहता है, विराट को पाना है, तो सूक्ष्म पाना पड़ेगा। परमात्मा को पाना है, तो भीतर जो आत्मा का अणु छिपा है, उसे पाना पड़ेगा। जो आदमी परमात्मा को सीधे खोजने जाएगा, वह कभी नहीं खोज पाएगा। अपने को खो दे भला, परमात्मा को कभी नहीं खोज पाएगा। जिस आदमी को परमात्मा को खोजना है, उसे परमात्मा को तो भूल ही जाना चाहिए; स्वयं के भीतर वह जो छोटा सा अण् छिपा है जीवन का, उसे खोज लेना चाहिए। उसे खोजते ही परमात्मा मिल जाता है। अणु को पकड़ लेना विराट को पकड़ लेना है। लेकिन उलटा हमें दिखाई नहीं पड़ता। और अणु तो बिलकुल शून्य है; कहें, न के बराबर है। उस शून्य में इतनी ऊर्जा! लेकिन वह भी पूर्ण शून्य नहीं है। लाओत्से जिस शून्य की बात कर रहा है, वह पूर्ण शून्य है। अगर अणु, जो कि पूर्ण शून्य नहीं है, उससे इतनी ऊर्जा पैदा होती है, तो पूर्ण शून्य में कितनी ऊर्जा होगी? ऋषि सदा कहते रहे हैं, इस जगत का जन्म शून्य से हुआ है। तभी इतने विराट का फैलाव हो सकता है! इतने चांदत्तारे, अरबों-अरबों चांदत्तारे शून्य से ही पैदा हो सकते हैं। हमारा गणित उलटा है। हम सोचते हैं, कोई भी चीज पैदा होगी तो वहीं से पैदा होगी, जहां पहले से मौजूद हो। हम सोचते हैं, भरी हुई स्थिति से ही कुछ निकल सकता है। शून्य से क्या निकलेगा? क्योंकि हमें विरोधी गणित का कोई अंदाज नहीं है। लाओत्से उसी विरोधी गणित का जगत में सबसे बड़ा प्रस्तोता है। वह कहता है, वह शून्य की जो स्थिति है, अखंड शक्ति उसमें छिपी है। यह वह क्यों कहने को उत्सुक है? वह इसलिए कहने को उत्सुक है कि अगर तुम्हें भी अखंड शक्ति के मालिक हो जाना है, तो शून्य हो जाना पड़ेगा-उस धौंकनी की भांति, जिसमें हवा बिलकुल नहीं रह गई, जिसमें भीतर कुछ भी न बचा, वैक्यूम हो गया। जैसे ही भीतर वैक्यूम हो जाता है, शून्य हो जाता है, धौंकनी बिलकुल खाली हो जाती है, परम जीवन का आविर्भाव हो जाता है। उसी शून्य में परम अखंडित शक्ति के दर्शन शुरू हो जाते हैं। लेकिन हम अपने को भरने की कोशिश करते हैं। जैसे कोई पागल लुहार अपनी धौंकनी में चीजें भर ले, फिर धौंकनी काम न आए, ऐसे हम सब पागल लुहार हैं। हम अपने जीवन की धौंकनी को भर लेते हैं। उसकी रिक्तता को भर देते हैं-क्षुद्र चीजों से, व्यर्थ की चीजों से। कभी धन से, कभी पद से, कभी मकान से, कभी फर्नीचर से, कभी मित्रों से, पत्नी से, पति से, बच्चों से, भर देते हैं। शून्य भीतर का भर जाता है। फिर हम एक कबाड़ी की दुकान की तरह हो जाते हैं। हिलना-डुलना भी भीतर मुश्किल होता है। जरा हिले कि फर्नीचर से टकरा जाते हैं। फिर अपने को सम्हाल कर किसी तरह जी लेते हैं। अखंड ऊर्जा हमारे पास नहीं होती। महावीर कहते हैं, जो व्यक्ति शून्य हो जाए, वह अनंत ऊर्जा का मालिक हो जाता है। अनंत, इनफिनिट इनर्जी का मालिक हो जाता है! लेकिन यह शून्य कैसे हम हो सकें, इसे लाओत्से आगे कहेगा। अभी वह इतना ही कहता है कि शून्य की महिमा को समझ लेना जरूरी है; भरने के पागलपन को समझ लेना जरूरी है। शून्य की महिमा को समझ लेना जरूरी है। जगत में जितनी भी गहरी प्रक्रियाएं पैदा हुई हैं-चाहे उन्हें कोई योग कहे, चाहे ध्यान कहे, चाहे तंत्र कहे, चाहे प्रार्थना कहे, पूजा कहे-वे सभी पद्धतियां आदमी को रिक्त करने की पद्धतियां हैं। आदमी खाली कैसे हो जाए! और आदमी बहुत छोटी चीजों से भर जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन की सम्राट से दोस्ती थी अपने देश के। नसरुद्दीन की ज्ञानियों में गिनती थी। सुलतान ने उससे एक दिन पूछा, मुल्ला, तुम जब प्रार्थना करते हो, तो मन शून्य हो पाता है या नहीं? मुल्ला ने कहा, बिलकुल हो जाता है। सम्राट को भरोसा न आया। उसने कहा, सच! तो इस शुक्रवार तुम नमाज करके सीधे मस्जिद से मेरे पास आ जाना। और तुम्हारे ईमान का भरोसा करूंगा। सचसच मुझे बता देना। अगर तुमने सच-सच बता दिया, तो तुम्हें-वह अपने गधे पर बैठ कर आया था-तुम्हें फिर आगे से गधे की सवारी न करनी पड़ेगी। मेरे अस्तबल का जो सबसे शानदार जानवर है, सबसे शानदार घोड़ा है, वह मैं तुम्हें भेंट कर दूंगा। नसरुद्दीन ने कहा, जरा देख सकते हैं उस घोड़े को? नसरुद्दीन ने घोड़े को देखा। तबीयत उसकी लार-लार हो गई। उसने कहा कि बड़ी मुश्किल में डाल दिया। खैर, शुक्रवार हाजिर हो जाऊंगा। प्रार्थना करके नसरुद्दीन आया। दरवाजे पर सम्राट ने घोड़ा बांध रखा था। और नसरुद्दीन से कहा, ईमानदारी से कहो, प्रार्थना में कोई विचार तो नहीं आए? खाली थे तुम? नसरुद्दीन ने कहा, बिलकुल खाली था। आखिर-आखिर में जरा एक झंझट आई। सम्राट ने पूछा, वह झंझट क्या थी? नसरुद्दीन ने कहा, वह यह थी कि घोड़ा तो दोगे सही, कोड़ा भी दोगे कि नहीं? साथ में कोड़ा भी दोगे कि नहीं? बस इस कोड़े ने मुझे परेशान कर दिया। लाख उपाय किया अल्लाह को याद करने का, लेकिन कोड़े के सिवाय कुछ याद न आया। बस एक ही बात पकड़े रही कि घोड़ा तो दे दोगे, लेकिन घर तक जाने के लिए कोड़े की भी जरूरत पड़ेगी, वह दोगे कि नहीं? इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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