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परिशिष्ट-२ ]
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उ. गोयमा! नो एगदिसिं ओभासेंति, नियमा छद्दिसिं ओभासेंति। विया. स.८, उ.८, सु. ३९, ४० जंबुद्दीवे सूरिया पडुप्पन्नं खेत्तं उज्जोवेति । प. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं उजोवेंति पडुप्पन्नं खेत्तं उज्जोवेंति, अणागयं खेत्तं
उज्जोवेंति ? उ. गोयमा! नो तीये खेत्तं उजोवेंति, पडुप्पन्नं खेत्तं उज्जोवेंति, नो अणागयं खेत्तं उजोवेंति, एवं तवेंति, एवं भासंति जाव नियमा छद्दिसिं भासंति। ___जंबुद्दीवे सूरियाणं ताव खेत्तं पमाणं
- विया. स.८, उ.८,सु. ४१-४२ प. जंबुद्दीवेणं भंते ! दीवे सूरिया केवइयं खेत्तं उड्ढं तवंति ? केवइयं खेत्तं अहे तवंति ? केवइयं खेत्तं
तिरियं तवंति? उ. गोयमा! एगं जोयणसयं उड्ढं तवंति, अट्ठारसजोयणसयाई अहे तवंति, सीयालीसं जोयणसहस्साई दोण्णि तेवढे जोयणसए एक्कवीसं च सट्ठिभाए जोयणस्स तिरियं तवंति।
- विया स. ८, उ.८, सु. ४५
प. तं भंते ! आणुपुव्विं ओभासेंति, नो अणाणुपुव्विं ओभासेंति ? उ. गोयमा! आणुपुट्विं ओभासेंति, नो अणाणुपुव्विं ओभासेंति, प. तं भंते ! कइ दिसिं ओभासेंति ? उ. गोयमा! नियमा छद्दिसिं ओभासेंति, -विया. स.८, उ.८, सु. ३९ टिप्पण [प.तं भंते ! किं एगदिसिं ओभासेंति, सद्दिर्सि ओभासेंति ? उ. गोयमा! नो एगदिसिं ओभासेंति, नियमा छद्दिसिं ओभासेति।] (पाठान्तर) १.जंबु. वक्ख.७, सु, १३७ २.जंबु. वक्ख.७, सु. १३७ ३. (क) जंबु. वक्ख. ७, १३९
(ख) सूरिय. पा. ४, सु. २५ सूर्य के विमान से सौ योजन ऊपर शनैश्चर ग्रह का विमान है और वहीं तक ज्योतिष चक्र की सीमा है, अत: इससे
ऊपर सूर्य का तापक्षेत्र नहीं है। ४. जंबुद्वीप के पश्चिम महाविदेह से जयंतद्वार की ओर लवणसमुद्र के समीप क्रमश: एक हजार योजन पर्यन्त भूमि नीचे है, इस अपेक्षा से एक हजार योजन तथा मेरु के समीप की समभूमि से ८०० योजन ऊँचा सूर्य का विमान है, ये आठ सौ योजन संयुक्त करने पर अठारह सौ योजन सूर्य विमान से नीचे की ओर का तापक्षेत्र है, अन्य द्वीपों में भूमि सम रहती है। इसलिये वहां सूर्य का नीचे का तापक्षेत्र केवल आठ सौ योजन का है। अठारह सौ योजन नीचे की ओर के तापक्षेत्र के और सौ योजन ऊपर की ओर के तापक्षेत्र के, इन दोनों संख्याओं के संयुक्त करने पर १९०० योजन का सूर्य का तापक्षेत्र है। ५. यहां तिरछे तापक्षेत्र का कथन पूर्व-पश्चिम दिशा की अपेक्षा से कहा गया है, अर्थात् उत्कृष्ट इतनी दूरी पर स्थित सूर्य मानव चक्षु से देखा जा सकता है।
उत्तर में १८० योजन न्यून पैंतालास हजार योजन तथा दक्षिणदिशा में द्वीप में १८० योजन और लवणसमुद्र में तेंतीस हजार तीन सौ तेतीस योजन तथा एक योजन के तृतीय भाग संयुक्त दूरी से सूर्य देखा जा सकता है।