Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 271
________________ २२० ] [ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र ६३२४५४७ ०४८४४७१०० ४४२७१८२९ ६३२४५५४६ ०४२७५२७१०० ३७९४७३२७६ ६३२४५५५२ ४८०५३८२४ ७७६ एक हजार के अर्धभाग (५००) की अपेक्षा अधिक है। 'अर्द्धादूर्ध्वमेकं ग्राह्यम्' के विधान से पूर्व संख्या गिन कर व्यवहार से ३१६२३ योजन बतलाये हैं। उनके तिगुने करने से ९४८६९ होते हैं । उनको १० से भाजित करने पर-९४८६ योजन ९/१० भाग सर्वाभ्यन्तर तापक्षेत्र संस्थिति की सर्वाभन्तर-बाहा का परिमाण है। जम्बूद्वीप के परिक्षेप से सर्वबाह्य बाहा का परिमाण ‘परिक्षेप = (विष्कम्भ)४१० जम्बूद्वीप का परिक्षेप प्रसिद्ध है। उसे ३ से गुणा करके १० से भाग देने पर ९४८६८ योजन ४/१० होते हैं। जम्बूद्वीप का परिक्षेप ३१६२२७ योजन, ३ गव्यूति १२८ योजन और १३/ अंगुल है । परन्तु व्यवहार से ३१६२२८ योजन मान कर इसे गुणा करने पर ९४८६८४ योजन होते हैं। उनको १० से भाग देने पर ९४८६८ योजन ४/१० भाग सर्वबाह्य बाहा का परिमाण होता है। उत्तर-दक्षिण दिशा से ताप क्षेत्र का आयाम आयाम = उत्तर-दक्षिण दिशा का अंतर विष्कम्भ = पूर्व-पश्चिम दिशा का अंतर तापक्षेत्र का आयाम परिमाण ७८३३३ योजन १/३ भाग है। मेरुपर्वत में जम्बूद्वीपपर्यन्त ४५००० योजन है। लवण समुद्र के विस्तार का छठा भाग ३३३३३.३३३ योजन है। दोनों का जोड़ करने पर ताप क्षेत्र का आयाम परिमाण ७८३३३.३३३ योजन होता है। अन्धकार संस्थिति की सर्वाभ्यन्तर बाहा का परिमाण अन्धकार संस्थिति को सर्वाभ्यन्तर बाहा का परिमाण ६३२४ योजन ६/१० भाग है। मेरुपर्वत के परिक्षेप को २ से गुणा कर १० से भाजित करने पर ६३२४६ योजन होते हैं। उन्हें १० से भाग देने पर ६३२४ योजन ६/१० अंधकार संस्थिति की सर्वाभ्यन्तर बाहा आती है।

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