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[ ६७ ] काटा था, इसलिए उसके वंश के लोग बाढेल राठोड़ के नाम से प्रसिद्ध हुए जो अब भी उस भाग में कहीं-कहीं आबाद हैं।
सफरा (क्षिप्रा नदी) भारतीय इतिहास की यह प्रसिद्ध नदी विन्ध्याद्रि पर्वतमाला को क्षिप्र नामक झील से निकल कर मध्य भारत में बहती है। मालव प्रदेश का प्राचीन नगर उज्जयिनी इसी के किनारे है । राठौड़ वंश के देश-भक्त व पराक्रमी वीर दुर्गादास ने अपने जीवन का अंतिम समय यहीं व्ययतीत किया था और उनकी मृत्यु भी इसी के किनारे पर हुई थी। आज भी उनकी छत्री यहाँ मौजूद है।
सरस्वती नदी यह नदी माही काँटा से निकल कर पालनपुर के दक्षिणी भाग में सिद्धपुर के पास से बहती हुई कुछ दूर पाटण के पास भूमि के अन्दर ही अन्दर बहती है । वहाँ से बनास के साथ साथ अनवरपुर के दक्षिण में बहती हुई पाटण में आती है। ___ यह वर्षा ऋतु में तेजी से बढ़ती है । शेष समय में इसकी धारा बहुत क्षीण और मंद गति से चलती है और रेतीली भूमि के अन्दर ही अन्दर बहती हुई कच्छ के रन में गिरती है। इसे संस्कृत में अन्तः सलिला कहते हैं।
सांभर यह नगर जोधपुर और जयपुर राज्यों की सीमा पर राजपूताने में २६°-५५ 'उत्तर अक्षांश और ७५°११' पूर्व देशान्तर सांभर झील के किनारे बसा हुआ है। यहाँ की प्रमुख सांभर झील जो समुद्र की सतह से १२०० फुट ऊंचाई पर है, भरने पर इसका क्षेत्रफल ९० वर्गमील हो जाता है । यहाँ का नमक भारत में सब जगह प्रसिद्ध है। यहाँ चौहानों की कुल देवी शाकंभरी का प्राचीन मंदिर है। इसीलिए शाकंभरी का परिवर्तित रूप नाम साँभर पड़ा। यह नगर ८ वीं शताब्दी से ही चौहानों की प्रधान राजधानी माना जाता है। अतः आज भी चौहानों को साँभर राव, सांभरी, संभरी आदि से सम्बोधित करते हैं। यह १३ वीं शताब्दी से १७०८ ई० तक मुसलमानों के अधिकार में रहा । बाद में जोधपुर और जयपुर के शासकों ने पुनः इसे अपने अधिकार में कर लिया।
साहजहांपुर (शाहजहाँपुर) यह नगर प्रागरे के पास हरदोई जिले में है। प्राचीन समय में यह वैभवशाली नगरों में से एक था किन्तु अब यह साधारण नगर है । जोधपुर के महाराजकुमार अभयसिंहजी ने आगरे की ओर जाते हुए इस नगर को लूटा था और इसे बिलकुल नष्ट कर दिया था।
सिरोही शिवभाण के पुत्र सहस्रमल्ल गद्दीनशीन होकर सहसमल के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्होंने वि० सं० १४८२ (ई० सं० १४२५) में वैशाख सुदी २ को वर्तमान सिरोही नगर बसाया । यह शहर सिरणवा नामक पहाड़ी के नीचे बसाया हुआ है और पूर्व सिरोही
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