Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 224
________________ अठारहवाँ प्राभृत ] १. प. उ. पुरत्थिमेणं सीहरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, दाहिणेणं गयरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, पच्चभिमेणं वसभरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति, उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवर्हति । एवं सूरविमाणं पि, प. ता गहविमाणे णं कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति ? उ. ता अट्ठ देवसाहस्सीओ परिवहन्ति, तंजहा - पुरत्थिमेणं सिंहरूवधारीणं देवाणं दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, एवं जाव - उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं देवाणं दो देवसाहस्सीओ परिवहंति । प. ता णक्खतविमाणे णं कइ दिवसाहस्सीओ परिवहंति ? उ. ता चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति तंजहा - पुरत्थिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं एक्का देवसाहस्सी परिवहड़, एवं जाव - उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं देवाणं एक्का देवसाहस्सी परिवहइ । प.. ता ताराविमाणे णं कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति ? ता दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, तं जहा [ १७३ पुरत्थिमेणं सीहरूवधारीणं देवाणं पंचदेवसया परिवहंति, एवं जाव - उत्तरेणं तुरगरूवधारीणं देवाणं पंचदेवसया परिवर्हति । चंदविमाणे णं भंते! कति देवसाहस्सीओ परिवहंति ? गोयमां! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति । चंदविमाणस्स णं पुरत्थिमेणं, सेआणं, सुभगाणं, सुप्पभाणं, संखतल- विमल-निम्मल-दधिषण- गोखीरफेण-रयणणिगरप्पभासाणं, थिर-लट्ठपट्ट वट्ट - पीवर सुसिलिट्ठ - विसिट्ठ- तिक्खदाढा - विडंबिअ-मुहाणं, रंतुप्पलपत्त-मउय-सूमालतालु जीहाणं, महु-गुलिअ - पिंगलक्खाणं, पीवरवरोरु- पडिपुण्ण-विउल-खंधाणं,

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