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२१२
३१५०८९ योजन परिक्षेप
३
+ ३
६१
+8
६२५
+4
६३००८
+ 6
६३०१६९
+९
९२२८१२९६०००
९
०
६१
३१८१
३१२५
००५६२९६०
५०४०६४
०५६८९६००
५६७१५२१
[ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र
६३०१७८
००१८०७९
उक्त प्रकार से गणित करने पर सर्वाभ्यंतरमंडल का परिक्षेप ३१५०८९ योजन होता है और १८०७९ शेष रहते हैं ।
प्रत्येक मंडल का परिक्षेप
प्रत्येक मंडल में ५ योजन ३५ / ६१ भाग आयाम - विष्कंभ में वृद्धि होती है। तदनुसार सर्वाभ्यंतरमंडल के अनन्तरवर्ती मंडल का आयाम विष्कंभ ९९६४५ योजन ३५ / ६१ भाग है । प्रत्येक मंडल का परिक्षेप निकालने के लिये (जानने के लिये) ५ योजन के इकसठिया भाग करने पर ५६१ = ३०५ आते हैं । उनमें ३५ भाग और मिलाने पर ३४० होते हैं ।
परिक्षेप निकालने की विधि
( विष्कंभ का ) x १०
) (३४०) २x१०
) ११५६००×१०
) ११५६०००
१०७५