Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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इन्हीं सब कारणो से लोक संबंधी ज्ञान अत्यावश्यक माना गया है और इस ज्ञान की उपलब्धि के लिये आगमसाहित्य सदैव परिशीलनीय माना गया है। ५. लोक और उसमें 'सूर्य' -
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 'लोक विज्ञान' का निदर्शन जैन-आगमों में विस्तार से हुआ है। वहीं उसका परिचय'१. समग्र, २. विभिन्न अंग और ३. अंग-विशेष' के रूप में निर्दिष्ट होकर उत्तरकाल के आचार्यों द्वारा भाष्य,
वित्ति आदि के रूप में उसे और भी पल्लवित एवं पुष्पित किया गया है। ऐसे साहित्य में - लोक परिचय के लिये
१. आचारांग सूत्र १ श्रुतस्कन्ध, २. अध्ययन, १ उद्देशक'। २. स्थानांग सूत्र, १ स्थान। ३. समवायांग सूत्र - प्रथम समवाय। ४. भगवतीसूत्र ११ शतक, १० उद्देशक।
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१. इच्चत्थं गढिए लोए वसे पमत्ते अहो य राओ य परितप्पमाणे कालाकालसमुट्ठायी संजोगट्ठी अट्ठालोभी आलुंपे सहसक्कारे विणिविट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो पुणो।। २. ठाणं. अ. १, सु. ५
सम. अ. १, सु. ३ प्र. कविहे णं भंते १. लोए पण्णत्ते ? गोयमा! चउविहे लोए पण्णत्ते, तं जहा - १. दव्वलोए, २. खेत्तलोए, ३. काललोए, ४. भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? उ. गोयमा! तिविहे पण्णत्ते,
तं जहा - १. अहेलोयखेत्तलोए, २. तिरियलोयखेत्तलोए, ३. उड्ढलोयखेत्तलोए। अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा - रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमपुढविअहेलोयखेत्तलोए। तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? गोयमा! असंखेजइविहे पण्णत्ते,
तं जहा - जंबुद्दीवतिरियलोयखेत्त लोए जाव सयंभुरमणसमुद्दतिरियलोयखेत्तलोए। प्र. उड्ढलोयखेत्तलोए णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! पण्णरसविहे पण्णत्ते, तं जहा - सोहम्मकप्पउड्ढलोयखेत्तलोए जाव अच्चुयउड्ढलोयखेत्तलोए। गेवेजविमाणउड्ढलोयखेत्त लोए अणुत्तर विमाणउड्ढलोयखेत्तलोए। इसिपब्भारपुढविउड्ढलोयखेत्तलोए।
- विया. स. ११, उ. १०,सु.२-६
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