Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 202
________________ तेरहवां प्राभृत ख. चंदमसोवड्ढोऽवड्ढी ७९. प. ता कहं ते चंदमसो वड्डोऽवड्डी ? आहिए त्ति वएज्जा? उ. ता अट्ठ पंचातीसे मुहुत्तसते तीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स। क. ता दोसिणापक्खाओ अंधगारपक्खं अयमाणे चंदे चत्तारि बायालसए, छत्तालीसं च बावट्ठिभागे मुहुत्तस्स जाइं चंदे रजइ, तंजहा - पढमाए पढम भागं बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भाग, चरमसमए चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ, इयण्णं अमावासा, एत्थं णं पढमे पव्वे अमावासे ता अंधगारपक्खो, ता णं दोसिणापक्खं अयमाणे चंदे चत्तारे बायाले मुहुत्तसए छत्तालीसं च बावट्ठिभागा मुहुत्तस्स जाइं चंदे विरजइ, तंजहा - पढमाए पढमं भागं बितियाए बितियं भागं जाव पण्णरसीए पण्णरसमं भागं, चरिमसमए चंदे विरत्ते भवइ, अवसेससमए रत्ते य, विरत्ते य भवइ, इयण्णं पुण्णमासिणी, एत्थं णं दोच्चे पव्वे पुण्णिमासिणी। एगयुगे पुण्णिमासिणीओ अमावासो ८०. प. तत्थ खलु इमाओ बावढेि पुण्णिमासिणीओ बावटुिं अमावासाओ पण्णत्तओ, बावठिं एते कसिणा रागा, बावठिं एते कसिणा विरागा, एते चउव्वीसे पव्वसए, एते चउव्वीसे कसिण-राग-विरागसए, जावइयाणं पंचण्हं संवच्छराणं समया एगे णं चउव्वीसेणं समयसएगुणगा,

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