Book Title: Suryaprajnapti Chandraprajnapti
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम प्राभृत ]
पोरिसिच्छाय-निवत्तणं
३१.
ता कइकट्ठे ते सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेति ? आहिए त्ति वजा ।
प.
उ. तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ तंजहा
तत्थेगे एवमाहंसु
१. ता अणु समयमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेइ, आहिए त्ति वएजा, एगे एवमाहंसु,
एगे पुण एवमाहंसु -
२. ता अणुमुहुत्तमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेइ, आहिए त्ति वएजा,
जाओ चेव ओयसंठिईए पडिवत्तीओ एएणं अभिलावेणं णेयव्वाओ, जाव' [ ३-२४]
एगे पुण एवमाहंसु -
२५. ता अणुउस्सप्पिणि-ओसप्पिणिमेव सूरिए पोरिसिच्छायं णिव्वत्तेड़ आहिए त्ति वएज्जा, एगे
एवमाहंसु,
-
वयं पुण एवं वयामो
ता सूरियस
-
-
[ ६९
१. उच्चत्तं च लेसं च पडुच्च छायुद्देसे,
२. उच्चतं च छायं च पडुच्च लेसुद्देसे,
३. लेस्सं च छायं च पडुच्च उच्चत्तोद्दे
२
प.
उ. तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तंजहा -
तत्थेगे एवमाहंसु -
(क) १. ता अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए चउपोरिसिचछायं निव्वत्तेइ,
(ख) अत्थि णं से दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दु-पोरिसिच्छायं निव्वत्तेइ, एगे एवमाहंसु, एगे पुण एवमाहंसु -
(क) २. ता अत्थि णं दिवसे जंसि णं दिवसंसि सूरिए दु-पोरिसिच्छायं निव्वत्तेइ,
१. सूरिए. पा. ६. सु. २७
२. सूर्यप्रज्ञप्ति की संकलन शैली के अनुसार यहाँ प्रश्नसूत्र होना चाहिये था, किन्तु यहाँ प्रश्नसूत्र आ. स. आदि किसी प्रति में नहीं है, अत: यहाँ का प्रश्नसूत्र विछिन्न हो गया है, ऐसा मान लेना ही उचित है। सूर्य प्रज्ञप्ति के टीकाकार भी यहाँ प्रश्नसूत्र के होने न होने के संबंध सर्वथा मौन हैं, अतः यहाँ प्रश्नसूत्र का स्थान रिक्त रखा है। यदि कहीं किसी प्रति में प्रश्नसूत्र हो तो स्वाध्यायशील आगमज्ञ सूचित करने की कृपा करें, जिससे अगले संस्करण में परिवर्धन किया जा सके।