Book Title: Suttanipato
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 9
________________ १२ ] धनिय-सुत्तं गोपी मम अस्सवा अलोला (इति धनियो गोपो।) दीघरत्तं संवासिया मनापा। तस्सा न सुणामि किंचि पापं अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥५॥ चित्तं मम अस्सवं विमुत्तं (इति भगवा।) दीघर'त्तं परिभावितं सुदन्तं। पापं पन मे न विज्जति अथ चे पत्थयसी पवस्स देव॥६॥ अत्तेवतनभतोऽहमस्मि (इति धनियो गोपो।) पुत्ता च मे समानिया अरोगा। तेसं न सुणामि किंचि पापं अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥७॥ नाऽहं भतकोऽस्मि कस्सचि (इति भगवा।) निब्बिठेन चरामि सब्बलोके। अत्थो भतिया' न विज्जति अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥८॥ । अत्थि वसाअत्थि धेनुपा(इति धनियो गोपो।)गोधरणियो पवेणि योऽपि अस्थि । उसभोऽपि गवं पती च अत्थि अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥९॥ नत्थि वसा नत्थि धेनुपा (इति भगवा। ) गोधरणियो पवेणियोऽपि नत्थि। उसभोऽपि गवंपतीध नत्थि अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥१०॥ खीला निखाता असंपवेधी(इतिधनियो गोपो।)दामा मुंजमया नवा सुसंठाना। न हि सक्खि' "न्ति धेनुपाऽपि छेत्तुं अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥११॥ उसभोरिव छेत्व' १ बंधनानि (इति भगवा।) नागो पूतिलतंऽव दालयित्वा। नाऽहं पुन उपेस्सं' ३ गब्भसेय्यं, अथ चे पत्थयसी पवस्स देव ॥१२॥ निन्नं च थलं च पूरयन्तो महामेघो पावस्सि तावदेव । मुत्वा देवस्स वस्सतो इममत्थं धनियो अभासथ ॥१३॥ लाभा वत नो अनप्पका ये मयं भगवन्तं अद्दसाम। सरणं तमुपेम चक्खुम सत्था नो होहि तुवं महामुनि ॥१४॥ गोपी च अहं च अस्सवा ब्रह्मचरियं सुगते चरा'"मसे। जातिमरणस्स पारगा। दुक्खस्सन्तकरा भवामसे ॥१५॥ नन्दति पुत्तेहि पुत्तिमा (इति मारो पापिमा।)गोमि' को गोहि तथैव नन्दति । उपधी हि नरस्स नन्दना न हि सो नन्दति यो निरूपधि ॥१६॥ M. दि. M. भटो. M. चेमे. M. भटको. M. भटिया.ब० भटियाऽपि पि. M. पवेनियो. .M. °ति. M. °ति च. C. खिळा. M. खिला. १०M. सक्सिस्सन्ति. M. छत्वा. १२. दाळ०. M. पवालयित्वा. M. उपेय्यं. १४ B. चरेमसे इतिऽपि पाठं विकप्पेन्ति। ५M. जातिजरामरणस्स. १६ M. गू. १.M. गोपियो, B. गोमियो. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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