________________
पंचम प्राभृत ]
.
[
५१
जंसि णं पव्वयंसि सूरियस्स लेस्सा पडिहया, से ता मंदरे वि पवुच्चइ जाव पव्वयराया वि पवुच्चइ, [क] ता जे णं पुग्गला सूरियस्स लेस्सं फुसंति ते णं पुग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति, [ख] अदिट्ठा वि णं पुग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति। चरिमलेस्संवरगया वि पुग्गला सूरियस्स लेस्सं पडिहणंति।
१. मंदरस्स णं पव्वयस्स सोलस नामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा गाहाओ -
१. मंदर २. मेरु ३. मणोरम ४. सुदंसण ५. सयंपभे य ६. गिरिराया। ७. रयणुच्चय ८. पियदंसण ९ - १९. मज्झे लोगस्स, नाभी य ॥१॥ ११. अच्छे य १२. सूरियावत्ते १३. सूरियावरणे त्ति य। १४. उत्तमे य १५. दिसादी य १६. वडेंसेइ य सोलसे ॥२॥
क- सम. स. १६, सु.३
ख - जंबू. वक्ख. ४, सु. १०९ इन दोनों गाथाओं में 'मंदर पर्वत' के सोलह नाम गिनाये हैं, यहां इनके अतिरिक्त चार औपमिक नाम और भी हैं।
मंदर पर्वत के इन बीस पर्यायवाची नामों को अन्यान्य मान्यतावाले भिन्न भिन्न पर्वत मानते हैं। किन्तु सूर्यप्रज्ञप्ति के संकलनकर्ता ने समवायांग और जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति के अनुसार मन्दर पर्वत के ये बीस पर्यायवाची नाम मानकर सभी अन्य मान्यताओं का 'समन्वय' किया है।