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महाराजा प्रभसिंह को सेना बादशाह ने व्यय के अतिरिक्त महाराजा के साथ कुछ शाही सेना भेजी या नहीं इसका पूर्ण स्पष्टीकरण ग्रंथ से नहीं होता है, यथा
ताज कुलह सिरपेच, जरी तोरा जर कंबर । खंजर जमदढ़ खड़ग, पमंग सिर पाव पटाझर । 'तई लोक ताबीन', तोपखांनां गजबांणां ।
सझ साह बगसीस, लाख इकतीस खजांनां । अहमदाबाद दीधौ उतन, असपति सोच उथालियो । ईखतां दोई राहां 'अभी', होय विदा इम हालियो ।
सू. प्र. भाग २, पृ. २४८ उक्त छप्पय में 'तई लोक ताबीन' से सेना के दिये जाने की कुछ ध्वनि अवश्य निकलती है किन्तु अस्पष्ट है ।
सर बुलन्द खां से युद्ध करते समय महाराजा के पास कितनी सेना थी, ग्रंथ में इसका आंकड़ा नहीं मिलता है किन्तु कवि ने महाराजा की सेना का विस्तृत वर्णन किया है जिसके अन्तर्गत विभिन्न स्थानों की सेनाओं का महाराजा की सेना के साथ होना पाया जाता है। बादशाह से विदा होते समय महाराजा कुछ शाही सेना लेकर चले होंगे इसकी अस्पष्ट ध्वनि उक्त वर्णन के अनुसार ग्रंथ से निकलती है। महाराजा के भाई बखतसिंह
और मारवाड़ के लगभग सभी सामन्तों की सेनाएँ भी महाराजा की सेना के रूप में साथ थीं। सिरोही के राव की भी एक टुकड़ी महाराजा के साथ हो गई थी। पालनपुर का अधिकारी करीमदाद खां भी महाराजा से मिल गया था । सिद्धपुर के निकट पहुँचने पर जवांमद खां और सफदर खां बाबी भी सर बुलन्द की कृपाओं को भुला कर महाराजा से मिल गये थे। वहीं पर 'कसबातो' मुसलमान और स्वर्गीय मोमिन खां का पुत्र मोहम्मद बाकिर भी गुप्त रूप से इनसे मिल गया था। सरदार मोहम्मद खां गोरनी को गुजरातियों की सेना भी बाद में इनके साथ शामिल हो गई थी। इन सब का उल्लेख कवि ने यथास्थान किया है किन्तु इनकी सेनाओं की संख्या नहीं दी गई है ।
इविन 'लेटर मुगल्स' और लोंगमेन्स 'हिस्ट्री ऑफ गुजरात' के अनुसार महाराजा अभयसिंह ने जोधपुर और नागौर से बीस हजार कुशल अश्वारोही लेकर अहमदाबाद की ओर प्रयाण किया था । ग्रंथ में भी महाराजा की सेना के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के अश्वों का अलग-अलग वर्णन मिलता है। 'सहरुल
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