Book Title: Surajprakas Part 03
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 428
________________ [ ४४ ] छंद का नाम प्रथम पंक्ति मोतीदांम पृ० प्रकरण पद्यांक १७६ ७ ६३१ १३१ ७ ४५८ ७३ ७ २३६ २३६ १४० 9m . १३१ २६६ ८६ ५७ १७६ १०१ २६८ ५६८ ३४४ १४१ ४१३ 'रसाहर' तेण समै रिम राह 'रासो' 'कलियांण' तणो रिण राव 'रासौ' जुध 'माहब' रौ मछराळ रिमां खग झाट घणां गंजराळि रिमा खग झाट हणे जमरूठ रिमां घट चोळ करै खग रूप रिमां दळ बीच 'जसौ' इण रूख रिमां सिर वाहत वीजाळ रूठ 'रुधौ' भड़ 'ईसर' रौ चढि रोस रुको झट भूक कर चमराळ 'रैणायर' 'मोकम' वाहत रूक लगी नर है तिल हेक लगांण लग सर स्रोण जग लहराज लड़ायक 'कंठ' धिखंतिय लाय लड़े खग झाट लिये कुळ लाज लड़े तिण वार पड़ोखंभ 'लाल' लड़े 'बगसौ' घण वाहत लोह लड़ें "सिधकन्न' इस जुध लाह लड़े हरिनाथ तणो धख लागि लाडी जिम रौद घड़ा बप लेख लियां सुत खोम' भुजां रज लाज लुहां रत छूट हुवौ रंग लाल लोहां झट बाढत रौद लगस्स लोही धख-धक्ख वभक्कत लाल लोही वभकत्ति खगां झट लागि वंके भड़ ओरवियौ जुध बाज वटै घट मुग्गळ द्रव्य विचार वंदै पग लंच्छि सहेत 'विसन' वडां घर एह सदां लगी वीर बड़ा खळ ढाहत साबळ वाह घड़ा खळ वेधत साबळ वाह वढे वप वीजळ खंड विहंड वढे खळ वीजळ चोळ वरन्न वढे रत फेरत कोच विलम्म वर्ण वप कुंदण माहि वणाव २३४ 9,999999,99999999,99,99999 १७३ ७२ १२८ १५५ १०१ २६६ ४४७ ३४५ ६४३ ३६५ ३२३ १५३ २५६ ४६७ १८२ १८० ६४५ ५७५ ५७१ ६०२ १६० १६६ ७ ७ १२८ ८६ १६० ७ ४४८ ७ २८ ७ ६८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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