Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 171
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free पर मैंने कहा, इस सुरक्षा से क्या बचेगा और खोएगा क्या, इसका कुछ हिसाब किया? यह सुरक्षा हो गई, मान लिया। मर जाओ बिलकुल, फिर नौकर बिलकुल नहीं घुसेगा कमरे में। और मर जाओ, पत्नी को कितनी ही साड़ी की जरूरत हो, तो भी नहीं कहेगी कि साड़ी चाहिए। और मर जाओ, और बेटे को कितनी ही इच्छा हो, जेब में हाथ नहीं डालेगा। आपकी लाश को घर के बाहर फेंक आएगा। जिंदा रहोगे, तो असुरक्षित रहोगे; मर जाओगे, तो सुरक्षित हो जाओगे। मुर्दे से ज्यादा सुरक्षित और कोई भी नहीं, क्योंकि अब मौत भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। बीमारियां नहीं आ सकतीं, कुछ नहीं किया जा सकता अब। अब आप उसके साथ कुछ कर ही नहीं सकते; वह आपके करने के बाहर हो गया। जितने हम सुरक्षित होते हैं, उतनी हमें नोकें बनानी पड़ती हैं। नोकें जो हैं, वह हमारे चारों तरफ सिक्योरिटी अरेंजमेंट है, व्यवस्था है। डर है, आक्रमण है चारों तरफ; हमलावर हैं इकट्ठे। आदमी नहीं, दुश्मन हैं चारों तरफ। उन दुश्मनों से अपने को बचाना है। नसरुद्दीन अपनी पत्नी से बचने के लिए शराब पीने लगा। इतनी ज्यादा, कि मित्र चिंतित हो गए। मित्र इतने चिंतित हो गए कि वह आदमी अब बच नहीं सकेगा। नसरुद्दीन से जब भी उन्होंने कहा, तो उसने कहा कि लेकिन जब मैं शराब पीकर घर जाता हूं, तभी घर जा पाता हूं। दरवाजे पर मेरा पैर कंपने लगता है, अगर मैं होश में जाऊं। और ऐसे-ऐसे प्रश्नों के उत्तर मैं तैयार करने लगता हूं, जो कभी किसी ने किसी से नहीं पूछे होंगे; लेकिन मेरी पत्नी पूछ सकती है। शराब पीकर जाता हूं, तो निश्चिंत प्रवेश कर जाता हूं। यह मेरी सुरक्षा है। पर बात इतनी बढ़ गई कि मित्रों ने कहा, कुछ करना पड़ेगा, अन्यथा यह मौत आ जाएगी। एक मित्र ने सुझाव दिया कि जब यह पत्नी से इतना डरता है और डरने की वजह से ही शराब पीता है, तो और बड़ा डर अगर लाया जाए तो शायद यह शराब छोड़ दे। अब पत्नी से बड़ा और डर क्या हो? एक मित्र ने कहा, एक काम करो कि आज रात जब यह लौटे, वह आधी रात जब घर लौटने लगे, तो झाड़ पर एक आदमी शैतान बन कर बैठ जाए, डेविल बन जाए। सींग लगा ले, काले कपड़े पहन ले, नकाब पहन ले, घबड़ाने की हालत कर दे और चिल्ला कर कूद पड़े नीचे। तो यह कंपेगा, हाथ-पैर जोड़ेगा। तो उस वक्त इससे वचन करवा ले कि शराब नहीं पीना, नहीं तो मैं तेरा पीछा करूंगा, छोडूंगा नहीं। मित्र बाकी छिप गए। एक मित्र डेविल बन कर ऊपर झाड़ पर चढ़ गया। नसरुद्दीन बेचारा लौट रहा है कोई दो बजे रात। आहिस्ता से चला आ रहा है। ऊपर से वह आदमी कूदा। सब इंतजाम पूरा था। बड़ी चीख-पुकार बाकी मित्रों ने जो झाड़ियों में छिपे थे लगाई, जैसे भयंकर खतरा आ गया। और वह आदमी नीचे उतरा, सामने नसरुद्दीन के खड़ा हो गया, नसरुद्दीन की गर्दन पकड़ ली। नसरुद्दीन ने उसकी तरफ देखा। उस आदमी ने कहा कि वचन दो कि शराब छोड़ दोगे! नसरुद्दीन ने कहा, पहले यह तो बताओ महानुभाव कि आप हो कौन? हू आर यू? इसके यह पूछने से उसको थोड़ी गड़बड़ तो हो ही गई, क्योंकि यह डरा नहीं ज्यादा। उसने पूछा, हू आर यू? उसने कहा, मैं शैतान हूं! आई एम दि डेविल! तो नसरुद्दीन ने कहा, बड़ी खुशी हुई मिल कर, आई एम दि गाय हू हैज मैरीड योर सिस्टर। मैं वह आदमी हूं जिसने आपकी बहन से शादी की है। बड़ा अच्छा हुआ, चलिए आपकी बहन से मुलाकात करवा दें। सब मामला खराब हो गया। सब मामला पूरा खराब हो गया। वे मित्र बाहर आ गए। उसने मित्रों से कहा कि देखिए, बहुत मुश्किल से मिले हैं, इनको मैं इनकी बहन से मिला दूं। इनकी भी हिम्मत नहीं पड़ रही है जाने की, ये भागने की कोशिश कर रहे हैं। हमारी सारी की सारी योजना, हमारे शब्द, हमारी भाषा, हमारे सिदधांत, हमारी शराबें, हमारे सिनेमागृह, हमारे नाचघर, हमारे मनोरंजन, बहुत गहरे में सुरक्षा के आयोजन हैं। सब तरह से। हमारे मंदिर, हमारी मस्जिदें, गुरुद्वारे, वह सब हमारे सुरक्षा के आयोजन हैं। डरे हैं, कहीं कोई इंतजाम कर लिया है। और जब भी कोई डरता है, तो उसको धारें रखनी पड़ती हैं अपने चारों तरफ कई तरह की। इन नोकों को कौन तोड़ सकता है? इन नोकों को वही तोड़ सकता है, जो इनसिक्योरिटी में रहने को राजी है। लाओत्से की दृष्टि को समझ कर अलेन वाट ने एक किताब लिखी है। किताब का नाम है: विजडम ऑफ इनसिक्योरिटी, असुरक्षा की बुद्धिमत्ता। सुरक्षा बड़ी मूढ़तापूर्ण बात है। क्योंकि हम सुरक्षित कुछ नहीं कर पाते; कोशिश में खुद मर जाते हैं और मिट जाते हैं। असुरक्षित रहने की बुद्धिमत्ता! नहीं, हम कोई नोक खड़ी न करेंगे, हम कोई पहरा न बनाएंगे। और जिंदगी आक्रमण करेगी, तो हम स्वागत कर लेंगे। और बड़ा मजा यह है कि जो आदमी इस भांति राजी हो जाता है कि जो भी आक्रमण होगा, हम पी जाएंगे, स्वीकार कर लेंगे, एक्सेप्ट कर लेंगे, राजी हो जाएंगे, कहेंगे यही नियति है, नहीं कोई उपाय करेंगे, उस आदमी पर आक्रमण होना असंभव हो जाता है। क्योंकि आक्रमण का भी अपना तर्क है। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं -देखें आखिरी पेज

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