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परिशिष्ट
श्री सूर्य-चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र का गणित विभाग
सूत्रसंख्या. ८
मुहूर्त के परिमाण की हानि - वृद्धि : नक्षत्रमास के मुहूर्त का परिमाण
एक युग के अहोरात्र १८३० होते हैं। एक युग के नक्षत्रमास की संख्या ६७ है। एक नक्षत्र मास के दिवस १८३० : ६७ करने से २७ दिन २१/६७ मुहूर्त प्रमाण होता है। वह इस प्रकार -
६७) १८३० (२७
१३४
४९०
४६९
२१
२१/६७
के मुहूर्त करने के लिये ३० से गुणा करने पर २१४३० = ६३० होते हैं। उनको ६७ से भाग देने पर (६३०:६७) ९ मुहूर्त २७/६७ भाग होते हैं । अर्थात् नक्षत्रमास २७ दिवस ९ मुहूर्त २७/६७ भाग होता है। उसके मुहूर्त करने पर २७४३० = ८१० होते हैं। उनमें ९ जोड़ने से ८१९ होते हैं । अतएव नक्षत्रमास के मुहूर्तों की संख्या ८१९ । २७/६७ होती है ।
सूर्यमास के मुहूर्तों की संख्या
एक युग के दिवस १८३० हैं और एक युग के सूर्यमास ६० हैं । सूर्यमास के दिवस करने के लिये १८३० को ६० से भाग देने पर ३० दिन और ३०/६० होंगे। उनके मुहूर्त करने के लिये सूर्यमास के दिनों को ३० 'गुणा करने पर ३०x३० = ९०० होते हैं और ३०/६० को ३० से गुणा करने पर ३०x३० : ६० करने पर १५ मुहूर्त होते हैं। इनको ९०० में जोड़ने पर ९१५ मुहूर्त होते हैं । अर्थात् सूर्यमास के मुहूर्तों की संख्या ९१५ होती है।
चन्द्रमास के मुहूर्तों की संख्या
एक युग के चन्द्रमास ६२ होते हैं और एक युग के दिवस १८३० हैं । चन्द्रमास के दिन बनाने के लिये १८३० : ६२ करने से २९ दिन ३२ / ६२ प्राप्त होते हैं। इनके मुहूर्त बनाने के लिये ३० से गुणा करने पर २९×३०=८७० होंगे और ३२ / ६२४३० करने पर ९६० / ६२ होंगे एवं मुहूर्त के रूप में १५ मुहूर्त ३०/६२ होंगे ।