________________
७४
]
[ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र
१२. पडिहया-छाया १३.खील-छाया १४. पक्ख-छाया १५. पुरओउदया-छाया १६. पुरिम कंठभागुवगयाछाया १७. पच्छिम-कंठ-भागुवगया छाया १८. छायाणुवाइणी-छाया १९. किट्ठाणुवाइणी-छाया २०. छाय-छाया २१. विक्कप्प-छाया २२. वेहास-छाया २३. कड-छाया २४. गोल-छाया २५.पिट्ठओदग्गाछाया।
तत्थ णं गोल-छाया अट्टविहा पण्णत्ता, तं जहा -
१. गोल-छाया २. अवड्ढ-गोल-छाया ३. गाढ़-गोल-छाया ४. अवड्ढ-गाढ-गोल-छाया ५. गोलवलि-छाया ६. अवड्ढ-गोलावलि-छाया ७. गोलपुंज-छाया ८. अवड्ढ-गोल-पुंज-छाया।
१. प्रस्तुत सूत्र में छाया के पच्चीस प्रकार तथा गोल छाया के आठ प्रकार का कथन है। तत्थेत्यादि, तत्र = तासां पंचविंशतिछायानां मध्ये खल्वयं गोल-छाया अष्टविधा प्रज्ञप्ता।'
सूर्य-प्रज्ञप्ति की टीका के इस कथन से प्रतीत होता है कि छाया के पच्चीस प्रकारों में 'गोल-छाया' का नाम था और उसके आठ प्रकार भिन्न थे, किन्तु सूर्यप्रज्ञप्ति की '१ आ. स.। २ शा. स.। ३ अ.सु.' इन तीन प्रतियों में छाया के केवल सत्तरह नाम हैं और गोल छाया के आठ नाम हैं। इस प्रकार पच्चीस पूरे नाम लिये गये हैं। सत्तरह नामों में गोल छाया का नाम नहीं है, फिर भी 'तत्थेयादि' पाठ से संगति करके पच्चीस नाम पूरे मानना आश्चर्यजनक है।
एक 'ह.ग्र.' प्रति में छाया के पच्चीस नाम तथा गोल-छाया के आठ नाम हैं, जो मूल पाठ के अनुसार हैं।