Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 260
________________ परिशिष्ट ] इस संख्या को पूर्वोक्त ८७० में मिलाने पर ८८५ मुहूर्त पूर्ण एवं ३० / ६२ मुहूर्त की संख्या होगी । कर्ममास के मुहूर्तों की संख्या एक युग में ३० दिन का कर्ममास होता है। उसके मुहूर्त बनाने के लिये ३० से गुणा करने पर ३०×३०=९०० होते हैं। यह कर्ममास के मुहूर्तों की संख्या है। मास १ नक्षत्रमास २ सूर्यमास ३ चन्द्रमास ४ कर्ममास ॥ प्रथम प्राभृत का आठवां सूत्र समाप्त ॥ सूत्र संख्या ९, १०, ११ ३६६ रात्रि - दिवस का प्रमाण सूर्य ३६६ दिवस में १८४ मंडल में संचार करता है । - सूत्र [ २०९ सर्वाभ्यंतरमंडल के सर्वबाह्य मंडल में गमन करने पर एवं सर्वबाह्य मंडल के सर्वाभ्यंतर मंडल में गमन करने पर सूर्य को (३६६ रात्रि दिवस) लगते हैं । - सूत्र सं. ९ रात्रि - दिवस की हानि - वृद्धि का प्रमाण सं. १० मुहूर्तों की संख्या _८११x२७/६७ मु. ९१५ मु. ८८५ । ३०/६२ मु. ९०० मु. सूर्य ३६६ दिवस में सर्वाभ्यन्तरमंडल में से सर्वबाह्यमंडल में, सर्वबाह्यमंडल में से सर्वाभ्यंतर मंडल में परिक्रमा करता है। सर्वाभ्यंतर मंडल में से सर्वबाह्य मंडल तक १८३ दिवस में परिक्रमा करता है। जब सूर्य सर्वाभ्यंतर मंडल में होता है तब १८ मुहूर्त का दिन एवं १२ मुहूर्त की रात्रि होती है। सर्वाभ्यंतर मंडल में से सर्वबाह्य मंडल तक जाने में १८३ दिन होते हैं और उस समय में ६ मुहूर्त की हानि - वृद्धि होती है । एक दिवस में मुहूर्त के २ / ६१ भाग की वृद्धि हानि होती है। अर्थात् दिवस के परिमाण में मुहूर्त के २/६१ भाग की हानि होती है और रात्रि के परिमाण में मुहूर्त के २/६१ भाग की वृद्धि होती है । सूर्य जैसे जैसे बाह्यमंडल की ओर गमन करता है वैसे वैसे दिवस के परिमाण में हानि और रात्रि के परिमाण में वृद्धि होती है । सूर्य जब सर्वबाह्यमंडल में वर्तमान होता है तब १२ मुहूर्त का दिन और १८ मुहूर्त की रात्रि होती है । सूर्य जैसे-जैसे सर्वाभ्यंतर मंडल की तरफ गमन करता है वैसे-वैसे दिन में वृद्धि और रात्रि में हानि होती है । प्रथम ६ मास में दिवस घटता है और रात्रि बढ़ती है। दूसरे ६ मास में दिवस बढ़ता है और रात्रि

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