Book Title: Tao Upnishad Part 01
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 99
________________ Download More Osho Books in Hindi Download Hindi PDF Books For Free फिर हमारे मन में, सबके मन में, शक्ति की आकांक्षा है, महत्वाकांक्षा है। धन चाहिए, शक्ति चाहिए, पद चाहिए, यश चाहिए, अस्मिता चाहिए, अहंकार चाहिए। लाओत्से की हम सुनेंगे और भाग खड़े होंगे। क्योंकि हमारा सब कुछ छीन लेने की बात है वहां हमें लाओत्से देता तो कुछ भी नहीं, ले सब लेता है। और हम सब भिखमंगे हैं। हम भिक्षा मांगने निकले हैं। लाओत्से के पास हम जरा भी न टिकेंगे। क्योंकि हमारे पास और जो है, भिक्षापात्र है, शायद वह भी छीन ले ! डायोजनीज के संबंध में कथा है कि डायोजनीज एक लालटेन लेकर घूमा करता था, दिन के उजाले में भी, एथेंस की सड़कों पर। और कोई पूछता, किसको खोज रहे हो? तो वह कहता, एक ईमानदार आदमी की तलाश है, ईमानदार आदमी को खोज रहा हूं। कई वर्षों तक ऐसा चलता रहा; एक आदमी कई वर्षों से देखता था। एक दिन उसने पूछा कि वह ईमानदार आदमी मिला? सफलता मिली? डायोजनीज ने कहा, काफी सफलता यही है कि अपनी लालटेन बची हुई है। इसको भी कई लोग ले जाने की कोशिश करते रहे। अपनी लालटेन बची है, यही कोई कम है! आदमी लाओत्से के पास जाएगा तब, जब खोने की तैयारी हो । कितनों की खोने की तैयारी है? छीनने की तैयारी है। तो छीनने का जो शास्त्र है, वह अरस्तू से विकसित हो सका। इसलिए तो पूरब हारा। पूरब अरस्तू को पैदा नहीं कर सका, इसलिए पूरब हारा, गुलाम रहा, इतनी परेशानियां झेली हैं। क्योंकि पूरब छीनने का शास्त्र विकसित नहीं कर सका। लेकिन कोई नहीं कह सकता कि लंबे अरसे में फायदे में कौन रहेगा। लंबे अरसे की बात अलग हो जाती है। पहले कदम पर कौन फायदे में है, इससे कुछ तय नहीं होता। दूसरे कदम पर सब बदल जाता है। अंत तक पहुंचते-पहुंचते सब बदल सकता है। और बदल जाएगा। पूरब ने बीच में काफी नुकसान उठाया, ऐसा दिखाई पड़ता है। लेकिन अगर पूरब हिम्मत से लाओत्से और बुद्ध के साथ खड़ा रहे, तो पश्चिम को समझना पड़ेगा कि उसने नासमझी की है खुद उसने जो छीना, वे खिलौने थे। उनसे कुछ फर्क नहीं पड़ता था । और उसने जो खोया, वह आत्मा थी। और पूरब ने जो खोया, वे खिलौने थे। और जो बचाया, वह आत्मा थी। अगर पूरब निश्चित रूप से खड़ा रहे लाओत्से के साथ। लाओत्से का नाम कम लोगों तक पहुंचा, उसका कारण यही है कि लाओत्से तक कोई जाना नहीं चाहता। मिल जाए तो हम उससे बचना चाहेंगे, कि अभी नहीं, फिर कभी; जब समय आएगा, हम आपके पास आएंगे। आप कहां मिल गए हैं हमें! अभी नहीं, अभी तो हम खोजने निकले हैं, अभी तो हम कमाने निकले हैं। इसलिए, और इसलिए भी कि लाओत्से जो कह रहा है...। दो तरह की बातें हैं इस जगत में। एक तो ऐसी बात है, जो कि निपट साधारण मनुष्य को, जैसा मनुष्य है, उसकी ही समझ में आ जाती है। और एक ऐसी बात है, जब तक वह मनुष्य पूरी तरह न बदले, तब तक समझ में ही नहीं आती। एक तो ऐसी बात है कि आदमी जैसा है - प्रकृति उसे जैसा पैदा करती है, एक जानवर की तरह एक तो उस जानवर की तरह जो आदमी है, उसकी ही सीधी समझ में आ जाता है। कोई और ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती उसको। उसकी वृत्तियां ही समझ लेती हैं कि ठीक है। और एक ऐसा ज्ञान है, जब तक यह आदमी पूरा रूपांतरित न किया जाए, प्रशिक्षित न किया जाए, तैयार न किया जाए, तब तक इसकी समझ में वह ज्ञान नहीं आता। लाओत्से जो कह रहा है, वह सीधे-सीधे आदमी जैसा पैदा होता है, उसकी समझ का नहीं है। उसकी समझ का नहीं है। आदमी रूपांतरित हो, यानी लाओत्से को समझने के पहले भी एक कीमिया से गुजरना जरूरी है, तभी लाओत्से समझ में आएगा। अन्यथा वह समझ में नहीं आएगा। समझें हम, एक छोटा बच्चा है। उसे हम हरे, पीले, लाल पत्थर बीनने को कह दें, वह बीन लाएगा। लेकिन हम उससे कहें कि हीरा छांट लो इसमें से, तो जरा कठिनाई हो जाएगी। हीरे की परख के लिए रुकना पड़ेगा। और बहुत संभव यह है कि बच्चा पत्थर बचा ले और हीरा फेंक दे। क्योंकि हीरा तो तैयार करना पड़ता है। हीरा तो छिपा होता है। कई बार तो हीरा पत्थर से बदतर होता है। उसकी तो पूरी तैयारी होती है, तब वह प्रकट होता है। और बच्चा उसे अभी पहचान न पाएगा। बच्चे की भी तैयारी होती है, तब परख आएगी। तो लाओत्से तो हीरे की बातें कर रहा है। तो पृथ्वी पर जब भी कोई बच्चे नहीं रह जाते, कोई प्रौढ़ होता है, मैच्योर होता है, तब लाओत्से को समझ पाता है। अरस्तू को समझने के लिए तो स्कूल जाने वाला बच्चा पर्याप्त है। उसमें कोई और विशेष योग्यता की जरूरत नहीं है। अभी भी मनुष्यता उस जगह नहीं आई है, जहां लाओत्से को अधिक लोग समझ सकें- अभी भी। अभी भी कभी लाख में एक-दो आदमी समझ पाते हैं। ध्यान रहे, जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, वह हमेशा एरिस्टोक्रेटिक है। जो भी महत्वपूर्ण है, वह आभिजात्य है। वह थोड़े से ही लोगों की समझ में आने वाला है। और ज्ञान की शर्त है अपनी, कि ज्ञान आपके लिए नीचे नहीं उतरता, आपको ही ज्ञान के लिए ऊपर चढ़ना पड़ता है। लाओत्से आपके लिए नीचे नहीं उतरेगा; आपको ही लाओत्से के लिए ऊपर चढ़ना पड़ेगा। तो ज्ञान एक चढ़ाई है, ऊंची चढ़ाई है। विज्ञान, आप जहां हैं, वहीं आपको उपलब्ध होता है। ज्ञान, आप आगे बढ़ें, तो उपलब्ध होता है। तो लाओत्से कम लोगों की समझ में आया। लेकिन जिनकी भी समझ में आया, वे इस जगत के श्रेष्ठतम फूल थे। अरस्तू सबके काम का है, लेकिन वे लोग इस जगत के फूल नहीं हैं। इस पुस्तक का श्रेय जाता है रामेन्द्र जी को जिन्होंने आर्थिक रूप से हमारी सहायता की, आप भी हमारी सहायता कर सकते हैं - देखें आखिरी पेज

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