Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 195
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free लेकिन बुद्धि की समझ से रूपांतरण नहीं होता, क्रांति नहीं होती। क्योंकि बुद्धि बहुत छोटा सा हिस्सा है व्यक्तित्व का; और व्यक्तित्व बहुत बड़ी बात है। और बुद्धि जिसे समझ लेती है, उसका यह अर्थ नहीं है कि आपका व्यक्तित्व, आपका प्राण, आप उसे समझ गए। इस सदी के पहले तक पश्चिम को यह खयाल नहीं था साफ-साफ कि जिसे हम मनुष्य की बुद्धि कहते हैं, उससे नौ गुनी ताकत का अचेतन मन, अनकांशस माइंड भीतर बैठा हुआ है। आपको मैंने समझाया कि क्रोध बुरा है, आपकी समझ में आ गया। लेकिन जिस बुद्धि की समझ में आया, उसने कभी क्रोध किया ही नहीं है। उस बुद्धि के पीछे जो नौ हिस्से पर्त हैं अचेतन के, अनकांशस के, क्रोध वहां से आता है। ऐसा समझ लें कि मैं एक मकान में रहता है। दरवाजे पर एक पहरेदार खड़ा है। उस बेचारे ने कभी क्रोध किया नहीं है। और जब भी दरवाजे पर कोई उपद्रव होता है, तो वह घर के भीतर जो मालिक रहता है, वह बंदूक लेकर दरवाजे पर आकर उपद्रव करता है। और जब भी कोई उपदेशक समझाने आता है, तो उस पहरेदार को पकड़ कर समझाता है कि क्रोध बहुत बुरी चीज है, झगड़ा वगैरह नहीं करना चाहिए। वह कहता है कि मेरी भी समझ में आता है। मैं भी देखता हूं कि जब उपद्रव होता है, वह मालिक भीतर से आता है, तो भारी खून-खराबा हो जाता है। मैं बिलकुल समझता हूं; मेरी समझ में बिलकुल आता है। मगर यह उपदेशक को पता नहीं है कि जिसको वह समझा रहा है, उसने कभी उपद्रव किया नहीं; और जिसने उपद्रव किया है, इस पहरेदार से उसका कोई कम्युनिकेशन नहीं है। इससे कभी उसकी मुलाकात ही नहीं होती। और जब वह मालिक बंदूक लेकर आता है, तब यह पहरेदार हाथ-पैर जोड़ कर, सिर झुका कर उसके चरणों में पड़ जाता है, क्योंकि वह मालिक है। और जब वह चला जाता है, तब पहरेदार अपनी कुर्सी पर बैठ कर झपकी खाता रहता है और सोचता है कि बहुत बुरी बात है, क्रोध होना नहीं चाहिए। आप जिस बुद्धि से समझ रहे हैं, अगर हम आपके मन के दस खंड कर दें, तो एक खंड समझ का है और नौ खंड अंधेरे में पड़े हैं। जीवन का सारा उपद्रव अंधेरे खंडों से आता है। जब आपके भीतर कामवासना पैदा होती है, तो आपके उन नौ हिस्सों से आती है। और जब ब्रह्मचर्य की आप किताब पढ़ते हैं, तो वह एक हिस्सा पढ़ता है-पहरेदार। आप ब्रह्मचर्य की किताब पढ़ कर रख देते हैं, बिलकुल जंच जाती है कि बात बिलकुल ठीक है। लेकिन उस जंचने से कुछ नहीं होता। जब वे भीतर के नौ हिस्से कामवासना से भरते हैं, तब इस एक हिस्से की कोई ताकत नहीं है। वे इसको एक तरफ हटा कर बाहर आ जाते हैं। इसके जिम्मे एक ही काम है कि जब वक्त मिले, तो समझने का काम करे; और जब फिर वक्त मिले, तो पश्चात्ताप करे। यह जो एक हिस्सा मन है, इसकी कोई सुनवाई नहीं है। ध्यान रहे कि मन में जितना गहरा हिस्सा होता है, उतना ताकतवर होता है। परिधि पर, सर्कमफरेंस पर ताकत नहीं होती; ताकत सेंटर में होती है। जिसको हम बुद्धि कहते हैं, वह हमारी सर्कमफरेंस है, परिधि है, घर के बाहर का परकोटा है; वहां कोई खजाने नहीं रखता। खजाने तो उस तिजोरी में दबे होते हैं, जो घर का भीतरी से भीतरी अंतरंग है। तो हमारे जीवन की ऊर्जा तो अंतरंग में छिपी है। और बुद्धि हमारे दरवाजे पर खड़ी है। इसी बुद्धि से पढ़ते हैं, इसी बुद्धि से सुनते हैं, इसी बुद्धि से समझते हैं। तो लाओत्से जब कहता है, समझ में आ जाए तो रूपांतरण हो जाता है, तो वह कह रहा है, उस सेंटर की समझ में आ जाए-वह जो आपके भीतर, अंतरस्थ बैठा हुआ, अंतिम, मालिक है, उसकी समझ में आ जाए तो क्रांति हो जाती है। अब हमारी कठिनाई भी स्वाभाविक है, वास्तविक है, कि हमें लगता है समझ में आ गया, फिर क्रांति तो होती नहीं। हम वहीं के वहीं खड़े रह जाते हैं। और इस तथाकथित समझ से और एक उपद्रव शुरू होता है। वह उपद्रव यह होता है कि अब हम द्वैत में बंट जाते हैं। मन भीतर से कुछ करवाता है, हम कुछ करना चाहते हैं। वह कभी होता नहीं। होता वही है, जो भीतर से आता है। और फिर आखिर में पश्चात्ताप और दीनता और हीनता मन को पकड़ती है। और अपनी ही आंखों में आदमी गिरता चला जाता है। उसे लगता है कि मैं कुछ भी नहीं हूं, किसी कीमत का नहीं हूं। तो यह जो समझ है हमारी, लाओत्से इसके संबंध में नहीं कह रहा है। यह इंटलेक्चुअल जो अंडरस्टैंडिंग है, यह धोखा है समझ का। यह ऐसा ही है, जैसे कोई कहे कि अगर वृक्ष को जल मिल जाए, तो उसमें फूल आ जाते हैं। हम जाकर वृक्ष के पत्तों पर जल छिड़क आएं। फिर फूल न आएं, तो हम कहें कि हमने तो जल छिड़का, फूल नहीं आए; जाहिर है कि जिसने कहा था, गलत था। और या फिर हमने जो जल छिड़का, वह जल न था। स्वभावतः हमारे सामने सवाल उठेगा, फूल तो नहीं आए। लेकिन जिसने कहा था, वृक्ष को जल मिल जाए तो फूल आ जाते हैं, उसने कहा था वृक्ष की जड़ों को, रूट्स को। यह मजे की बात है कि वृक्ष के पत्ते को आप जल दें, तो जड़ों तक नहीं पहुंचता; जड़ों को जल दें, तो पत्ते तक पहुंच जाता है। क्योंकि पत्तों के पास कोई यंत्र नहीं है कि जल को रूट्स तक पहुंचा दे, जड़ों तक पहुंचा दे जल को। जड़ों के पास यंत्र है। जड़ें केंद्र हैं वृक्ष की, पत्ते तो परिधि हैं। इसलिए पत्ते रहें कि गिर जाएं, नॉन-एसेंशियल हैं। दूसरे पत्ते आ जाएंगे। लेकिन जड़ें चली जाएं, तो दूसरी जड़ें लाना बहुत मुश्किल है, असंभव है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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