Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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परिशिष्ट ]
१) ११५६०००
१ १
२०७
०१५६०
७ १४४९
[ २१३
२१४५०१११००
५ १०७२५
२१५० ००३७५
१०७५ के योजन बनाने के लिये ६१ से भाग देने पर [ १०७५ / ६१] १७ योजन ३८ /६१ आएंगे। प्रत्येक मंडल में १७ योजन ३८ /६१ भाग परिक्षेप बढ़ता है।
प्रत्येक परिमंडल का परिक्षेप व्यवहार से १८ योजन और निश्चय से १७ योजन ३८/६१ भाग है । प्रत्येक मंडल का परिक्षप में १८ योजन मिलाने पर दूसरे मंडल का परिक्षेप होता है। ऐसा करने पर सूर्य संक्रमण करता-करता सर्वबाह्य मंडल में आता हैतब आयाम विष्कंभ १००६६० होता है ।
सर्वबाह्य मंडल का परिक्षेप ३१८३१४.८६९ है ।
व्यवहार से ६१८३१५ होता है ।
सर्वबाह्य मंडल का आयाम - विष्कंभ-परिक्षेप निकालने की विधि
प्रत्येक मंडल में ५ योजन ३५ / ६१ भाग बढ़ता है जिससे सर्वबाह्य मंडल में कितनी वृद्धि होगी ? परिमंडल १८३ होने से ५ योजन ३५ / ६१ भाग से गुणा करने पर १८३ मंडल ४५ योजन = ९१५ योजन होते हैं।
३५ भाग × १८३ मंडल = ६४०५ होते हैं। इनके योजन बनाने के लिये ६४०५ को ६१ से भाग देने पर १०५ योजन आते हैं। पूर्वोक्त ९१५ योजन में १०५ योजन मिलाने से १०२० योजन होते हैं । सर्वाभ्यंतरमंडल के आयाम ९९६४० योजन में १०२० योजन जोड़ने से सर्वबाह्यमंडल का १००६६० योजन आयाम होता है। सर्वबाह्य मंडल का परिक्षेप ३१८३१५ योजन है। जिसको प्राप्त करने की विधि इस प्रकार है सर्वबाह्यमंडल का परिक्षेप निकालने की विधि
परिक्षेप निकालने के लिये ।
) (आयाम) २x१०
) (१००६००) २×१०
) १०१३२४३५६००×१०
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